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Updated: 08 नवम्बर, 2017 09:19 PM
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हिमाचल प्रदेश में वोटिंग की तारीख भी क्या खूब मुकर्रर हुई - 9 नवंबर. 8 नवंबर को नोटबंदी की सालगिरह और ठीक अगले दिन चुनाव. क्या हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव नहीं होते तो भी नोटबंदी पर इतना ही हो हल्ला होता?

नोटबंदी को लेकर मोदी सरकार फायदे ही फायदे समझा रही है तो विपक्ष उसे पूरी तरह नाकाम बता रहा है. सियासत अपनी जगह है लेकिन आम आदमी ने नोटबंदी के चलते जो मुश्किलें झेलीं उसके जख्म जरूर हरे हो उठे हैं.

हिमाचल चुनाव में भ्रष्टाचार मुद्दा जरूर है, लेकिन साल भर बाद क्या नोटबंदी की याद दिलाकर बीजेपी या कांग्रेस कोई फायदा ले पाएगी? एकबारगी तो कतई नहीं लगता. जब सरकारी तौर पर ही ये साफ न हो कि नोटबंदी के पीछे असली कारण और निवारण क्या रहे, फिर लोगों को क्या समझ आएगा - भाषण देकर जो चाहे जितना बहका ले. पर, ध्यान रहे. पब्लिक है सब जानती है.

भ्रष्टाचार मुद्दा तो है लेकिन...

बीजेपी के सीएम कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमल ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का नोटिस दिया है. नोटिस के जरिये राहुल गांधी से माफी मांगने को कहा गया है - और मोहलत 9 नवंबर तक है, जब हिमाचल प्रदेश में वोट डाले जाएंगे.

shah, dhumalबीजेपी का दांव...

6 नवंबर को राहुल गांधी ने चंबा की रैली में इल्जाम लगाया था, "धूमल ने सरकारी जमीन को हड़पा इसलिए उनके बेटे अनुराग ठाकुर को बीसीसीआई से हटाया गया." ठीक यही बात राहुल गांधी ने एक और रैली में कही. सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल जनवरी में लोढ़ा समिति की सिफारिशें लागू करने को लेकर अड़ियल रुख अपनाने के चलते भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर को पद से हटा दिया था.

हिमाचल में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार हमलावर रहे और कांग्रेस को दीमक तक करार दिया. मोदी ने रैलियों में वीरभद्र सिंह की सरकार को जमानती सरकार बताया. फिर कांग्रेस के पूरे कुनबे को जमानत पर छूटे हुए लोग बताया. मोदी वीरभद्र सिंह के खिलाफ सीबीआई जांच और नेशलन हेरल्ड केस में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के जमानत को लेकर टारगेट कर रहे थे.

लेकिन मोदी की बीजेपी ने सुखराम और उनके बेटे अनिल शर्मा को खुले दिल से अपना लिया. ये वही सुखराम हैं जिन्हें कभी भ्रष्टाचार के प्रतीक के तौर पर देखा जाता रहा. अब बीजेपी ने सुखराम के बेटे को मंडी सदर विधानसभा से टिकट दिया है.

rahul, virbhadraकांग्रेस को वीरभद्र पर भरोसा

सुखराम को लेकर बीजेपी का बचाव करते हुए पार्टी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि उनके खिलाफ मामले बहुत पुराने हैं - और 'जो बीत गई, वह बात गई. कानून अपना काम करेगा.' सुखराम और उनके बेटे को लेकर कांग्रेस का विरोध भी बेदम ही नजर आया. वैसे भी अनिल शर्मा हाल तक वीरभद्र सरकार में ही मंत्री रहे.

चुनावी मैदान में आमने सामने खड़े बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शोर तो खूब मचाया है लेकिन दूध का धुला होने जैसे दावे करने की स्थिति में कोई नहीं है - और लोग भी ये बात अच्छी तरह समझ रहे हैं.

नोटबंदी के साल भर बाद

8 नवंबर 2016 को जब प्रधानमंत्री मोदी ने आधी रात से नोटबंदी का ऐलान किया तो मुख्यतौर पर तीन वजहें बतायी - पहला, काले धन को खत्म करना. दूसरी, जाली नोटों की समस्या पर काबू पाना और तीसरी, आतंकवाद के आर्थिक स्रोतों को बंद करना.

ऐलान के साथ ही पूरे देश में हड़कंप मच गया और बैंकों के बाहर लंबी लाइनें लगने लगीं. तभी प्रधानमंत्री विदेश यात्रा पर निकल गये. जब लौटे तो नोटबंदी के बड़े मकसद को लेकर धैर्य बनाये रखने की अपील की लेकिन बात कैशलेस और लेस कैश की होने लगी. कहां कालाधन और आतंकवाद और कहां डिजिटल इकनॉमी की बात समझायी जाने लगी.

narendra modiगुजरते वक्त के साथ नोटबंदी के बदलते फायदे

साल भर जैसे तैसे बीत चुके हैं और अब तो नोटबंदी के नये फायदे भी बताये जाने लगे हैं. अब बीजेपी के नेता और मंत्री नोटबंदी के बड़े ही दिलचस्प फायदे समझाने लगे हैं, कहते हैं - नोटबंदी से जम्मू कश्मीर में पत्थरबाजी में कमी आई है, नक्सलवाद पर नकेल कसी जा सकी है - और तो और देह व्यापार में भी कमी आई है. केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के इस बयान पर स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने ट्विटर पर चुटकी ली है -

असल बात तो ये है कि अब तक नोटबंदी के सही मायनों में किसी बड़े फायदे के कोई सबूत नहीं मिल पाये हैं, कुछेक क्षेत्रों की बात और है जिसके लिए दूसरे उपाय भी कारगर हो सकते थे. वैसे तो नोटबंदी मोदी सरकार के गले में ढोल बन कर लटकी हुई है - और विपक्ष दूर से ही अपना ढोल पीट पीट कर सिर्फ शोर मचा रहा है.

अब भी सवाल यही है कि क्या नोटबंदी के इस शोर शराबे का हिमाचल चुनाव में कोई असर पड़ने वाला है?

नोटबंदी लागू होने के तीन महीने बाद यूपी सहित पांच विधानसभाओं के चुनाव हुए. बाकी राज्यों में अलग अलग मसले रहे लेकिन यूपी में नोटबंदी की वजह से बीजेपी के विरोधी दलों को बड़ी उम्मीद रही. राहुल गांधी और अखिलेश यादव से लेकर मायावती तक को लगा कि जब लोग पोलिंग बूथ पर कतार में लगेंगे तो उन्हें घंटों लाइन में लग थोड़े थोड़े पैसे के लिए हुई परेशानी जरूर याद आएगी - और बीजेपी के खिलाफ वोट करेंगे. हुआ पूरी तरह उल्टा. बीजेपी को ही फायदा हुआ.

जब तीन महीने बाद हुए चुनावों में बीजेपी विरोधियों को नोटबंदी का कोई फायदा नहीं मिला तो साल भर क्यों उम्मीद कर रहे हैं? नोटबंदी के चलते बीजेपी को अब जाकर कोई नुकसान, ऐसा नहीं लगता. हां, शोर शराबे से राहुल गांधी को व्यक्तिगत तौर पर थोड़ा फायदा जरूर मिल सकता है.

अब तो इस बात की कम ही संभावना लगती है कि विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार और नोटबंदी का कोई असर भी होगा - कांग्रेस अगर हारती है तो एंटी इस्टैब्लिशमेंट फैक्टर के अलावा उसके अंदरूनी कलह ही जिम्मेदार होंगे - बाकी तो महज शोर है जो बटन दबाते वक्त कम ही लोगों को सुनाई देंगे.

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