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Updated: 25 मई, 2019 06:18 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कांग्रेस बैठक से इस्तीफा-इस्तीफा खेलने की खबर सूत्रों के हवाले से तो आई, लेकिन रणदीप सुरजेवाला ने आधिकारिक तौर पर सिरे से खारिज कर दिये. सुनने में तो ये भी आया कि राहुल गांधी ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की जिद पकड़ ली थी - और मनमोहन सिंह उन्हें मनाने में भी लगे थे. लगता है मनमोहन सिंह को एक और कामयाबी मिल गयी - और इस्तीफे की रस्म भी पूरी हो गयी. वैसे कांग्रेस की यही रवायत भी है, जिसे पूरे मन से हर हार के बाद निभाया जाता ही है.

रही बाद प्रधानमंत्री की कुर्सी की, तो यूपी से ही चुना गया सांसद बैठा, लेकिन न तो अखिलेश यादव की पसंद से न राहुल गांधी की. पसंद क्या राहुल गांधी तो खुद ही अमेठी से हार गये, वायनाड न होते तो संसद में बोलने का मौका भी नहीं मिलता.

यूपी की 80 सीटों पर कांग्रेस ने 71 उम्मीदवार खड़े किये थे. सिर्फ एक सीट रायबरेली से सोनिया गांधी जीत पायीं और 3 नेता ही अपनी जमानत बचा पाये - राहुल गांधी, श्रीप्रकाश जायसवाल और इमरान मसूद.

यूपी में कांग्रेस के सिर्फ 3 नेता ही जमानत बचा पाये

राहुल गांधी अमठी में बीजेपी की स्मृति ईरानी से चुनाव तो हार गये लेकिन जमानत बचाने में कामयाब रहे. कानपुर में श्रीप्रकाश जायसवाल 3.13 लाख वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे. इसी तरह सहारनपुर में इमरान मसूद रहे तो तीसरे स्थान पर लेकिन जमानत बचाने पर वोट हासिल कर लिये थे. जमानत जब्त होने से बचाने के लिए हर उम्मीदवार को कुल पड़े वोट का छठा हिस्सा यानी 16.66 फीसदी वोट हासिल करना जरूरी होता है - ऐसा न होने पर चुनाव आयोग उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त कर लेता है.

जब राज बब्बर जमानत गवां बैठे तो दूसरों का क्या?

1. राज बब्बर, फतेहपुर सीकरी : फतेहपुर सीकरी से चुनाव लड़ने राज बब्बर कांग्रेस नेतृत्व से लड़-झगड़ कर गये थे. कांग्रेस ने राज बब्बर को मुरादाबाद से टिकट दिया था, लेकिन राज बब्बर ने इंकार कर दिया. फतेहपुर सिकरी में राज बब्बर को 1 लाख 72 हजार 82 वोट मिले हैं. फतेहपुर सिकरी संसदीय सीट पर कुल 10,37,151 वोट पड़े हैं और जमानत बचाने के लिए उम्मीदवार को 1 लाख 72 हजार 858 वोट मिलना जरूरी है. राज बब्बर इस आंकड़े से 766 वोट पीछे रह गये और उनकी जमानत वापस नहीं मिल सकी है.

rahul, sonia, priyanka,CWC meetकांग्रेस कार्यकारिणी ने राहुल गांधी को हार की जिम्मेदारी नहीं लेने दी, सर्वसम्मति से इस्तीफा ठुुकरा दिया.

वैसे राज बब्बर ने राहुल गांधी से पहले ही इस्तीफे की पेशकश कर दी थी. देखा जाय तो प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी यूपी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिम यूपी का प्रभारी बनाने के बाद राज बब्बर के प्रदेश अध्यक्ष बने रहने का कोई मतलब नहीं बचा था.

2. जितिन प्रसाद, धौरहरा : कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद भी राहुल गांधी के करीबी नेताओं में शुमार होते हैं. कांग्रेस से बड़े नेता रहे जितेंद्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद चुनावों के दौरान बीजेपी ज्वाइन करने को लेकर खासे चर्चा में रहे. इस सिलसिले में पूछे गये सवाल का भी जितिन प्रसाद ने गोलमोल ही जवाब दिया था. हालांकि, बाद में कांग्रेस नेतृत्व जितिन प्रसाद को मनाने में कामयाब रहा - और नतीजा ये हुआ कि उन्हें जमानत भी गंवानी पड़ी. हो सकता है बीजेपी में चले गये होते तो संसद पहुंच जाते.

3. योगेश शुक्ल, इलाहाबाद : दिल्ली में रहने के बावजूद इलाहाबाद को गांधी परिवार घर जैसा ही महसूस करता है. इलाहाबाद से कांग्रेस प्रत्याशी योगेश शुक्ल महज 3.59 फीसदी ही वोट अपने खाते में जुटा सके और जमानत गंवानी पड़ी. तीसरे स्थान पर रहे योगेश शुक्ल को कुल 60 हजार 983 वोट मिले थे.

4. पंकज पटेल, फूलपुर : 2018 के उपचुनाव में चर्चित रही फूलपुर सीट पर कांग्रेस ने कृष्णा पटेल गुट वाले अपना दल से गठबंधन के बाद पंकज पटेल को अपने सिंबल पर उतारा था. पंकज पटेल सिर्फ 32 हजार वोटों पर सिमट गये जो कुल वोट का मात्र 3.35 फीसदी रहा और जमानत गवांनी पड़ी.

5. रत्ना सिंह, प्रतापगढ़ : प्रतापगढ़ से कांग्रेस ने राजकुमारी रत्ना सिंह को उम्मीदवार बनाया था. रत्ना सिंह को जिताने के लिए प्रियंका गांधी ने भी खूब मेहनत की थी. अपना इलाका होने के कारण कांग्रेस के सीनियर नेता प्रमोद तिवारी भी लगातार कैंप करते रहे. रत्ना सिंह वैसे तो आस पास के इलाकों में सबसे ज्यादा वोट हासिल किया लेकिन 8.43 फीसदी के साथ चौथे स्थान पर ही रहीं. जमानत तो जब्त होनी ही थी.

6. रमाकांत यादव, भदोही : आजमगढ़ में निरहुआ को टिकट दिये जाने से नाराज रमाकांत यादव ने बीजेपी छोड़ कांग्रेस ज्वाइन कर ली और भदोही चले गये. महज 2.46 फीसदी वोट पाने के चलते रमाकांत यादव को भी अपनी जमानत राशि गंवानी पड़ी.

7. ललितेशपति त्रिपाठी, मिर्जापुर : अपने जमाने के दिग्गज कांग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी के परिवार से आने वाले ललितेशपति त्रिपाठी को एक बार फिर निराश होना पड़ा है. मिर्जापुर सीट पर ललितेशपति त्रिपाठी को सिर्फ 91392 वोट मिले और वो चुनाव हारने के साथ अपनी जमानत भी नहीं बचा पाये.

8. आरपीएन सिंह, कुशीनगर : कांग्रेस के बड़े नेता माने जाने वाले आरपीएन सिंह को जमानत बचाने के लिए कुशीनगर सीट पर 1.75 लाख वोट चाहिये थे लेकिन उनके खाते में सिर्फ 1.46 लाख वोट ही पड़े और जमानत गंवानी पड़ी.

7. सलमान खुर्शीद, फर्रूखाबाद : कांग्रेस के सीनियर नेता में शामिल सलमान खुर्शीद को जमानत बचाने के लिए एक लाख से ऊपर वोट चाहिये थे, लेकिन वो करीब 55 हजार वोट ही जुटा सगे लिहाजा जमानत बचानी मुश्किल हो गयी.

8. नसीमुद्दीन सिद्दीकी, बिजनौर : कभी मायावती के दाहिने हाथ माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को कांग्रेस ने बिजनौर से टिकट दिया था. नसीमुद्दीन को सिर्फ 2.35 फीसदी वोट ही मिल पाये और उनकी जमानत जब्त हो गयी.

9. अन्नू टंडन, उन्नाव : अन्नू टंडन को उन्नाव में बड़ा नेता माना जाता है, लेकिन साक्षी महाराज के आगे वो भी जमानत गंवा बैठीं. अन्नू टंडन को सिर्फ 1 लाख 85 हजार वोट मिले, जबकि जमानत बचाने के लिए 2 लाख 6 हजार वोट जरूरी थे.

10. तनुज पूनिया, बाराबंकी : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएल पूनिया के बेटे तनुज पूनिया को बाराबंकी में मिले तो 1 लाख 59 हजार वोट लेकिन ये इतने नहीं थे कि वो अपनी जमानत बचा सके.

11. हरेंद्र अग्रवाल, मेरठ : यूपी के मुख्यमंत्री रहे बनारसी दास गुप्त के बेटे हरेंद्र अग्रवाल को मेरठ में महज 34 हजार वोट मिल पाये और वो जमानत गवां बैठे.

12. हरेंद्र मलिक, कैराना : 2018 के उपचुनाव में कांग्रेस ने भी यूपी गठबंधन के उम्मीदवार का सपोर्ट किया था, लेकिन इस बार पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को मैदान में उतार दिया था. कैराना से गठबंधन उम्मीदवार तबस्सुम हसन तो हारीं हीं, कांग्रेस प्रत्याशी को भी केवल 69 हजार वोट ही मिल पाये और जमानत जब्त हो गयी.

13. प्रीता हरित, मेरठ : 1987 बैच की आईआरएस अफसर प्रीता हरित मेरठ में इनकम टैक्‍स की प्रिंसिपल कमिश्‍नर थीं और मार्च में ही कांग्रेस ज्वाइन किया था. हरियाणा की रहने वाली प्रीता अरसे से दलित अधिकारों को लेकर काफी सक्रिय रही हैं, लेकिन मोदी लहर में मेरठ में वो 40 हजार से कुछ ज्यादा वोट हासिल कर पायीं और जमानत जब्त हो गयी.

14. इमरान प्रतापगढ़ी, मुरादाबाद : राज बब्बर के इंकार कर देने के बाद कांग्रेस ने मुरादाबाद से शायर इमरान प्रतापगढ़ी को टिकट दिया. चुनावों में मुरादाबाद के कुमार विश्वास माने जा रहे इमरान प्रतापगढ़ी को सिर्फ 69 हजार वोट मिले और जमानत गवांनी पड़ी.

15. सुप्रिया श्रीनेत, महाराजगंज : टीवी पत्रकार रहीं सुप्रिया श्रीनेत ने अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर राजनीति का रूख किया लेकिन शायद फैसला सही नहीं ले पायीं. महाराजगंज सीट पर सुप्रिया श्रीनेत को 72516 जो कुल पड़े वोटों का महज 5.91 फीसदी थे, फिर जमानत कहां बच पाती.

16. मधुसूदन त्रिपाठी, गोरखपुर : 2018 में हुए उपचुनाव में भी शामिल कांग्रेस ने गोरखपुर से मधुसूदन त्रिपाठी को टिकट दिया था और वो 22972 वोट ही हासिल कर पाये. मधुसूदन त्रिपाठी को कुल वोटों का केवल 1.94 फीसदी ही मिला और वो जमानत से हाथ धो बैठे.

17. डॉली शर्मा, गाजियाबाद : डॉली शर्मा को जिताने के लिए भी प्रियंका गांधी वाड्रा ने गाजियाबाद में रोड शो किया था. मोदी लहर में जनरल वीके सिंह ने इस बार बीजेपी के खाते में 2014 के मुकाबले ज्यादा ही वोट डाल दिये, नतीजा ये हुआ कि डॉली शर्मा सिर्फ 7.34 वोट पायीं और जमानत गवां बैठीं.

18. सावित्रीबाई फुले, बहराइच : दलितों के मामलों को लेकर योगी आदित्यनाथ की सरकार के खिलाफ शोर मचाने वालों में बीजेपी सांसद सावित्रीबाई फुले ने काफी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था. तब उनके बीएसपी में जाने की अटकलें रहीं, लेकिन वहां तवज्जो नहीं मिली तो कांग्रेस से टिकट लेकर चुनाव लड़ीं और 34454 वोट पायीं. ये कुल वोटों का 3.48 फीसदी रहा इसलिए जमानत गंवाने को मजबूर होना पड़ा.

19. भालचंद्र यादव, संत कबीर नगर : संत कबीर नगर चुनावों से पहले बीजेपी सांसद के जूता कांड से काफी चर्चा में रहा. बीजेपी ने इस बार शरद त्रिपाठी की जगह संत कबीर नगर से प्रवीण निषाद को उतार दिया था. ये वही प्रवीण निषाद हैं जो गोरखपुर उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत हासिल कर यूपी में सपा-बसपा गठबंधन की नींव डलवायी थी. भालचंद्र यादव को 128506 वोट तो मिले लेकिन कुल पड़े वोटों का 12.08 फीसदी ही रहा, जमानत चली गयी.

माना जा रहा है कि कांग्रेस ने भाल चंद्र यादव को टिकट नहीं दिया होता तो गठबंधन उम्मीदवार भीष्म शंकर ही चुनाव जीतते और प्रवीण निषाद को हार का मुंह देखना पड़ता.

यूपी में ऐसी 8 सीटें पायी गयीं हैं जहां गठबंधन के उम्मीदवारों की हार का अंतर कांग्रेस प्रत्याशियों को मिले वोट से भी कम रहा. ये सीटें हैं - संत कबीर नगर, बदायूं, बांदा, बाराबंकी, बस्ती, धौरहरा, मेरठ और सुल्तानपुर. ये आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की जमानत तो गंवायी ही, गठबंधन राह में वोटकटवा के रूप में रोड़ा भी बनी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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