New

होम -> सियासत

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 02 अगस्त, 2018 03:48 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

सच पूछिये तो NRC जैसे मुद्दे की जितनी जरूरत बीजेपी को थी, करीब करीब उतनी ही बेसब्री ममता बनर्जी को भी रही होगी. बीजेपी ममता को बुरी तरह घेरने की फिराक में तो कब से थी, लेकिन केजरीवाल के गोत्र या नीतीश कुमार के डीएनए जैसे किसी निजी हमले के बैकफायर का रिस्क कोई उठाये तो कैसे?

NRC का मुद्दा ऐसा है जो बीजेपी के एजेंडे को अच्छी तरह सूट करता है - और ममता को घर में घुस कर चैलेंज करने का बेहतरीन हथियार भी. पश्चिम बंगाल चुनावों में तमाम नुस्खे अपनाने के बाद बीजेपी के बचे खुचे दावों में से ये भी एक रहा.

देखा जाये तो ममता बनर्जी के लिए मुश्किल चुनौती 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले नारदा स्टिंग रहा. जिस तरीके से ममता बनर्जी ने नारदा और शारदा को अपनी शख्सियत और आत्मविश्वास से हवा में उड़ा दिया, NRC तो तृणमूल कांग्रेस को नुकसान की जगह फायदा पहुंचाने वाला ही लगता है.

NRC के आंकड़े नहीं उसकी राजनीति खतरनाक है

ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार जैसे हथियार मिस फायर ही होंगे. यही वजह रही कि 2016 में ममता ने नारदा और शारदा को तो जैसे मुद्दा ही नहीं बनने दिया. NRC बिलकुल वैसा तो नहीं साबित होने वाला.

mamata banerjeeगृह युद्ध नहीं, एक और जुमला आने वाला है...

पश्चिम बंगाल में बीजेपी ममता बनर्जी पर वैसे ही आरोप लगाती रही है जैसा पहले देश में कांग्रेस पर लगाया करती थी - मुस्लिम तुष्टिकरण. वैसे समझने वाली बात ये है कि NRC को लेकर बीजेपी को सांप्रदायिकता के कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता. मोदी सरकार ने जैसा भी ड्राफ्ट तैयार किया हो - आंकड़ों की भी बात अलग है, बीजेपी नेता NRC का डबल फायदा उठाने की कोशिश करेंगे. NRC वो तीर है जो धार्मिक आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण के साथ साथ राष्ट्रवाद के नाम पर भी सीधे सीधे बंटवारे में सक्षम है - राष्ट्रवादी और देशद्रोही.

सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी की तुलना मोहम्मद अली जिन्ना से होने लगी है. ये यूं ही नहीं हो रहा. लोगों को यही समझाया जा रहा है और दुर्भाग्यवश वो बगैर आगे पीछे बहुत कुछ सोचे समझे बीजेपी के मिले सुर मेरा तुम्हारा के कोरस में शामिल हो जा रहे हैं.

NRC को लेकर ममता बनर्जी गृहयुद्ध की बात कर रही हैं. वैसे नोटबंदी को लेकर भी ममता ने ऐसा ही रवैया अख्तियार किया था. ममता भी जानती हैं कि ऐसा कोई गृह युद्ध तो होने से रहा, लेकिन मजबूती से किसी बात का काउंटर करने के लिए स्तर ऊंचा तो होना ही चाहिये. और कुछ हो न हो मौखिक हिंसा तो होनी ही है. वैसे भी जो हिंसा का जो नंगा नाच पंचायत चुनावों में देखने को मिला उससे ज्यादा भला और क्या होने वाला है.

बीजेपी के बड़बोले भी उसी अंदाज में ललकार रहे हैं. तेलंगाना से बीजेपी विधायक टी राजा सिंह लोध तो ऐसे लोगों को शराफत के साथ देश नहीं छोड़ने पर गोली मार देने तक की ही सलाह दे रहे हैं. राजनीतिक विरोधियों का आरोप रहा है कि बीजेपी वोटों के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में सबसे ज्यादा यकीन रखती है. श्मशान बनाम कब्रिस्तान जरूर कारगर रहा, मगर, चुनावों से पहले अब जिन्ना विमर्श बीजेपी के लिए घातक साबित होता जा रहा है - कर्नाटक से लेकर कैराना चुनाव तक सभी इसकी मिसाल हैं.

रैली पर रार

21 जुलाई को शहीद दिवस के मौके पर हुई रैली में ही ममता बनर्जी ने बीजेपी के खिलाफ आर पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया था. 15 अगस्त से ममता बनर्जी एक नया आंदोलन शुरू करने जा रही हैं - 'बीजेपी हटाओ, देश बचाओ'. वैसे 2017 में भी ममता बनर्जी ने 9 अगस्त से ऐसा आंदोलन शुरू किया था. ममता के आंदोलन से पहले ही अमित शाह फिर से पश्चिम बंगाल पर धावा बोलने वाले हैं. पिछली बार तो बुद्धिजीवियों ने अमित शाह के संपर्क के बाद समर्थन से इंकार कर दिया था, लेकिन इस बार ऐसा कोई लोचा न हो इस बात का पूरा ख्याल रखा गया है.

amit shahपंचायत से पार्लियामेंट के बीच ही पश्चिम बंगाल भी आता है!

11 अगस्त को अमित शाह पश्चिम बंगाल के दौरे पर जाने वाले हैं. खबर है कि अमित शाह की रैली को अनुमति नहीं मिली है. कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गृह मंत्री राजनाथ सिंह भी पश्चिम बंगाल का दौरा करने वाले हैं. अगर स्थानीय प्रशासन अमित शाह की रैली को परमिशन नहीं देता तो उंगली तो ममता सरकार पर ही उठेगी. बात नहीं बनने की स्थिति में बीजेपी और उसके साथ संगठन सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहे हैं. सड़क पर उतरने का मतलब तो धरना, प्रदर्शन, चक्का जाम और गिरफ्तारी ही होता है. तो क्या ममता के गृह युद्ध की धमकी का ये बीजेपी का जवाबी अंदाज है?

वैसे ममता बनर्जी भी तो फिलहाल अपनी रैली के लिए सबसे ज्यादा परेशान हैं. फेडरल फ्रंट के लिए जूझ रहीं ममता बनर्जी को अपनी मेगा रैली से बड़ी उम्मीदें हैं. ममता की ये रैली अगले साल 19 जनवरी को होनी है और मौजूदा दिल्ली दौरे में यशवंत सिन्हा से लेकर रामजेठमलानी तक ताबड़तोड़ मुलाकातों के पीछे वजह यही है. पिछली बार की तरह इस बार भी ममता की मुलाकात विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं से हुई है - और हर बार की तरह इस बार मुलाकातियों भी सूची में सोनिया गांधी और अरविंद केजरीवाल के नाम दर्ज हैं. सबसे दिलचस्प राहुल गांधी के प्रति ममता का रुख देखना होगा. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नजरें टिका चुकीं ममता बनर्जी फेडरल फ्रंट बनाने के लिए कोलकाता दिल्ली एक किये हुए हैं - और यही बात बीजेपी को फूटी आंख भी नहीं सुहा रही है.

चुनाव से पहले अपना अपना एजेंडा है, बाद में तो हर चीज जुमला है

अगर चुनाव नजदीक नहीं होता तो जरूरी नहीं कि NRC पर राजनीति इस हद तक जा पहुंचती. ये ममता बनर्जी ही हैं जो 2005 में बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर आपे से बाहर हो गयी थीं. तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी.

अगस्त महीने की बात है. संसद में लोकहित से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हो रही थी. तभी ममता बनर्जी लोक सभा में स्थगन प्रस्ताव लेकर आईं. ममता बनर्जी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों पर चर्चा की मांग की. जब डिप्टी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल ने बताया कि स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने वो प्रस्ताव रद्द कर दिया है तो ममता बनर्जी का गुस्सा फूट पड़ा. गुस्से में ममता ने स्पीकर की कुर्सी की तरफ फाइल ही फेंकी और इस्तीफा तक दे डाला. हालांकि, स्पीकर ने ममता बनर्जी का इस्तीफा मंजूर नहीं किया. अब वही ममता बनर्जी गृह युद्ध छिड़ जाने की बात कर रही हैं. राजनीति में वक्त और जरूरत के हिसाब से व्यवहार करना पड़ता है और अक्सर इसमें सिद्धांत या स्टैंड आड़े नहीं आते.

बीजेपी की चुनावी हिट लिस्ट में पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है, जो सबको पता है. पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बीजेपी की सरकार बन जाये फिर अमित शाह को लगेगा स्वर्णिम काल में दाखिल हो गये. अमित शाह के हिसाब से स्वर्णिम काल तो पंचायत से पार्लियामेंट तक मोदी एंड कंपनी का शासन है. पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने से पहले बीजेपी के लिए जरूरी है राज्य में पांव जमाना. 2019 में लोक सभा की सीटों की संख्या ही इस बात का सबूत होगी और 2021 को लेकर संभावित संभावना भी. इस लिहाज से बीजेपी के लिए ममता के खिलाफ बड़ी जंग छेड़नी ही होगी.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तो जम्मू कश्मीर में ही साफ कर दिया था कि 2019 में बीजेपी का एजेंडा क्या रहने वाला है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक तरह से जम्मू कश्मीर से ही 2019 के लिए 'ऑपरेशन राष्ट्रवाद' की शुरुआत की थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा भी तो यही है और इसी पर बीजेपी और ममता बनर्जी की तृणमूल आमने सामने है.

मालूम नहीं ममता बनर्जी कौन से गृह युद्ध की बात कर रही हैं और किसे लड़ने की फुरसत है. वैसे भी 40 लाख लोग तो बांग्लादेश जाने से रहे - अलबत्ता चुनाव बाद ये बात भी जुमला ही साबित होगी. बांग्लादेश ने कह दिया है कि उसका कोई भी घुसपैठिया भारत में है ही नहीं. जो हैं वे सभी समस्या भारत की हैं क्यों वे लंबे समय से रह रहे हैं.

फिर तो यकीन मानिये - '40 लाख' का आंकड़ा भी चुनाव खत्म होते होते अपनेआप 15 लाख पर पहुंच जाएगा - देश को हर वक्त ऐसे जुमलों के लिए तैयार रहना चाहिये. है कि नहीं?

इन्हें भी पढ़ें :

2019 की लड़ाई में मोदी के सामने ममता बड़ी चुनौती

पश्चिम बंगाल से ‘बांग्ला’: ममता दीदी ने दिया 'परिबोर्तन' का बड़ा संकेत

जम्मू से शाह ने 2019 आम चुनाव का एजेंडा सामने रख दिया

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय