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Updated: 19 दिसम्बर, 2017 11:38 AM
डॉ. कपिल शर्मा
डॉ. कपिल शर्मा
  @delhi.kapilsharma
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गुजरात के चुनाव हो गए, नतीजे आ गए, लेकिन 18 तारीख को आए इन नतीजों ने तय कर दिया है कि आज जीत का जश्न और हार का दुख मना लो, लेकिन 19 तारीख से 2019 के आम चुनाव की तैयारी शुरु हो जाएगी, क्योंकि गुजरात के चुनाव सिर्फ एक राज्य के चुनाव नहीं थे, ये पीएम मोदी की अग्निपरीक्षा का भी चुनाव था. इसने सीधा संकेत दे दिया कि बीजेपी के लिए आगे की राह आसान नहीं है. इन चुनावों ने "मोदी के विपक्ष" को हिम्मत दे दी है. साथ ही 2018 के सभी बड़े राज्यों के चुनाव गुजरात से बड़ी चुनौती है, जिनमें कर्नाटक, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे बड़े राज्य शामिल हैं. गुजरात चुनाव में बीजेपी की जीत हुई. इसका श्रेय पार्टी को और खासकर पीएम नरेंद्र मोदी को दिया जाना चाहिए, क्योंकि पीएम मोदी ने इस जीत को राहुल गांधी के मुंह से छीना है. श्रेय मोदी की जीतने की ज़िद को भी जाता है, लेकिन क्या खुद नरेंद्र मोदी और अमित शाह इस जीत से खुश होंगे? इसका सीधा सा जवाब है नहीं. क्योंकि गुजरात पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गृहराज्य है और इस चुनाव में बीजेपी न सिर्फ पिछले चुनाव से कम के आंकड़े पर सिमट गई, बल्कि तिहाई के अंक तक सीटों का आंकड़ा जुटाने में संघर्ष करती नज़र आयी. जबकि बीजेपी के कामयाब चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने गुजरात के लिए 150 सीटों का लक्ष्य रखा था.

गुजरात, गोधरा, नरेंद्र मोदी, इलेक्शन

हालांकि अमित शाह वोट शेअर की आड़ में अपने जीत को बड़ा बता रहे हैं, लेकिन सीटों में बीजेपी सौ के अंदर सिमट गई. भले ही बीजेपी जीत गई है लेकिन चुनाव के जो अंदरूनी आंकड़े हैं, वो बीजेपी और कांग्रेस दोनों को 2019 के लिए तैयारी के लिए हवा भर रहे हैं. बीजेपी के लिए वजह पर हम बात कर चुके हैं. अब बात कांग्रेस की.

राहुल गांधी की छवि गुजरात चुनाव से मजबूत हुई...

कांग्रेस के लिए गुजरात में हार का दुख मनाने से ज्यादा इस बात की राहत मिली है कि राहुल गांधी को गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान अपने आप को मजबूत बनाने का मौका मिला है. राहुल गांधी को लेकर सोशल मीडिया और अवधारणा के स्तर पर जो नकारात्मक छवि का सामना करना पड़ता था, उससे काफी हद तक निजात मिली. गुजरात चुनाव के दौरान ही राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और गुजरात में जिस तरह की बढ़त कांग्रेस को मिली है, उसने गुजरात ही नहीं देशभर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया है. कांग्रेस यह संदेश देने में कामयाब रही है कि मोदी को उन्हीं के गढ़ में उसके नेता राहुल गांधी ने कड़ी चुनौती दी है. इससे पार्टी कार्यकर्ताओं में मनोवैज्ञानिक मजबूती आयी है.

मोदी बनाम राहुल का चुनाव...

गुजरात का चुनाव मोदी बनाम राहुल का हो गया था. मोदी अपने राज्य में चुनाव लड़ रहे थे, देश के प्रधानमंत्री हैं. जबकि राहुल को वो शहजादा बताते थे, लेकिन गुजरात में हुई रैलियों में राहुल मोदी से कहीं कम नहीं पड़े या यूं कहें कि उम्मीद से ज्यादा समर्थन मोदी के गृहराज्य में मिला. मोदी ने 34 रैलियां कीं... राहुल गांधी ने 30 रैलियां कीं, लेकिन पीएम मोदी ने राहुल को अपनी रैलियों में खूब निशाना बनाया. जबकि कांग्रेस ने पीएम मोदी को लेकर बयानबाजी में अपने नेताओं को संयम बरतने की सलाह दी. हालांकि, मणिशंकर अय्यर के बयान को मुद्दा बनाकर पीएम मोदी ने गुजराती अस्मिता और गुजरात के बेटे के अपमान का मुद्दा बनाने में कामयाब रहे.

मोदी बनाम राहुल के इस चुनाव में दूसरी सबसे बड़ी रणनीति हिंदू-मुस्लिम जैसे संवेदनशील मुद्दे को लेकर रही, क्योंकि राहुल ने न सिर्फ मोदी स्टाइल में गुजरात के मंदिरों में खूब माथा टेका, बल्कि हिंदू-मुस्लिम ध्रुविकरण से बचने के लिए इस मुद्दे पर बयान देने से परहेज ही किया. हालांकि, इस फ्रंट पर भी मोदी राहुल की रणनीति को भेदने में कामयाब रहे और राम मंदिर को लेकर कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलील को मुद्दा बना लिया. आखिरी दौर में पीएम मोदी को न सिर्फ मंदिर बल्कि पाकिस्तान के मुद्दे को गुजरात चुनाव में लाना पड़ा. ज़ाहिर है इस मामले में भी पीएम मोदी राहुल पर भारी पड़े और जो बीजेपी चाहती थी, उसमें कामयाब हुई.

आंकड़े अलार्म बजाने वाले हैं...

बीजेपी जीत गई और बहुमत के आंकड़े से भी सीटें ज्यादा ले आयी, लेकिन फिर भी 2019 के लिहाज़ से गुजरात चुनाव के आंकड़े बीजेपी के लिए अलार्म बजाने वाले हैं, क्योंकि बीजेपी भले ही 49 फीसदी वोट शेयर के बूते गुजरात में जबरदस्त समर्थन का दावा कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि इस बार कांग्रेस को 41.5 फीसदी वोट मिले हैं. जो 2012 के मुकाबले करीब तीन फीसदी ज्यादा हैं. अब जो सबसे बड़ी खतरे की घंटी है जिसमें कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले करीब 10 फीसदी वोट ज्यादा मिला है. 2014 में कांग्रेस को 33 फीसदी वोट मिला था, जबकि इस चुनाव में 42 फीसदी मिला है. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले गुजरात में बीजेपी का वोट शेयर करीब 10 फीसदी कम हो गया है.

हार-जीत का अंतर...

सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कांग्रेस इस चुनाव में बहुमत से 13 सीट पीछे रह गई, जबकि इतनी ही ऐसी सीटें हैं, जो कांग्रेस 1000 से 3000 वोटों के मार्जिन से हारी है. हालांकि, कुछ सीटें ऐसी भी हैं जो कांग्रेस 1000 से भी कम वोटों के मार्जिन से जीती हैं, लेकिन यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि "ऐन वक्त" पर पीएम मोदी ने अपनी "रणनीति" न बदली होती, तो ये छोटा-छोटा मार्जिन बीजेपी के लिए बहुत भारी पड़ सकता था. इसके अलावा शहरी इलाकों में बढ़त न मिली होती, तो नतीजे ग्रामीण इलाकों में बीजेपी के लिए बहुत अच्छे नहीं हैं.

2014 में लोकसभा चुनाव मोदी ने गुजरात 26-0, राजस्थान 25-0, मध्यप्रदेश 27-2, छत्तीसगढ़ 10-1, झारखंड 10-0 और उत्तराखंड 5-0 से जीता था. इसको दोहराना चुनौती होगी. 2019 का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि एक तो राहुल गांधी अब मोदी के सामने कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर होंगे, गुजरात से जो मजबूती मिली है वो तो साथ होगी है. इसके अलावा विपक्ष में नीतिश कुमार मोदी के खिलाफ एक चेहरा हुआ करते थे, वो मोदी के खेमे में है, तो नीतिश की खाली हुई जगह का फायदा एकीकृत विपक्ष के मंच पर राहुल को ही होगा.

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लेखक

डॉ. कपिल शर्मा डॉ. कपिल शर्मा @delhi.kapilsharma

लेखक टीवी टुडे में एंकर और पत्रकार हैं.

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