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Updated: 02 अप्रिल, 2017 01:12 PM
अरिंदम डे
अरिंदम डे
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पंजाब और गोवा के चुनाव में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ. हालाँकि, पार्टी पंजाब में 22 सीट ज़रूर जीती लेकिन गोवा में खाता भी नहीं खोल पायी. लेकिन जो पंजाब में हवा बनाई गई थी उसके चलते शायद पार्टी के कैडर ज़्यादा निराश है. यह निराशा गुजरात के आने वाले चुनाव की तैयारियों पर भारी भी पड़ सकती है.

हालाँकि, गुजरात के विधानसभा चुनाव में अभी देर है, फ़िलहाल दिल्ली के एमसीडी चुनाव पार्टी और उसके नेता केजरीवाल जी के लिए बड़ी चुनौती है. अगर पार्टी एमसीडी चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करती है तो उससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में नयी जोश आ जाएगा.

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2014 के भारी बहुमत के बाद पार्टी को पहला झटका तब लगा जब कुछ ही दिनों बाद पार्टी टूट गयी. पार्टी को बनाने वाले प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पार्टी से निकाल दिया गया. इस टूट के बाद से ही आम आदमी पार्टी और किसी पार्टी जैसे ही लगने लगी.

दिल्ली में सत्ता में आने के बाद पार्टी ने कुछ काम तो किया. पानी और बिजली पर किये गए वादे निभाए, मोहल्ला क्लिनिक इसकी बड़ी सफलता रही, हालाँकि जितने क्लिनिक खोलने के वादे किये गए थे उससे काफी कम ही खुले. लेकिन यह सब उपलब्धियों से बढ़कर रही केजरीवाल सरकार के साथ पूर्व उपराज्यपाल के टकराव की खबरें. नए उपराज्यपाल अनिल बैजल से भी कुछ अच्छे अच्छे संबंध होने के संकेत नहीं दिख रहे हैं.  

मुश्किल यह है कि नकारात्मक संदेश जल्दी और दूर तक फैलते हैं. यही संकेत सिर्फ दिल्ली ही नहीं, और राज्यों में भी गया है. जो वोटर बदलाव के लिए वोट करते हैं वह भी सोचने पे मजबूर हो गए है कि कहीं आम आदमी पार्टी की सरकार बनने पर वैसे ही केंद्रीय सरकार के साथ तकरार के चलते वहां भी काम रुक जाये, आगे न बढ़ पाए.

कोई भी आंदोलन में एक से ज़्यादा मोर्चे पर तकरार लाज़मी है, लेकिन राजनीति में आपको एक वक़्त में कोई एक रणनीति लेकर चलना पड़ता है. प्रधानमंत्री मोदी लगभग हर मुद्दे पर केजरीवाल जी के निशाने पर रहे हैं.

एमसीडी चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के विधायक वेद प्रकाश जी का भाजपा में घर वापसी हो गयी. पार्टी में अंदरूनी गणतंत्र को लेकर सवाल उठते रहे हैं. ऐसे में कैडर का मनोबल अगर गिरता रहा तो एमसीडी चुनाव पार्टी के लिए मुश्किल चुनौती साबित हो सकती है.

माध्यम वर्ग का आम आदमी पार्टी से मोहभंग होने लगा है, लेकिन गरीब तबकों में अभी भी पार्टी की पकड़ मजबूत है. एमसीडी चुनाव में यह एक फैक्टर हो सकता है.

दूसरा अहम फैक्टर यह होने जा रहा है कि नितीश कुमार जी की जनता दल यूनाइटेड 272 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने जा रही है. पूर्वांचली वोट ने 2015 में आम आदमी पार्टी को विशाल बहुमत दिलाया था वह वोट अब बंट जायेगा. भाजपा ने भी पूर्वांचलियों का नब्ज़ पकड़ने के लिए मनोज तिवारी और रवि किशन को मैदान में उतार दिया है. दिल्ली में पूर्वांचली वोटरों की तादात 40% है और कोई भी चुनाव जीतने के लिए उनका समर्थन ज़रूरी है.

इन सब के बीच में केजरीवाल जी का सबसे बड़ा कमजोरी - सबको साथ लेकर न चल पाने की उनको बड़ा झटका दे सकती है.

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अरिंदम डे अरिंदम डे @arindam.de.54

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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