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Updated: 26 सितम्बर, 2018 03:23 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने आधार को पूरी तरह सुरक्षित माना है. आधार को लेकर अब तक जो आशंका जतायी जा रही थी वो अपनी जगह है. देखा जाये तो अब गूगल और कई उन सभी ऐप्स से बचने की जरूरत है जो कहीं ज्यादा खतरनाक हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने आधार को मान्यता जरूर दी है, लेकिन सरकार को मनमानी करने की कोई खुली छूट भी नहीं मिली है. फिर भी उन खतरों से भी आगाह रहना जरूरी है जो ज्यादा खतरनाक हैं.

जिनसे बच कर रहने की जरूरत है वे ही तो असली सुपरबग हैं. अब तो हालत ये हो गयी है कि अगर कोई आपस में कुछ डिस्कस कर रहा है तो कुछ ही देर बाद उसके टाइमलाइन पर उसी वस्तु के विज्ञापन छाये हुए नजर आते हैं. ये हाल उनका भी है जो गूगल के एलेक्सा की पहुंच से बहुत दूर हैं - मतलब, हर वक्त आपके आस पास कोई है जो देख भले न रहा हो पर सुन जरूर रहा है.

आधार के बगैर भी तो सब सरकार के राडार पर ही हैं

एक कहावत है - बद अच्छा बदनाम बुरा. आधार के मामले में पूरी तरह तो नहीं लेकिन कुछ हद तक ये कहावत लागू जरूर होती है. देखें तो विरोधी आवाजों की बस्ती में आधार बस बदनाम भर है, वरना आम जिंदगी में उससे भी बड़े खतरों की बहुत पहले ही एंट्री हो चुकी है.

आधार के विरोधी में खड़े लोग जो बड़ी आशंका जता रहे हैं, वो है - सरकार आधार के जरिये लोगों के डाटा जुटा रही है और हरदम निगरानी करना चाहती है.

aadharआधार से आगे जहां और भी है...

सीनियर पत्रकार शेखर गुप्ता द प्रिंट वेबसाइट पर अपने ओपिनियन पीस में तमाम वाकयों का जिक्र करते हुए यही बता रहे हैं कि आधार न हो तो भी सराकर के लिए लोगों के डाटा जुटाना कोई मुश्किल काम नहीं है.

शेखर गुप्ता लिखते हैं - "अगर सरकार आप पर नजर रखना चाहे, तो उसे आधार की जरूरत भी नहीं है. लेकिन गरीबों को इसकी महती जरूरत है और यही वजह है कि वे इसका विरोध नहीं कर रहे हैं.

आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभी अभी आया है लेकिन उसके लिए एक बड़ी जमात कतार में पहले से खड़ी हैं. 31 मार्च की डेडलाइन से पहले ही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में साफ कर दिया गया था कि फैसला आने तक बैंक अकाउंट और मोबाइल नंबर लिंक कराना जरूरी नहीं है - फिर भी लोग आधार बनवाते रहे. हाल फिलहाल तो हालत ये हो चली है कि गांवों और कस्बों में आधार बनवाने के लिए टोकन लेने पड़ रहे हैं - और कहीं दो-तीन दिन तो कहीं कहीं हफ्ते भर बाद नंबर आ रहा है.

आधार की संवैधानिक वैधता पर अपने फैसले में जस्टिस एक सीकरी ने तो आधार को आम नागरिक की पहचान बतायी है. जस्टिस सीकरी का मानना है कि आधार से गरीबों तो ताकत मिलती है - और आधार ने समाज के वंचित तबकों को सशक्त किया है और उन्हें एक पहजान दी है.

जहां तक लोगों के डाटा जुटाने की सरकारी कोशिशों का सवाल है, तो जाने माने आर्थिक विशेषज्ञ ज्यां द्रेज ने तो आयुष्मान भारत को भी इसी कैटेगरी में खड़ा कर दिया है. हाल ही में बीबीसी हिंदी से बातचीत में ज्यां द्रेज का कहना रहा, "₹ 2000 करोड़ के खर्च कर के 50 करोड़ लोगों का डाटा सरकार के पास होगा... मुझे फिलहाल ये स्वास्थ्य योजना कम और बड़े पैमाने पर किया जा रहा डाटा कलेक्शन का काम लग रहा है."

ज्यां द्रेज का कहना है, "मेरी समझ में आयुष्मान भारत की सच्चाई ये है कि स्वास्थ्य सेवा के बहाने लोगों का स्वास्थ्य संबंधी डाटा इकट्ठा करने की कोशिश हो रही है. इसे आईटी सेक्टर के लोग पब्लिक डाटा प्लेटफॉर्म कहते हैं."

जब जल नहीं गूगल ही जीवन हो

आज के दौर में जल ही जीवन कहने से ज्यादा सटीक हो ये कहना - 'गूगल ही जीवन है.'

हकीकत बिलकुल यही है. सोशल मीडिया और हमारी वर्चुअल जिंदगी बहाल करने के लिए गूगल जो ऑक्सीजन देता है उसके भी रिसोर्च आम अवाम ही है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से बहुत पहले ही गूगल ने जो एंड्रॉयड बनाया वो करता क्या है - सभी के सारे डाटा ही तो जुटाता है.

ये डाटा ईश्वर की तरह चाहे जब जिस रूप में मिले वो पूरी श्रद्धा से प्रसाद की तरह ग्रहण करता है. एक बार डाटा प्राप्ति के बाद उसे जिंदगी भर के लिए अपने पास सुरक्षित रखता है. पूरी जिंदगी भी लोगों की नहीं बल्कि अपनी जिंदगी. लोग तो आते जाते रहेंगे. डाटा तो जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी काम आएगा उन्हें.

कोई भी कितनी सावधानी क्यों न बरते गूगल जैसों के ग्लोबल सर्वर पर आपके मूवी देखने से लेकर होटल में टहरने और चेक आउट करने तक सारे रिकॉर्ड मौजूद रहते हैं. आखिर कितने ऐसे ऐप हैं जो बगैर आपके फोनबुक, एसएमएस और कॉल करने की अनुमति दिये बिना इस्तेमाल किये जा सकते हैं?

आधार को लेकर द ट्रिब्यून अखबार के खुलासे और रिपोर्टर के खिलाफ एफआईआर के अलावा भी इसके असुरक्षित होने के कई उदाहरण मीडिया के जरिये सामने आये हैं, लेकिन सबसे दिलचस्प रहा UIDAI के चेयरमैन का आधार चैलेंज.

जब UIDAI के चेयरमैन ने अपना आधार नंबर ट्विटर पर शेयर किया तो एक हैकर ने उनके डीटेल्स जुटा कर सामने रख दिये. डीटेल्स में बैंक अकाउंट नंबर, कुछ फोटो और फोन नंबर थे.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सिकरी ने कहा है कि आधार कार्ड पूरी तरह सुरक्षित है. UIDAI के चेयरमैन के केस में भी राय तकरीबन यही बनी थी कि हैकर ने आधार हैक करने की बजाये उनसे जुड़े तमाम जानकारियां जुटाईं और एक जगह लाकर रख दिया था.

लब्बोलुआब तो यही है कि कभी किसी एक कारण तो कभी किसी और वजह से लोग अपनी जानकारियां जहां तहां शेयर करते रहते हैं - और वे सारी कहीं न कहीं इकट्ठा होती रहती हैं. एक बार ऐसी जानकारियां आम हो गयीं तो हर किसी की कुंडली आसानी से बनायी जा सकती है.

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