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Updated: 21 जनवरी, 2016 12:19 PM
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"वो आत्महत्या करने वाला व्यक्ति नहीं था." रोहित वेमुला के बारे में ये बात किसी और ने नहीं बल्कि नंदनम सुशील कुमार ने बीबीसी से बातचीत में कही है. सुशील कुमार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हैदराबाद शाखा के अध्यक्ष हैं - और उन्हीं की शिकायत पर बंडारू दत्तात्रेय ने स्मृति ईरानी को पत्र लिखा. उसी पत्र और उसके बाद केंद्र की ओर से भेजे गए रिमाइंडर पर वाइस चांसलर ने रोहित वेमुला सहित पांच छात्रों को निकाल दिया.

वेमुला की मौत पर राजनीति, विरोध और बहस अपने अपने तरीके से जारी है. कुछ लोग इसे कोल्ड ब्लडेड मर्डर तो कुछ रोहित को कायर भी करार दे रहे हैं.

बकौल सुशील कुमार

सुशील ने ही अंबेडकर स्टुडेंट्स एसोसिएशन के छात्रों द्वारा पिटाई का आरोप लगाया था जिसके चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. वैसे मेडिकल रिपोर्ट और तब के हालात के चलते सुशील के दावों पर सवाल उठने लगे हैं.

बीबीसी से बातचीत में सुशील मानते हैं कि रोहित दब्बू इंसान नहीं था - और वो इस पूरे मामले की सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की निगरानी में या सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं.

जांच की मांग के पीछे सुशील का अपना तर्क भी है, “मैं इसलिए जांच की मांग कर रहा हूं क्योंकि रोहित हार मानने वाला नहीं था. हमारी हमेशा बहस होती थी. वो किसी से नहीं डरता था. वो हमारे पोस्टर फाड़ दिया करता था और सीधे सीधे कहता था कि उसे हिंदुत्व या केसरिया रंग पसंद नहीं है.”

वो सुइसाइड नोट

रोहित का शानदार एकेडमिक कॅरिअर रहा. उन्हें यूजीसी की तरफ से जूनियर फेलोशिप मिली हुई थी, जिसमें से कुछ पैसे बचाकर वो घर भी भेजते थे. साथियों के अनुसार क्लास में नियमित तौर पर मौजूद रहने के साथ साथ रोहित काफी समय लाइब्रेरी में भी होते थे. रोहित को राजीव गांधी राष्ट्री फेलोशिप भी मिली हुई थी.

आइए एक बार फिर रोहित के सुइसाइड नोट पर गौर करते हैं, "एक इंसान की अहमियत उसकी तात्कालिक पहचान और नजदीकी संभावना तक सीमित कर दी गई है. इंसान एक वोट, एक आंकड़ा, कोई वस्तु बन कर रह गया है. कभी भी इंसान को उसकी बुद्धि से नहीं आंका गया. हर क्षेत्र में, अध्ययन में, गलियों में, राजनीति में, मरने में और जीने में... "

इस पत्र का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तो एक्सपर्ट ही करेंगे, लेकिन जो बातें रोहित ने लिखी है उनके मायने तो साफ तौर दिखाई दे रहे हैं. भावनाओं की बात कौन करे जब शब्द ही चीख चीख कर बोल रहे हैं.

इसी पत्र में रोहित कहते हैं, "इस क्षण मैं आहत नहीं हूं. मैं दुखी नहीं हूं. मैं बस खाली हूं."

ये तो रहा सुइसाइड नोट, रोहित ने इससे पहले वाइस चांसलर को एक पत्र लिखा था जिसमें 'इच्छा मौत' का जिक्र था. रोहित ने वाइस चांसलर से कहा था कि क्यों नहीं दलित छात्रों के कमरे में इसके लिए एक रस्सी मुहैया करा दी जाती.

रोहित ने हॉस्टल के एक कमरे में अंबेडकर स्टुडेंट्स एसोसिएशन के बैनर को फंदा बना कर फांसी लगा ली थी.

जिम्मेदारी क्यों नहीं बनती?

जब रोहित ने वाइस चांसलर को ऐसा पत्र लिखा था तो उसे गंभीरता से क्यों नहीं लिया गया? ये बड़ा सवाल है. कई और भी सवाल हैं.

आत्महत्या जैसा कदम उठाना मामूली बात नहीं होती?

अगर रोहित मानसिक रूप से बीमार थे या डिप्रेशन के शिकार थे तो इलाज की व्यवस्था क्यों नहीं हुई?

वैसे तो कैंसर जैसी बीमारी को भी कई लोग बहादुरी से मात दे देते हैं. लेकिन इस लड़ाई में उनके इर्द गिर्द के लोगों की बड़ी भूमिका होती है. ये समाज भी उसका साथ देता है - लेकिन ऐसे कितने लोग हैं जो कैंसर को बहादुरी से धूल चटाते देखे गए हैं - बमुश्किल, गिनती के.

अगर ऐसा ही सपोर्ट डिप्रेशन के शिकार किसी शख्स को मिले तो निश्चित रूप से वो भी बहादुरी दिखाएगा.

रोहित जिस कैंसर का शिकार हुए हैं वो तो और भी भयंकर है. वो तो सिस्टम, समाज और सियासत का डेडली-कॉम्बो कैंसर है.

क्या किसी ने ये जानने की कोशिश की कि वेमुला को ये आखिरी कदम क्यों उठाना पड़ा? ये फैसला लेते वक्त उसकी मानसिक स्थिति क्या रही होगी?

स्मृति ईरानी को लिखे अपने पत्र में बंडारू दत्तात्रेय ने यूनिवर्सिटी को एंटी-नेशनल गतिविधियों के गढ़ जैसा बताया है. बंडारू वहां से सांसद हैं, केंद्र में मंत्री हैं.

अगर वाकई वो आतंकवादी गतिविधियों को समर्थक था, फिर तो वाकई देश के लिए खतरा था. फिर सिर्फ यूनिवर्सिटी से निकालने की ही बात क्यों?

अगर उन्हें ऐसा लगा तो ये मामला पुलिस या एनआईए को क्यों नहीं सौंपा गया?

अवॉर्ड वापसी - II

कन्नड़ साहित्यकार एमएम कलबुर्गी की हत्या के विरोध में हिंदी साहित्यकार उदय प्रकाश ने सबसे पहले साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापस किया था. बाद में हिंदी के ही अशोक वाजपेयी ने भी अकादमी अवॉर्ड लौटा दिया था. इस बार वाजपेयी ने लीड ली है.

मजबूर होकर रोहित के आत्महत्या करने के विरोध में वाजपेयी ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की ओर से मिली डी. लिट की डिग्री लौटाने की घोषणा की है. वाजपेयी ने कहा, "दलित छात्र रोहित वेमुला लेखक बनना चाहते थे, लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन दलित विरोध के रुख और असहमति बर्दाश्त न करने के रवैये ने उन्हें खुदकुशी करने पर मजबूर कर दिया. मैंने यूनिवर्सिटी अथॉरिटी के खिलाफ विरोध जताने के लिए डी. लिट की उपाधि लौटाने का फैसला निर्णय किया है."

मौत पर राजनीति

बंडारू दत्तात्रेय और वाइस चांसलर के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई है. मायावती की पार्टी बीएसपी ने वीसी के खिलाफ हत्या का मुकदमा और स्मृति ईरानी और बंडारू को बर्खास्त करने की मांग कर रही है. राहुल गांधी ने भी स्मृति ईरानी सहित जिम्मेदार सभी लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की मांग की है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से माफी मांगने को कहा है.

आम आदमी पार्टी की रैली में दौसा के किसान गजेंद्र सिंह की खुदकुशी के कुछ दिन बाद केजरीवाल ने भी माफी मांगी थी. अब प्रधानमंत्री के सामने उन्होंने ऐसी ही मांग रखी है.

गजेंद्र की खुदकुशी के बाद भी खूब राजनीति हुई थी. केजरीवाल के साथी आशुतोष तो आज तक चैनल पर फूट फूट कर रोये थे. महीनों बीत चुके हैं लेकिन लगता नहीं कि कहीं कुछ बदला है?

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