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Updated: 04 अगस्त, 2018 03:34 PM
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अब तो लगने लगा है कि 2019 में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी मैदान में अकेला चेहरा होंगे - क्योंकि विपक्षी खेमे में पीएम कैंडिडेट पर फैसला चुनाव बाद ही हो पाएगा, ऐसा लगता है. ये ममता बनर्जी और मायावती के चेहरे पर राहुल गांधी की तरफ से कोई ऐतराज न होने की बात के बाद का डेवलपमेंट है.

साथ ही, गैर-बीजेपी और गैर-कांग्रेस के नाम से बिखर रहा विपक्ष अब एकजुट होकर प्रधानमंत्री मोदी को कड़ी चुनौती देने की तैयारी में लगता है - और सोनिया गांधी इसमें बड़े रोल में खड़ी हो गयी हैं. दरअसल, सोनिया गांधी ही ऐसी नेता हैं जिनकी बात टालना विपक्ष के किसी भी नेता के लिए मुश्किल हो रहा है.

'मोदी-मोदी' और कोई नहीं, फिर भी मुश्किल...

अभी दो महीने भी नहीं हुए होंगे जब एक इंटरव्यू में एनसीपी नेता शरद पवार तीसरे मोर्चे को लेकर बेहद निराश नजर आये. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ तीसरा मोर्चा खड़ा करने की हाल की कोशिशों में शरद पवार की बड़ी अहम भूमिका नजर आ रही थी. तीसरे मोर्चे को लेकर हुए एक सवाल पर शरद पवार का जवाब था, "ईमानदारी से कहूं तो मैं महसूस करता हूं कि कोई महागठबंधन या तीसरा मोर्चा संभव नहीं है..."

narendra modiमोदी के खिलाफ एकजुट विपक्ष की चुनौती होगी

कांग्रेस छोड़ कर एनसीपी बनाने के बाद और फिर नये सिरे से गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी मोर्चा खड़ा करने में जुटे शरद पवार का ये बयान बीजेपी नेताओं का उत्साह बढ़ाने वाला साबित हो रहा था. बीजेपी नेता मान कर चलने लगे थे कि विपक्ष तो बिखरा हुआ है. मोदी के लिए चुनौती का तो सवाल ही पैदा नहीं होता. यूपी को लेकर जरूर बीजेपी में चिंता की बात रही - और प्रधानमंत्री मोदी के करीब आधा दर्जन दौरे इस बात के सबूत हैं.

अब तो लगता है विपक्ष ने मोदी के खिलाफ 2019 के मैदान में चौके-छक्के की जगह एक-एक रन पर फोकस कर रहा है. सीधे सीधे तो नहीं दिखेगा कि कोई एक चेहरा मोदी को टक्कर दे रहा है, लेकिन जमीन पर हर सूबे में और हर सीट पर खास रणनीति के साथ लड़ाई की तैयारी चल रही है. ये आइडिया बीजेपी के बागी नेता अरुण शौरी की ओर से सुझाया गया था जब ममता बनर्जी दिल्ली आकर विपक्षी नेताओं से तूफानी मुलाकात कर रही थीं. ये शरद पवार की ही वो कोशिश रही जिसमें ममता बनर्जी प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदार के रूप में उभर कर सामने आयीं - और आत्मविश्वास इस कदर लबालब हो गयीं कि कांग्रेस को अपने मोर्चे का न्योता दे दिया. हालांकि, कांग्रेस नेताओं ने तपाक से ममता का ऑफर ठुकरा दिया और राहुल गांधी के नाम पर अड़ा हुआ दिखा कर उनके दावों को सीधे सीधे खारिज कर दिया था.

अब जो मीडिया में सूत्रों के हवाले से खबरें आ रही हैं उनसे तो ऐसा लगता है शरद पवार का उस बयान में निराशा तो दिखावे की थी. असल में तो पर्दे के पीछे बन रही रणनीतियां रहीं जिनके पीछे सोनिया गांधी का दिमाग काम कर रहा था.

संकटमोचक की भूमिका में रहेंगी सोनिया गांधी

ममता बनर्जी इस बार जब सोनिया गांधी से मिलने पहुंचीं तो वहां राहुल गांधी भी मौजूद थे. मुलाकात के बाद ममता के तेवर थोड़े बदले हुए लगे. ममता ने कहा कि वो प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हैं. हालांकि, कुछ ही दिन पहले कांग्रेस की ओर से भी कहा गया था कि ममता या मायावती के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनने पर उसे कोई दिक्कत नहीं है.

ममता के मिजाज में ये बदलाव और शरद पवार के स्टैंड में परिवर्तन यूं ही नहीं है. इसमें खास तौर पर सोनिया गांधी का सीधा रोल माना जा रहा है. ऐसा लगता है कि राहुल गांधी की कमजोरियों को दुरूस्त करने के लिए सोनिया खुद तो जुटी ही हैं, प्रियंका को भी राहुल के साथ जोड़ दिया है. फिलहाल राहुल की सबसे बड़ी सलाहकार प्रियंका गांधी ही हैं.

opposition karnatakaएक तरफ मोदी और दूसरी तरफ चेहरे ही चेहरे होंगे!

सत्याग्रह वेबसाइट ने इस बारे में गांधी परिवार को ठीक से जानने वाले एक कांग्रेस नेता का हवाला दिया है. बातचीत में कांग्रेस नेता कहते हैं, 'राहुल ने अपनी सियासी पारी के शुरुआती साल में जो गलतियां की वे राहुल की नहीं उनके सलाहकारों की थीं. इसका खामियाजा वो आज तक भर रहे हैं. इसलिए राहुल गांधी ने इस बार अपनी बहन को ही अपना प्रमुख सलाहकार बनाया है. वो सियासत को बहुत अच्छी तरह समझती तो हैं, लेकिन खुद को सियासत से दूर रखती हैं.'

जिस तरह 2015 में प्रियंका गांधी ने यूपी में समाजवादी पार्टी से गठबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी, सोनिया गांधी काफी कुछ वैसा ही कर रही हैं. माना जा रहा है कि जब भी राहुल गांधी कहीं फंसते हैं सोनिया की ओर से किसी नेता को सिर्फ एक कॉल सारी मुश्किलें आसान कर देती है. कर्नाटक इसकी मिसाल है. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा राहुल गांधी से बात करने को तैयार नहीं थे. मायावती और गुलाम नबी आजाद की बातचीत और फिर सलाह के बाद सोनिया ने देवगौड़ा को फोन किया और बात बन गयी. यूपी में भी कुछ कुछ ऐसा ही बताया जा रहा है. अखिलेश यादव के कांग्रेस के साथ गठबंधन से इंकार के बाद कांग्रेस नेता मायावती पर डोरे डाल रहे थे, लेकिन जब बात नहीं बनी तो सोनिया से बात करायी गयी. मायावती अब कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए तैयार लग रही हैं. वैसे मायावती का वो बयान भी अहम है कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही वो कांग्रेस के साथ गठबंधन के बारे में सोचेंगी. हालांकि, मायावती का ये बयान राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनावों के सिलसिले में देखा गया. सूत्रों के ही हवाले से ऐसी खबर भी है कि तीनों राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस बगैर किसी चेहरे के जंग लड़ेगी - जबकि सामने वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह जैसे दिग्गज बीजेपी की ओर से होंगे.

सिर्फ भाषण नहीं, अब एक्शन होगा!

खबर ये भी है कि राहुल गांधी का अमेठी से चुनाव लड़ना तकरीबन तय है, लेकिन रायबरेली से कौन होगा अभी फाइनल नहीं है. जब अमित शाह पूरे लाव लश्कर के साथ रायबरेली पर धावा बोलने की तैयारी कर रहे थे तभी पूछे जाने पर सोनिया गांधी का कहना था कि उनके चुनाव लड़ने या न लड़ने के बारे में फैसला कांग्रेस पार्टी करेगी. अंतिम मुहर लगने तक रायबरेली से सोनिया और प्रियंका दोनों की ही उम्मीदवारी के कयास लगाये जाते रहेंगे.

जिस तरह संसद में राहुल गांधी प्रधानमंत्री के से गले मिले या गले पड़े थे, ऐसे एक्शन आगे भी देखने को मिल सकते हैं. असल में कांग्रेस की रणनीति है कि अगले आम चुनाव में जताना चाहते हैं कि कांग्रेस किसी से नफरत नहीं करती - न हिंदू से न मुसलमान से.

खास बात ये है कि ये बातें महज भाषण का हिस्सा नहीं होंगी बल्कि राहुल गांधी के एक्शन में दिखेगी. यानी इस बार सिर्फ आस्तीन चढ़ाने और गुस्सा दिखाते राहुल गांधी नहीं बल्कि सरेराह फ्री-हग देते भी देखे जा सकते हैं.

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