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Updated: 11 जनवरी, 2021 09:43 PM
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के निशाने से बीजेपी नेतृत्व हट ही नहीं रहा है. जब भी वो कुछ बोलते हैं या कुछ भी करते हैं, ऐसा लगता है उनके सामने बीजेपी नेता अमित शाह (Amit Shah) का ही चेहरा घूम रहा है. हो सकता है नीतीश कुमार को ये लगता हो कि वो जहां भी हैं जो भी कर रहे हैं, अमित शाह उन पर बराबर नजर बिठाये हुए हैं - और ये नजर उनके साथी बीजेपी कोटे से बने दो-दो डिप्टी सीएम हैं.

तभी तो नीतीश कुमार बयानों के साथ साथ अपने एक्शन से भी बीजेपी नेतृत्व को मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं - और जब भी मौका मिल रहा है ये याद दिलाना नहीं भूलते कि बीजेपी ने उनके साथ धोखा किया है, लेकिन वो ऐसा कतई नहीं करेंगे. हालांकि, बीजेपी को जिम्मेदार ठहराने का कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे हैं - मसलन, कैबिनेट विस्तार (Cabinet Expansion) भी बीजेपी की वजह से ही अब तक लटका हुआ है.

जल जीवन हरियाली कार्यक्रम के आयोजन में भी नीतीश कुमार ने ये जताने की कोशिश की कि कुर्सी को लेकर वो क्या भाव रखते हैं. कार्यक्रम में दोनों डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी भी मौजूद थीं और ग्रामीण विकास मंत्री विजय चौधरी के अलावा सभी विभागों के प्रधान सचिव भी. मंच पर सबके लिए कुर्सियां लगायी हुई थीं और उनमें से एक बड़ी कुर्सी थी. जाहिर है बड़ी कुर्सी मुख्यमंत्री के लिए रखी गयी थी.

मंच पर चढ़ने के बाद नीतीश कुमार उस बड़ी और ऊंची कुर्सी पर बैठते ही उठ कर खड़े हो गये - और फिर नयी कुर्सी मंगवायी गयी. नयी कुर्सी बाकियों के बराबर ही रही. नीतीश कुमार छोटी कुर्सी पर बैठे और कार्यक्रम आगे बढ़ा.

ये वाकया भी नीतीश कुमार के कुर्सी को लेकर अपनी भावना जताने का अवसर बना. नीतीश कुमार भले ही अपनी तरफ से मैसेज भिजवाने की कोशिश करते आ रहे हों, लेकिन मकसद तो तब पूरा हुआ मान जाएगा जब नीतीश कुमार का मैसेज अमित शाह स्वीकार भी करें.

सेवा, समाजवाद और सियासत

नीतीश कुमार की एक कोशिश बिहार के लोगों को भी संदेश देने की है. वो बार बार बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री बने रहने का उन्हें कोई शौक नहीं रह गया है. हर मोड़ पर वो ऐसा मौका ढूंढ ही ले रहे हैं जब वो बता सकें कि मुख्यमंत्री बनने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रही, ये तो बीजेपी नेताओं की सलाह भरी गुजारिश रही जो मुख्यमंत्री पद स्वीकार कर लिया है. बीच बीच में ये भी जताने की कोशिश रहती है कि फिर से मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी उनको कोई मोह-माया नहीं है - बोल भी देते हैं, एनडीए जिसे चाहे मुख्यमंत्री बना सकता है.

मौका देख कर नीतीश कुमार बीजेपी नेतृत्व को ये नसीहत देना भी नहीं चूक रहे हैं कि वो राजनीति में क्यों बने हुए हैं. वो लोगों को अपनी और बीजेपी की राजनीति में बुनियादी फर्क समझाना भी नहीं भूल रहे हैं - क्या नीतीश कुमार बिहार के लोगों की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रहे हैं?

दोस्ती, धोखा, नैतिकता, समाजवाद - ये सारे कीवर्ड नीतीश कुमार के हालिया हाव भाव से लगतार प्रकट हो रहे हैं और वे उछल उछल कर बीजेपी को ही टारगेट कर रहे हैं. अंदर जो भी छटपटाहट है, बेचैनी है, नीतीश कुमार के हर एक्शन में बाहर निकल कर आ जाती है - और ऐसा अभी अभी हो रहा है, न कि पहले से ऐसा रहा है.

'हमारी राजनीति सेवा के लिए है, स्वार्थ के लिए नहीं' - ये भी नीतीश कुमार का ही कहना है. जेडीयू की दो दिन की स्टेट काउंसिल की बैठक में पार्टी नेताओं को धैर्य बनाये रखने की सलाह के साथ नीतीश कुमार ने ऐसा कहा, लेकिन ये बात भी बीजेपी के लिए ही एक संदेश रहा. एक सख्त संदेश.

'मजबूरी में महात्मा गांधी...' की जो मिसाल आम बोलचाल में दी जाती रही है, देखें तो लगता है - नीतीश कुमार वैसे ही मजबूरी की गांधीगिरी का अभ्यास कर रहे हैं.

nitish kumar, amit shahपहले की बात और थी, अब भला नीतीश कुमार अपनी राजनीति को बीजेपी अलग कैसे समझाने की कोशिश कर रहे हैं?

नीतीश कुमार हर बात के लिए अवसर गढ़ रहे हैं - और बीजेपी पर हमले के लिए नये नये किरदारों को सामने खड़ा कर दे रहे हैं. हर मौके पर चुनावों में बीजेपी के व्यवहार पर ही सबसे ज्यादा चर्चा होती है. जेडीयू की राज्य परिषद की बैठक में जेडीयू के वे उम्मीदवार भी थे जो चुनाव हार गये थे और सबके सब यही समझा रहे थे कि कैसे बीजेपी के कारण वो चुनाव हार गये.

जब जेडीयू नेता बैठक में बीजेपी को लेकर आग उगल रहे थे, नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह चुपचाप सबकी बातें सुन रहे थे. नेताओं के गुस्से को शांत कराने के लिए नीतीश कुमार ने भी पहले उसी टोन में अपनी बात रखी. नीतीश कुमार ने कहा कि सोशल मीडिया का दुष्प्रचार के लिए इस्तेमाल हो रहा है. तरह-तरह के भ्रम फैलाये जा रहे हैं, लेकिन, 'आप इसका उपयोग लोगों के बीच अपनी पॉजिटिव बातों को रखने में करिए लोगों को खासकर नई पीढ़ी को.' नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार के लिए उनकी सरकार ने बीते बरसों में जो काम किये हैं, वो लोगों तक नहीं पहुंच पाया. बोले, 'जनता दल यूनाइटेड के बिहार में 45 लाख सदस्य हैं, बावजूद इसके चुनाव के वक्त जमीनी स्तर तक पार्टी की बातें नहीं पहुंच पाई जिसकी वजह से पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. ये निराशाजनक है.

जेडीयू नेताओं की सारी शिकायतें सुनने के बाद, नीतीश कुमार ने समझाया, 'अपने क्षेत्र की सेवा उसी तरह कीजिए, जैसे आप चुनाव जीतकर करते हैं. देखिएगा आने वाले समय में हम लोग पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरेंगे.'

बीजेपी के प्रति जेडीयू नेताओं में गुस्से के भाव को प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने अपने शब्दों में प्रकट किया, 'हम लोग धोखा खा सकते हैं, दे नहीं सकते... हममें फिर से उसी तरह खड़ा होने की ताकत है. अगर कहीं कोई कमी है तो उसे दूर करने में हमें पूरे संकल्प के साथ जुटना है - हमारे पास कार्यक्रमों की फेहरिस्त है, नीति है, नीयत है और नीतीश कुमार जैसा चेहरा है.

नीतीश कुमार ने पार्टी नेताओं को समझाया कि वो समाजवादी सोच रखते हैं और उनकी राजनीति भी उसी हिसाब से चलती है. बिलकुल वैसी ही सोच, नीतीश कुमार के अनुसार, जैसी महात्मा गांधी की रही, जेपी यानी जयप्रकाश नारायण की रही, राम मनोहर लोहिया की रही - और वैसी ही जैसी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की रही.

ये नाम भी नीतीश कुमार ने इसलिए गिनाये ताकि अपनी पॉलिटिक्स को जस्टीफाई कर सकें. लोग भी नीतीश कुमार की पॉलिटिक्स को समाजवाद के संस्थापकों से जोड़ कर देखें - और दोहराते हुए फिर मैसेज देने की कोशिश हुई कि वो सेवा के लिए राजनीति करते हैं. जेडीयू कार्यकर्ताओं को भी समझाया कि जो लोग सेवा के लिए राजनीति करना चाहते हैं वे साथ रहें, वरना, न रहें. जो सेवा के लिए राजनीति करेगा उसे आगे बढ़ाया जाएगा. जो स्वार्थ के लिए राजनीति में आने की कोशिश करेगा वो किनारे कर दिया जाएगा. यहां भी जेडीयू नेता किरदार भर थे - निशाने पर तो बीजेपी नेतृत्व ही रहा. लगे हाथ ये भी दोहरा दिया - 'मैंने सबके कहने पर और दबाव देने पर मुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया... जनता की सेवा ही हमारा एकमात्र लक्ष्य है.' ये सब इस उम्मीद के साथ ही कहा जा रहा है कि बीजेपी नेतृत्व नीतीश कुमार को हल्के में लेने की गलती न करे - और बिहार के लोग भी समझें कि बिहार में अगर कुछ हो रहा है तो वो नीतीश कुमार की वजह से और अगर कुछ नहीं हो रहा है तो वो अमित शाह और बीजेपी के बाकी नेताओं की वजह से - यहां तक कि कैबिनेट विस्तार भी बीजेपी की वजह से ही रुका है.

कैबिनेट विस्तार भी बीजेपी ने लटका रखा है

मीडिया के पूछे जाने पर नीतीश कुमार बिना लाग लपेट के बोल भी देते हैं - जब तक पूरी बात नहीं हो जाती कैबिनेट विस्तार कैसे होगा. साफ है, बीजेपी के दबाव की बात हो रही है. बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी हाल ही में कुछ ऐसे ही दबाव की बात भी कही थी.

खुद ही कहते भी हैं नीतीश कुमार, 'पहले इतनी देर कभी नहीं हुई. मैं हमेशा पहले ही कैबिनेट विस्तार कर देता था.'

बीजेपी के नेताओं के साथ बातचीत को सामान्य बताते हैं. सरकार को लेकर बातचीत हुई. बिहार को लेकर चर्चा हुई.

जेडीयू और बीजेपी में जारी तनातनी के बीच पार्टी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव हैदराबाद मिशन को मंजिल तक पहुंचा कर फिर से पटना पहुंच चुके हैं. नीतीश कुमार ने इसी दौरान अध्यक्ष पद अपने पास से आरसीपी सिंह को सौंप दिया था, लिहाजा भूपेंद्र यादव को अब नये निजाम से मिलना ही था, वरना पार्टी को लेकर बातचीत के लिए भी नीतीश कुमार से ही मिलना होता. बाद में भूपेंद्र यादव ने बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की. उसी मुलाकात को लेकर नीतीश कुमार कह रहे थे कि सरकार का कामकाज पर चर्चा हुई, लेकिन कैबिनेट को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई. नीतीश कुमार ने कहा कि राजनीति को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई. अब नीतीश कुमार कहते हैं कि भूपेंद्र यादव से राजनीति की कोई बातचीत नहीं हुई तो मानना ही पड़ेगा.

बहरहाल, नीतीश कुमार चाहे जैसे भी संदेश देने या फिर समझाने की कोशिश करें, अमित शाह भी तो अच्छी तरह जानते ही हैं कि सेवा और स्वार्थ की राजनीति का फर्क क्या होता है? कम से कम नीतीश कुमार के मामले में तो कोई शक-शुबहे वाली बात नहीं ही होगी. पांच साल पहले बिहार से दिल्ली भेजे गये डीएनए सैंपल याद तो होंगे ही. वैसे भी वो कोई भूलने वाली बात है.

बीजेपी नेतृत्व भी भलीभांति मालूम है कि नीतीश कुमार न तो सेवा की राजनीति के लिए एनडीए में लौटे हैं - और न ही लालू से हाथ मिलाकर महागठबंधन बनाये थे - वो तो ये सब स्वार्थ की राजनीति के लिए ही करते आये हैं. जब तक स्वार्थ सिद्ध होता रहा, लालू के साथ रहे, जब बात नहीं बनी तो मोदी-शाह के साथ हो लिये - अब भी बीजेपी को ये आशंका बनी ही रहती होगी कि ना मालूम कब नीतीश कुमार को मौका मिले और एक बार फिर वो पाला बदल लें.

स्वार्थ के लिए होने वाली राजनीति के साइड इफेक्ट में जो यूं ही जो भी सेवा हो जाये - उसी को सेवा मान कर स्वार्थ की राजनीति में फर्क समझ लेना चाहिये!

नीतीश कुमार के ताजातरीन पैंतरे भी कुछ और नहीं उनके पंसदीदा प्रेशर पॉलिटिक्स का ही नमूना है - ऐसा ही तब भी देखने को मिला था जब चुनावों से पहले एनडीए का नेता चुना जाना था, तब भी जब सीटों का बंटवारा होना था - और मुख्यमंत्री पद को लेकर दिलचस्पी न दिखाना भी उसी की एक कड़ी रही जिसे अब भी वो बार बार दोहरा रहे हैं!

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