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Updated: 27 अक्टूबर, 2020 12:29 PM
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बिहार चुनाव में पहले चरण (Bihar Election First Phase Voting) के लिए प्रचार का वक्त खत्म होते होते परदे में ढका हर किसी का असली एजेंडा बाहर आने लगा है. अपनी रैलियों में नारेबाजी से परेशान नीतीश कुमार मौके पर ही आपा खो बैठते हैं तो चिराग पासवान दिल्ली वाले अरविंद केजरीवाल की तरह नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को सत्ता में आने पर जेल भेजने की धमकी देने लगे हैं. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के लिए भी ऐसी बातें किया करते थे. बोलने में क्या लगा है, चिराग पासवान को ये तो मालूम होगा ही कि न तो नीतीश कुमार, शीला दीक्षित हैं और न ही वो खुद अरविंद केजरीवाल हैं.

महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने भी अपने बारे में बहुतों की गलतफहमियां वोट डाले जाने से पहले ही दूर करने की कोशिश की है - असलियत जो भी हो, लग तो यही रहा है जैसे नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों में ही कुल्हाड़ी पर पैर मारने की होड़ मच चुकी है.

28 अक्टूबर को पहले चरण के मतदान में बिहार की 71 विधानसभा सीटों पर वोटिंग होने जा रही है - और इसमें नीतीश सरकार के 8 मंत्रियों के साथ साथ पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और बाहुबली नेता अनंत सिंह कि किस्मत पर भी EVM का बटन दबाया जाने वाला है.

नीतीश कुमार अपने वोटर के मन की बात क्यों नहीं सुनते

राजनीति में भी अगर कोई सोलह शृंगारों की फेहरिस्त बनती होगी तो चिराग पासवान के मुंह से कुछ वैसे ही शब्द फूट रहे हैं, 'किसी भ्रष्ट नेता को खुलेआम घूमने की इजाजत नहीं है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए सही जगह जेल ही है.'

अपनी दलील को दमदार बनाने की कोशिश में कहते हैं, 'मैंने कहा था कि यदि वो दोषी हैं, तो जांच के बाद उनको जेल भेजा जाएगा. ऐसा कैसे संभव है कि मुख्यमंत्री को इतने बड़े पैमाने पर चल रहे भ्रष्टाचार और घोटाले की भनक नहीं है?'

हैरानी की बात तो ये है कि चिराग पासवान को भी बिहार में हुए घोटालों की भनक तब लग रही है जब एनडीए में बंटने वाली सीटों के साझीदार नहीं बन पाये हैं! ऐसा न हो चुनाव नतीजे आते आते श्रीमुख से बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी कुछ अनोखी बातें सुनने को मिलें.

चिराग पासवान की चुनौतियों का तो नीतीश कुमार की टीम जवाब दे ही रही है, नीतीश कुमार हाल फिलहाल एक नयी चीज से परेशान देखे गये हैं. नीतीश कुमार की सभाओं में दो तरह के नारे लगाने वाले घुस कर आ जा रहे हैं - एक, लालू यादव जिंदाबाद और दूसरे, नीतीश कुमार मुर्दाबाद. वैसे भी जो शख्स 15 साल से सूबे का सीएम हो, राज्य का डीजीपी नौकरी छोड़ कर टिकट के लिए तरस रहा और जो नेता उसका भी टिकट काट देता हो, उसकी सार्वजनिक सभा में उसके 'कभी दोस्त, कभी दुश्मन' जैसे नेता का नाम लेकर जिंदाबाद के नारे लगें तो क्रोध पर काबू पाना निश्चित तौर पर मुश्किल होता होगा.

ऐसा वाकया पहली बार देखने को भी मिला तो सारण जिले की परसा सीट पर जहां नीतीश कुमार लालू यादव के समधी चंद्रिका राय के लिए वोट मांगने गये थे. अभी लालू यादव की बहू ऐश्वर्या के पैर छूकर जाने के बाद नीतीश कुमार ने भाषण देना शुरू ही किया था कि कुछ लोग लालू जिंदाबाद के नारे लगाने लगे - नीतीश ने भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी और बोल दिया कि वोट मत देना लेकिन शांत रहो. फिर बाहर करने का हुक्म जारी किया.

nitish kumar, tejashwi yadavदिन भर दोनोें चलते रहे और पहुंचे ढाई कोस!

ठीक वैसा ही वाकया मुजफ्फरपुर के कांटी में देखने को मिला जब कुछ लोग 'नीतीश कुमार मुर्दाबाद' के नारे लगाने लगे. वहां भी नीतीश कुमार के लिए क्रोध पर काबू पाना मुश्किल साबित हुआ और बोले कि 15 साल पहले के बिहार की हकीकत जाननी हो तो जाकर अपने मां-बाप से पूछें. लालू-राबड़ी का नाम न लेकर पति-पत्नी की सरकार के शासन की तरफ ध्यान दिलाते हुए सलाह दी कि नौजवान अपन पिता की जगह माताओं से पूछें तो ज्यादा सही जवाब मिलेगा. नीतीश कुमार का कहना रहा, 'अपने माता पिता से जाकर के पूछो कि स्कूल में पढ़ाई होती थी... कोई इलाज होता था? जानते हो पूरे बिहार में ये जो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है उसमें एक महीना में 39 मरीज आता था. एक दिन में एक... आप जरा सोच लो... और हम लोगों ने जो अस्पताल की स्थिति बनाई एक महीने में एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 10 हजार लोग इलाज के लिए जाते हैं. जरा जांच लो पूछ लो घर के अंदर... और पिता ठीक नहीं बताएगा लेकिन अपनी माता से पूछोगे वो सही बात बतला देंगी.'

नीतीश सरकार में खाद्य और आपूर्ति मंत्री मदन सहनी दरभंगा की बहादुरपुर सीट से जेडीयू उम्मीदवार हैं. जब इलाके में वो वोट मांगने पहुंचे तो लोग अपनी अपनी समस्याएं लेकर पहुंच गये. मंत्री ने जब चुनाव का हवाला देकर टालने की कोशिश की तो लोग भड़क उठे और नीतीश कुमार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. स्थिति की गंभीरता को समझते हुए मंत्री मदन सहनी मौके से फौरन निकल लिये.

जब इंडियन एक्सप्रेस ने गांव के ही एक नौजवान से मंत्री के विरोध का कारण पूछा तो जवाब था, गांव का स्वास्थ्य केंद्र पिछले बीस साल से बंद पड़ा है... देखने वाला कोई नहीं है... इलाके के हाई स्कूल की भी हालत अच्छी नहीं है - और वहां पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं है.'

अपनी सभाओं में नीतीश कुमार ये भी बताते नहीं थकते कि वो सरकार चलाने के लिए दिन रात कितनी मेहनत करते हैं. लगे हाथ ये भी याद दिलाना नहीं भूलते कि वो कभी छुट्टी भी नहीं लेते - और निरंतर बिहार के लोगों की सेवा में लगे रहते हैं.

नीतीश कुमार ये भी समझाते हैं कि वो सिर्फ लोक कल्याण की योजनाएं ही नहीं बनाते बल्कि हर साल राज्य की यात्रा पर भी इसीलिए निकलते हैं ताकि देख सकें कि काम ठीक से हो रहा है या नहीं?

कोई शक नहीं कि नीतीश कुमार यात्राएं नहीं करते और हर साल सरकारी कामों की समीक्षा नहीं करते, लेकिन दरभंगा के बहादुरपुर इलाके में बीस साल से अस्पताल की बदहाली को लेकर उनके मंत्री की जो फजीहत और उनका नाम लेकर नारेबाजी हुई है, उसके बारे में लगता नहीं कि नीतीश कुमार को कोई खबर भी है. अगर बिहार का कोई अस्पताल बीस साल से बदहाल स्थिति में है तो इसका मतलब यही हुआ कि मुख्यमंत्री रहते नीतीश कुमार ने कभी उस इलाके की खबर ली ही नहीं. नीतीश कुमार के खिलाफ मान लेते हैं कि लालू यादव के आदमी नारेबाजी कर रहे हैं, लेकिन उनके खाद्य आपूर्ति मंत्री के इलाके में उनका नाम लेकर नारेबाजी करने वाले तो वहीं के रहने वाले हैं. ऐसा भी नहीं कि नीतीश कुमार की रैली की तरह लोग मंत्री को देखते ही नारेबाजी शुरू कर दिये. पहले वे लोग मिले और अपनी समस्याएं बताये - समस्यायें भी वे जो बीस साल से बनी हुई हैं.

अब अगर 15 साल से सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार के बिहार में 20 साल से कोई समस्या बनी हुई है तो क्या समझा जाये - यही ना कि जिसे जंगलराज बताया जा रहा है, उसके बाद भी कई इलाकों में कोई फर्क नहीं आया है!

जमीनी हकीकत ये हो और नीतीश कुमार कहें कि वोट मत देना और सभा से जबरन निकलवा दें. जो नौजवान सामने खड़ा है उसे सरकार के कामकाज समझने के लिए उसे उसके माता-पिता के पास भेजने लगें. कई सभाओं से खाली पड़ी कुर्सियों की तस्वीरें आती हों, फिर भी तेवर ऐसे कि कोई भी विरोध देखते ही हर आवाज खामोश कर देने का मन करता हो - और उनके ही वोट की भी अपेक्षा हो!

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में दिनारा विधानसभा क्षेत्र के खैरिही गांव के नरेंद्र पाठक का कहना है कि पिछली बार वो जेडीयू उम्मीदवार को वोट दिये थे, लेकिन इस बार लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार से वो काफी प्रभावित हैं.

नागेंद्र पाठक ने नीतीश कुमार के 15 साल की अपने हिसाब से समीक्षा भी की है, 'अपनी तीन पारियों में नीतीश कुमार ने तीन बुनियादी चीजों के लिए काम तो किया है - सड़क, पीने का पानी और बिजली. अब एक और टर्म वो खेतों में पानी पहुंचाने के लिए चाहते हैं - क्या उनको रोजगार देने और पलायन रोकने के इंतजाम करने के लिए और 50 साल चाहिये?'

दरअसल, बिहार के वोटर के मन की बात यही है - अब उनका धैर्य जवाब दे चुका है!

भला विकल्पविहीनता का TINA फैक्टर कब तक ढाल बना रहेगा?

तेजस्वी ने दिखा ही दिये लालू वाले तेवर

तेजस्वी यादव के हाल तक के चुनाव प्रचार को देख कर ऐसा माना जा रहा था कि वो लालू यादव वाली राजनीति को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.

तेजस्वी यादव और लालू यादव की राजनीति की तुलना करने पर एक तरफ बेरोजगारी और विकास के साथ साथ शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे नजर आ रहे थे तो दूसरी तरफ जाति और मुस्लिम-यादव फैक्टर जैसे समीकरण.

तेजस्वी यादव अपने हर भाषण की शुरुआत और अंत 10 लाख की नौकरी देने वाले सत्ता में आने पर कैबिनेट की पहली बैठक के पहले फैसले के तौर पर जिक्र करते रहे, लेकिन रोहतास की सभा में तो अपने ठाकुर उम्मीदवार के सामने ही लालू यादव के 'भूरा बाल साफ करो' जैसे नारे भी याद दिला डाले. लालू यादव बिहार की भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण जातियों और कायस्थों के लिए भूरा बाल कहा करते थे - और इनके सफाये की अपील किया करते रहे.

बिहार की डिहरी विधानसभा सीट से फतेह बहादुर सिंह आरजेडी उम्मीदवार हैं - और तेजस्वी यादव ने उनकी मौजूदगी में जो बात कही उसे लेकर इलाके के सवर्णों में काफी गुस्सा है. तेजस्वी यादव का कहना रहा - 'जब लालू यादव का राज था तो गरीब सीना तान के राजपूतों के सामने चलते थे'.

अब तक जिस तरीके से तेजस्वी यादव खुद को पेश कर रहे थे, ये बिलकुल नया राजनीतिक रंग देखने को मिला है. अब तक तेजस्वी यादव सबको मिलाकर और साथ लेकर चलने की बात करते रहे. जब नीतीश कुमार ने दलित परिवारों में हत्या की स्थिति में एक सदस्य को नौकरी देने की बात कही तो भी तेजस्वी का कहना था कि नौकरी जाति देख कर थोड़े ही दी जाती है - नौकरी तो सबको मिलनी चाहिये. ऐसे कई मौके आये जब लगा कि तेजस्वी यादव भी 'सबका साथ सबका विकास' के रास्ते चलने की कोशिश कर रहे हैं - लेकिन अचानक तेजस्वी यादव के इस यू टर्न ने हर किसी को उनके बारे में और इरादों को लेकर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि तेजस्वी यादव को बीजेपी के 10 के बदले 19 लाख रोजगार के चुनावी वादे के चलते ऐसा करना पड़ा है?

असलियत जो भी हो, लेकिन वोटिंग के ऐन पहले तेजस्वी यादव ने ये बयान देकर लगता है कुल्हाड़ी पर ही पैर दे मारा है!

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