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Updated: 27 जुलाई, 2022 04:02 PM
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नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने एक नया शिगूफा छोड़ा है. मजे की बात है कि ये भारतीय राजनीति (Indian politics) को लेकर है - और ऐसा लगता है जैसे वो भारतीय राजनीति में अभी जो कुछ भी चल रहा है उससे कतई खुश नहीं हैं.

ये तो नहीं कह सकते कि ऐसी बातें अक्सर ही उनके मुंह से निकल जाती हैं, लेकिन इतना जरूर है कि रह रह कर किसी न किसी बहाने कुछ न कुछ खास उनके मुंह से सुनने को जरूर मिलता है.

ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि वो ये सब कभी भी और कहीं भी बोल देते हैं. वो पहले से अपना टारगेट तय किये रहते हैं. जब भी बोलते हैं सीधे निशाने पर लगता भी है. ज्यादातर मामलों में सब साफ साफ समझ में आता भी है, जबकि कुछ भी साफ नहीं होता.

ध्यान देने वाली बात ये होती है कि गडकरी जैसे भी शब्दों का इस्तेमाल करें, लेकिन कटाक्ष करना नहीं भूलते - और ख्याल इस बात का भी रहता है कि शब्दों का सफर मंजिल तक निश्चित तौर पर पहुंचे भी.

हमेशा तो नहीं लेकिन कई बार तो ऐसा ही लगा है कि नितिन गडकरी के शब्दों की मंजिल कहीं और नहीं - बल्कि, सिर्फ वही जगह होती है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट सहयोगी अमित शाह (Narendra Modi & Amit Shah) विराजमान हैं.

नितिन गडकरी अपनी बातें कहने के लिए कई बार बिंब का सहारा लेते हैं - और कई बार इधर उधर की बातों में भी अपनी बात सही जगह पहुंचा देते हैं. अपनी बातें समझाने के लिए केंद्रीय मंत्री कई बार किस्से और किसी की कही हुई बातों का हवाला भी देते हैं.

पिछले साल जयपुर के एक प्रोग्राम में नितिन गडकरी ने बताया था कि वो खुश क्यों रहते हैं? बोले, मुझसे एक पत्रकार ने पूछा कि आप मजे में कैसे रह लेते हैं?

और बताने लगे, 'मैंने कहा... मैं भविष्य की चिंता नहीं करता... जो भविष्य की चिंता नहीं करता वह खुश रहता है... वनडे ​क्रिकेट की तरह खेलते रहो... मैंने सचिन तेंदुलकर और सुनील गावस्कर से छक्के चौके लगाने का राज पूछा तो बोले कि ये स्किल है - और ठीक वैसे ही राजनीति भी एक स्किल है.

क्या राजनीति से ऊब गये हैं नितिन गडकरी?

अगर राजनीति को एक स्किल मानते हैं, फिर तो ये देखना होगा कि नितिन गडकरी कहां हैं? ये देखने के लिए भी कुछ खास पैमाने होंगे. ये इस बात पर भी निर्भर करता है कौन किस चीज को कहां से देख रहा है? जो देख रहा है वो क्या कहीं अपने को भी खड़ा करके देख रहा है या तटस्थ भाव से जिसकी पैमाइश करनी है सिर्फ उसकी को देख रहा है?

अहम बात तो ये है कि अपनी नजरों से नितिन गडकरी खुद को भारतीय राजनीति में कहां देख रहे हैं?

nitin gadkari, narendra modi, amit shahनितिन गडकरी के राजनीति से निराश होने की असली वजह क्या हो सकती है?

अगर स्किल्ड राजनीति के हिसाब से सफलता का पैमाना प्रधानमंत्री पद या मुख्यमंत्री की कुर्सी ही है तो उसे उसी हिसाब से देखना होगा - और ये भी ध्यान रहे कि एक दौर में प्रधानमंत्री भी कोई एक ही बन पाएगा.

जो कतार में है, उसका नंबर आये ही जरूरी भी तो नहीं है - लालकृष्ण आडवाणी तो इस बात के सबसे सटीक मिसाल हैं. ये बात अलग है कि एक दौर ऐसा भी रहा जब उनका रुतबा और हैसियत प्रधानमंत्री से कम भी नहीं थी - हां, उनकी पोस्ट से पहले डिप्टी जरूर लगा हुआ था.

बहरहाल, सवाल ये है कि नितिन गडकरी राजनीति छोड़ने जैसी बातें क्यों कर रहे हैं? साफ तौर पर नितिन गडकरी ने ऐसा कुछ तो नहीं कहा है, लेकिन संकेत काफी हद तक राजनीति से ऊब होने जैसी ही है.

अब जरा ये जान लेते हैं कि नितिन गडकरी ने कहा क्या है?

एक निजी कार्यक्रम में पहुंचे नितिन गडकरी कहते हैं, 'मुझे लगता है कि मैं कब राजनीति छोड़ दूं... और कब नहीं... क्योंकि जिंदगी में करने के लिये और भी कई चीजें हैं.

मनुष्य के मन में ऐसा दार्शनिक भाव तभी आता है जब या तो वो तमाम मोह माया से मुक्त हो जाता है, या फिर निराशा के भाव से भर जाता है. चीजों के पीछे भागते भागते थका हुआ महसूस करने लगता है. जो बातें वो दूसरों से कहा करता था, उसकी प्रतिध्वनि उसे खुद सुनायी देने लगती है.

लोगों का ध्यान खींचते हुए नितिन गडकरी थोड़ा जोर देकर कहते हैं, 'हमें यह समझने की जरूरत है कि आखिरकार राजनीति क्या है?'

अपनी बातों से राजनीति को लेकर जो स्केच नितिन गडकरी खींच चुके थे, हो सकता है लोग उसके दायरे में अपने अपने हिसाब से सोच रहे हों. कुछ लोगों को ध्यान राजनीति की बुराइयों की तरफ गया होगा. हो सकता है कुछ लोगों को लगा हो कि वो तो सत्ता के केंद्र में जमे हुए हैं, इसीलिए उनके मन में ऐसे ऊलजूलूल ख्याल आते होंगे. ऐसे भी लोग होंगे जो नितिन गडकरी जैसा बनना चाहते होंगे - और उनके ही मुंह से ऐसी बातें सुन कर पुनर्विचार करने लगे हों.

तभी लोगों का ध्यान भंग होता है और नितिन गडकरी समझाने लगते हैं, 'अगर बारीकी से देखें तो राजनीति समाज के लिए है... समाज का विकास करने के लिए है, लेकिन मौजूदा वक्त को अगर देखा जाये तो राजनीति का इस्तेमाल शत प्रतिशत सत्ता पाने के लिए किया जा रहा है.'

जाहिर ये सुनते ही ज्यादातर लोग चौंक गये होंगे. नितिन गडकरी की पार्टी बीजेपी केंद्र में सत्ता पर काबिज है और देश के कई राज्यों में भी. महीना भर होने को है महाराष्ट्र में भी सत्ता में हिस्सेदार बनी है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि नितिन गडकरी को महाराष्ट्र में महीना भर पहले हुए सत्ता परिवर्तन में बीजेपी की भूमिका अच्छी नहीं लगी हो? नितिन गडकरी को संघ के काफी करीब माना जाता है. वो संघ के मुख्यालय नागपुर का ही लोक सभा में प्रतिनिधित्व भी करते हैं. बीती बातों को याद करें तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ने देवेंद्र फडणवीस को किसी तरह के तोड़ फोड़ न करने की सलाह दी थी. वो फिर भी नहीं माने. एक बार आधी रात से एक्टिव हुए तो सुबह ही सुबह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गये - 72 घंटे बाद उतर भी गये थे.

महाराष्ट्र में असली तोड़ फोड़ तो अभी अभी हुई है. अगर तोड़ फोड़ में देवेंद्र फडणवीस की बड़ी भूमिका रही है तो सबसे ज्यादा घाटे में भी वही हैं. मौजूदा सरकार में दबदबे की बात अलग है, लेकिन जो शख्स पांच साल तक मुख्यमंत्री रहा हो, वही उसी राज्य में डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ ले तो कैसा लगेगा. वैसे भी महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने तो उनके मन की बात सरेआम कर ही दी है - दिल पर पत्थर रख कर आलाकमान का आदेश कबूल किया है, लेकिन सभी दुखी हैं.

अगर महाराष्ट्र को लेकर नितिन गडकरी के मन में कोई और भाव होगा तो निश्चित तौर पर ये सब उनके लिए तकलीफदेह होगा. अगर महाराष्ट्र का निवासी होने के नाते उनको उद्धव ठाकरे की सरकार का काम अच्छा लग रहा होगा तो भी सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी ने जो किया है, निश्चित तौर पर तकलीफदेह होगा.

गडकरी के निशाने पर कौन है?

बड़ा अजीब लग रहा है कि बीजेपी सत्ता के शिखर पर होने के बाद गोल्डन पीरियड की तरफ बढ़ रही है - और नितिन गडकरी निराश हैं.

नितिश गडकरी बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं, लेकिन हाल फिलहाल उनकी भूमिका एक मंत्रालय तक सीमित है - खास बात ये है कि नितिन गडकरी के कामकाज की तारीफ भी होती है. बुंदेलखंड से एक बुरी खबर जरूर आयी है.

समस्या सबके साथ है। हर कोई दुखी है। MLA इसलिए दुखी हैं कि वे मंत्री नहीं बने। मंत्री बन गए तो इसलिए दुखी हैं कि अच्छा विभाग नहीं मिला और जिन मंत्रियों को अच्छा विभाग मिल गया, वे इसलिए दुखी हैं कि मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। मुख्यमंत्री इसलिए दुखी हैं कि पता नहीं कब तक पद पर रहेंगे।

पिछले साल सितंबर में बीजेपी ने गुजरात में मुख्यमंत्री बदल दिया था. विजय रुपाणी को हटा कर भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया था. उसी दौरान नितिन गडकरी एक कार्यक्रम में पहुंचे और नेताओं के दुखी होने के कारणों की चर्चा करने लगे.

नितिन गडकरी का कहना रहा, 'समस्या सबके साथ है... हर कोई दुखी है... विधायक इसलिए दुखी हैं कि वे मंत्री नहीं बने... मंत्री बन गये तो इसलिए दुखी हैं कि अच्छा विभाग नहीं मिला... जिन मंत्रियों को अच्छा विभाग मिल गया, वे इसलिए दुखी हैं कि मुख्यमंत्री नहीं बन पाये - मुख्यमंत्री इसलिए दुखी हैं कि पता नहीं कब तक पद पर रहेंगे?'

नितिन गडकरी को 2019 के आम चुनाव से पहले खासा एक्टिव देखा गया था. लगातार वो ऐसी बातें करने लगे थे जिसमें मोदी और शाह ही उनके निशाने पर लगते थे. 2018 के आखिर में तीन राज्यों में बीजेपी के सत्ता गवां देने के बाद भी नितिन गडकरी के एक बयान को लेकर काफी कानाफूसी चली थी.

तब नितिन गडकरी ने कहा था, 'सफलता के कई पिता हैं, लेकिन विफलता अनाथ है... जब भी सफलता मिलती है को उसका श्रेय लूटने की होड़ मच जाती है, लेकिन जब विफलता होती है तो हर कोई एक दूसरे पर उंगली उठाना शुरू कर देता है.'

नितिन गडकरी ने ये बातें सीधे सीधे मोदी और शाह के लिए कही थी. चुनावों से पहले तो हालत ये हो गयी कि दिल्ली से उनके पास एक दूत को भेजा गया - और ऐसी अनाप-शनाप बयानबाजी से बचने की सलाहियत दी गयी थी.

सलाहियतें अपनी जगह और नतीजे अपनी जगह होते हैं - 2019 में बीजेपी जब पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें जीत कर अपने दम पर सत्ता में वापसी की तो नितिन गडकरी का चुप हो जाना स्वाभाविक था.

नितिन गडकरी का ये मुखर रूप, दार्शनिक अंदाज में ही सही, तब देखने को मिला है जब बीजेपी नुपुर शर्मा को लेकर बैकफुट पर है - और अरसा बाद बचाव की मुद्रा में आयी है. नितिन गडकरी को अचानक फकीरी क्यों सूझ रही है?

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