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Updated: 14 जुलाई, 2020 06:31 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अयोध्या पर एक बयान देकर भारत और नेपाल के बीच एक नया विवाद शुरू करने की कोशिश की. अभी कुछ दिन पहले उन्होंने कुर्सी हिलती देख भारत पर आरोप लगाया था कि वह उनकी सरकार गिराने का प्रयास कर रहा है. जिसे उन्हीं की पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने खारिज कर दिया था. खैर, ओली का ताजा बयान भले राजनीतिक फायदे के लिए हो, लेकिन वह आया धार्मिक गलियार से है. उन्होंंने राम के जन्मस्थान अयोध्या को नेपाल में होना बताया. आइए, पहले उनका पूरा बयान जान लीजिए, फिर उसका विश्लेषण करेंगे:

'हमारा हमेशा से ही मानना रहा है कि हमने राजकुमार राम को सीता दी. लेकिन, हमने भगवान राम भी दिए. हमने राम अयोध्या से दिए, लेकिन भारत से नहीं. हकीकत मेें असली अयोध्या काठमांडू से 135 किलोमीटर दूर बीरगंज का एक छोटा सा गांव थोरी है. हमारा सांस्कृतिक दमन किया गया और तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा गया है.'

ओली ने अपने घर पर भानु जयंती के उपलक्ष्य में एक प्रोग्राम रखा था और ये तमाम बातें उन्होंने इसी प्रोग्राम में कहीं. ओली न भारत पर सांस्कृतिक दमन का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा कि विज्ञान के लिए नेपाल के योगदान को हमेशा नजरंदाज किया गया.

नेपाली प्रधानमंत्री का ये बयान कई मायने में आपत्तिजनक है, लेकिन नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी से ताल्लुक रखने वाले ओली की तरफ सेे ये बयान आना कई मायनों में अपेक्षित भी है. केपी शर्मा ओली नेपाल के भीतर नए किस्म का राष्ट्रवाद खड़ा करना चाहते हैं. जिसकी धुुुुरी भारत-विरोध पर टिकी हुई है. उत्तराखंड के लिपुलेख, कालापानी इलाके को अपने नक्शे में शामिल करके उन्होंने खुद को ताकतवर दिखाने की कोशिश की. लेकिन भारत ने इस मुद्दे को ज्यादा भाव न देकर ओली की जीत की हवा निकाल दी. कम्युनिस्ट पार्टी में पकड़ ढीली होने पर ओली ने सहानुभूति बटोरने वाला दाव खेला.

उन्होंने भारतीय न्यूज चैनलों पर यह कहते हुए नेपाल में प्रतिबंध लगवा दिया कि ये चैनल नेपाल के नेतृत्व का अपमान करते हैं. नेपाल की इस शिकायत को अभी एक हफ्ता भी नहीं बीता कि ओली ने खुद ही नया बवाल खड़ा करने वाला बयान दे दिया.

वामपंथी ओली की धार्मिक रुचि सवाल तो खड़े करेगी ही

आमतौर पर वामपंथी विचारधारा का धार्मिक मान्यताओं से ज्यादा लेना देना होता नहीं है. और वैसे भी कॉमरेड ओली इन दिनों जिस चीन के प्रभाव में है, वह तो धार्मिक आस्थाओं को जरा भी जगह नहीं देता. उइगर मुस्लिमों का मामला जगजाहिर है. खैर, ओली ने अयोध्या के नेपाल में होने पर जो बयान दिया है, वह भारतीयों के लिए कम से कम इस मामले में अनूठा नहीं है कि यहां वामपंथियों के मुंह से ऐसे विवादित बयान अकसर सुने जाते हैं. कम से कम कॉमरेड ओली ने माना तो कि भगवान राम थे, और वो अयोध्या से थे. भारत में रहने वाले कॉमरेड तो इन दोनों ही तथ्यों को सिरे से नकारते आए हैं. अब जबकि कॉमरेड ओली वामपंथी विचारधारा का अनुसरण करते हुए धार्मिक मसलों पर बोलेंगे, तो कितने सीरियसली लिए जाएंगे, वह सोशल मीडिया का रुख करके जाना जा सकता है.

ओली को खटक रहा है भारत-नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता

ओली अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए भारत को हर हाल में नेपाल का दुश्मन साबित करना चाहते हैं. वह मोदी सरकार का विरोध करके अपनी राजनीतिक स्थिति भले मजबूत कर लें, लेकिन जब तक दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी तालमेल और सद्भावना बरकरार है, उनका मिशन अधूरा ही रहेगा. ऐसे में ओली की नजर में जो बात सबसे ज्यादा खटक रही है, वह है 'भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता'. दरअसल, जनकपुर की सीता का विवाह अयोध्या के राम से होना भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक रिश्ते की नीव रही है. ओली में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे हिंदू बहुल नेपाल में भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करते. सो, उन्होंने अयोध्या की लोकेशन ही नेपाल में सरका ली. जब अयोध्या नेपाल में हो गई तो भारत से रिश्ता कट. लेकिन, उनका ये बयान ज्यादा सीरियसली लिया नहीं गया.

KP Sharma Oli, Lord Ram, Ayodhya, Twitter Reactions भगवान राम पर दिए बयान के बाद नेपाल के पीएम आलोचना का शिकार हो रहे हैं

सोशल मीडिया पर कहीं खिल्ली उड़ी, तो किसी ने ओली को बेनकाब किया

भगवान राम को लेकर जो भी बातें ओली ने कहीं हैं वो इतनी बेतुकी थीं कि इनका चर्चा में आना स्वाभाविक था. माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर ओली के इस बयान ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है. तमाम यूजर्स ऐसे हैं जिनका कहना है कि राजनीतिक हितों के चलते ओली अपना आपा खो चुके हैं.

समीरा खान नाम की यूजर ने लिखा है कि नेपाल के प्रधानमंत्री को अपने दिमाग का चेकअप कराना चाहिए. मैं मुस्लिम हूं पर इतना जानती हूं कि मां सीता नेपाल से थीं जबकि राम अयोध्या से थे. फेसबुक पर केवल कृष्ण नाम के यूजर ने तंज किया है कि 'सरयू नदी चीन से निकलकर नेपाल में बहती हुई पाकिस्तान चली जाती है.'

कनक मणि दीक्षित नाम के यूजर ने लिखा है कि ये नेपाल के प्रधानमंत्री ओली की एक चाल थी जिसके जरिये वो विवादों की आग की आंच देना चाहते थे. भगवान राम और अयोध्या को लेकर जो बातें ओली ने कहीं हैं उससे भारत में कुछ लोगों की भावना पर फर्क पड़ेगा और नौबत टकराव तक आएगी जो कि पहले केवल सरकारों के बीच देखने को मिलता था.

विश्व मल्लिकार्जुन नाम के यूजर ने ओली की बातों पर चुटकी लेते हुए कहा है कि यदि ऐसा है तो फिर क्यों न एक राम मंदिर नेपाल में भी बनवा दिया जाए.

संजुक्ता बसु नाम की यूजर ने लिखा है कि अब नेपाल के प्रधानमंत्री इस मामले को लेकर भारत के खिलाफ हिन्दुत्व कार्ड खेल रहे हैं. श्री राम का नेपाली होना और असली अयोध्या का नेपाल में होना हास्यास्पद है. अब आरएसएस कौन सी थ्योरी को लाएगा ताकि वो एक हिंदू बहुसंख्यक राष्ट्र के रूप में नेपाल से लड़ सके. अब वो नेपालियों को पाकिस्तान कैसे भेजेंगे?

डॉक्टर सुनंदा बल नाम की यूजर ने कहा है कि ओली अपनी आखिरी सांसे गिन रहे हैं और उनका ऐसी बातें कहना ये बताता है कि उनके राजनीतिक भविष्य का अंत हो रहा है.

रोहित कलवर नाम के यूजर ने इस पूरे मामले को एक नया ही रंग दे दिया है लोग क्यों इस बात की चिंता कर रहे हैं कि भगवान राम का ताल्लुक नेपाल से है. यदि कोई चाहता है कि प्रभु का जन्म उसके राष्ट्र से जुड़ा हो तो इसमें क्या हर्ज है? जो सच है वो किसी के कहने से बदल नहीं जाता. अब जबकि ऐसा हुआ है तो हमें खुश होना चाहिए कि वामपंथी भी भगवान राम पर निर्भर हैं.

भगवान राम नेपाली हैं या फिर भारतीय? ओली का ये बयान उनको नुकसान पहुंचाएगा या फिर इसके जरिये वो आम नेपालियों के बीच जन समर्थन हासिल करने में कामयाब होंगे? जवाब वक़्त देगा। मगर जो वर्तमान है और जिस तरह नेपाल में विपक्ष हाथ मुंह धोकर ओली के पीछे पड़ गया है उससे इतना तो साफ़ है कि ओली ने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं बल्कि कुल्हाड़ी पर पैर मारा है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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