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Updated: 29 मार्च, 2018 10:29 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राज्य सभा के 60 सदस्यों के साथ नरेश अग्रवाल को भी रिटायर होना पड़ा. विदाई के मौके पर नरेश अग्रवाल का दर्द भी छलक उठा. उनसे रहा न गया. इशारों में ही सही नरेश अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने 'मन की बात' सुना दी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी समझा दिया कि एक दरवाजा बंद हो गया तो क्या हुआ? रिटायर होने वाले सदस्यों के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय का दरवाजा हमेशा खुला रहेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बात कही तो थी, रिटायर होने वाले सभी सांसदों के लिए, खासतौर पर जो दोबारा नहीं चुने जा सके हैं. ऐसे नेताओं में नरेश अग्रवाल भी शामिल हैं - और समाजवादी पार्टी छोड़ कर उनके बीजेपी ज्वाइन करने की वजह भी यही रही.

जैसे सूरज उगता और डूबता है

रिटायर होने वाले सांसदों पर व्यंग्यात्क टिप्पणी तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी कि, लेकिन कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद सिर्फ नरेश अग्रवाल पर फोकस रहे. आजाद के साथ साथ नरेश अग्रवाल समाजवादी पार्टी नेता राम गोपाल यादव भी रहे. आजाद ने नरेश अग्रवाल के संदर्भ में डूबते और उगते सूरज से उनकी तुलना की. हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने भी डूबते और उगते सूरज की मिसाल दी थी. मोदी ने त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में वाम दल की हार पर कहा था कि डूबते सूरज का रंग लाल और उगते का केशरिया होता है. यानी ये वाम के अंत और केशरिया के शुरुआत की ओर इशारा करता है.

naresh agarwalटिकट नहीं तो पार्टी क्यों?

नरेश अग्रवाल को लेकर गुलाम नबी आजाद ने कहा, 'नरेश अग्रवाल जी एक ऐसे सूरज हैं, जो इधर डूबे उधर निकले, इधर निकले उधर डूबे. मुझे यकीन है जिस पार्टी में वो गये हैं वो उनकी क्षमता का पूरा उपयोग करेगी.' आजाद ने नरेश अग्रवाल और बीजेपी दोनों को एक साथ निशाने पर लिया. इस दौरान नरेश अग्रवाल बैठे बैठ मुस्कुराते रहे.

मौका देखकर राम गोपाल यादव ने भी तंज कस दिया, हालांकि, नाम नहीं लिया. राम गोपाल यादव ने कहा कि विदा ले रहे सदस्य जिस राजनीतिक दल में रहें निष्ठा से रहें. ऐसा करने पर पार्टी उन्हें इस सदन या उस सदन में लेकर आएगी और वह समाजसेवा का काम कर सकेंगे.

दरवाजे खुले रहेंगे

संसद न चलने देने को लेकर प्रधानमंत्री ने जो टिप्पणी की उसकी जद में वे सांसद भी आ गये जो विदा ले रहे थे. प्रधानमंत्री समझाना चाहते थे कि अगर संसद चलती तो उन्हें बोलने का भी मौका मिलता - और इस याद के साथ जाते कि अपने कार्यकाल के दौरान संसद में उन्होंने भी अपनी बात रखी. प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके लिए हम सभी की जिम्मेदारी बनती है.

naresh agarwalएक दिन सबको रिटायर होना पड़ता है...

फिर रिटायर होने वाले सांसदों को ढाढ़स बंधाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, 'मैं चाहता हूं कि आप ऐसा न सोचें कि इस सदन से जाने के बाद आपके लिए दरवाजे बंद हो गये. जब भी मौका मिले प्रधानमंत्री कार्यालय में आएं, मैं आपके विचारों को समझूंगा.'

बाकियों ने तो नहीं लेकिन लगता है नरेश अग्रवाल ने ये बातें कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले ली. वैसे भी रिटायर होने की नौबत आने के चलते ही तो नरेश अग्रवाल को पाला बदलना पड़ा. खुद को टिकट न दिये जाने से नाराज नरेश अग्रवाल ने जया बच्चन को लेकर टिप्पणी भी की थी. दरअसल, जय बच्चन के कारण ही नरेश अग्रवाल का टिकट कट गया.

पहले तो नरेश अग्रवाल ने प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की तारीफ की, फिर खुद अपनी बातों में मौका निकालते हुए बीजेपी का अगले चुनाव में टिकट भी मांग डाला.

सुनिए नरेश अग्रवाल की फेयरवेल स्‍पीच :

ऐसा भी लगता है कि नरेश अग्रवाल ने मोदी की बातों का अपने तरीके से अर्थ निकाला हो. वैसे मोदी ने जो टिप्पणी की थी वो सभी के बारे में थी, ये बात अलग है कि उसमें समझने के लिए मौका तो था ही. अगर खुद को लेकर नरेश अग्रवाल ने सोचा हो कि ये तो दरवाजे खोलने की बात में भी उसे हमेशा के लिए बंद कर देने की बात कर रहे हैं. वैसे भी मोदी अक्सर कहा करते हैं कि समझने वाले तो समझ ही गये होंगे, जो न समझें वे खुद समझ लें.

तारीफों के बाद नरेश अग्रवाल मुद्दे की बात करने लगे, बोले, 'मैने कभी रिटायर होने के बारे में नहीं सोचा था.' फिर कहा कि अगर मुझे मौका मिला तो किसी सदन में दोबारा आऊंगा.

वैसे राज्य सभा चुनाव में नरेश अग्रवाल ने जितना संभव रहा उतना काम तो कर ही दिया है और अगले महीने होने वाले विधान परिषद चुनाव में भी खुद के साथ साथ दूसरों के वोट बटोरने में हाथ बंटाएंगे ही. 2019 से पहले भी नरेश अग्रवाल कुछ न कुछ करामात तो दिखाएंगे ही, जिसके लिए वो सियासी गलियारों में विख्यात रहे हैं.

बीजेपी भले ही उनकी बातों में टिकट की गुजारिश पढ़े और हल्के में लेने की कोशिश करे, लेकिन टिकट नहीं मिला तो नरेश अग्रवाल ज्यादा टिकने वाले नहीं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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