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Updated: 06 जून, 2016 06:51 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने डोनाल्ड ट्रंप की तुलना कुछ लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से कर रहे हैं. जाहिर है यह तुलना मोदी की प्रशंसा करने के लिए नहीं बल्कि उनकी आलोचना को आगे बढ़ाने के लिए की जा रही है.

जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने मुसलमानों के प्रति अपने नजरिये को जाहिर करते हुए राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका में उनकी एंट्री पर पाबंदी लगाने का वादा किया है, दुनियाभर का सेक्युलर और लिबरल वर्ग उन्हें एक सनकी उम्मीदवार मान रहा है. उनकी दलील है कि 9-11 के परिणामस्वरूप सामने आए इस्लामेफोबिया का सहारा लेकर डोनाल्ड ट्रंप दुनिया की सबसे ताकतवर गद्दी पर काबिज होने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.

वहीं प्रधानमंत्री मोदी को एक वर्ग 2002 में हुए गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार मानता है. वह दलील देता है कि मोदी ने गुजरात दंगों का सहारा लेकर लगातार तीन बार गुजरात की सत्ता पर काबिज होने के बाद केन्द्र की ओर रुख किया और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की कमान अपने हाथ में ले ली.

दरअसल, ट्रंप कोई पहले राजनेता नहीं हैं जिसकी तुलना मोदी से की गई है. दो साल पहले केन्द्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही मोदी की तुलना या तो विश्व युद्ध के दौर के जर्मन तानाशाह हिटलर या फिर मौजूदा दौर में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से किया जा चुका है. दुनिया के इन नेताओं से मोदी की तुलना भी प्रशंसा के लिए नहीं बल्कि आलोचना के लिए की गई थी.

एक बार फिर मोदी की आलोचना को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक स्तर पर डोनाल्ड ट्रंप के उदय का इस्तेमाल किया जा रहा है. आलोचकों का कहना है कि जिस तरह मोदी ने 2014 में अच्छे दिन का वादा किया, ठीक उसी तरह डोनाल्ड ट्रंप ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने) का दावा कर रहे हैं. जिस तरह मोदी ने आजादी के बाद से अब तक 60 साल के कांग्रेस राज को निशाना बनाते हुए देश की गरीबी और पिछड़ेपन के लिए कांग्रेस के दिए प्रधानमंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया है, ठीक उसी तरह डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रैट पार्टी और डेमोक्रैटिक राष्ट्रपतियों को अमेरिका की शक्ति कम करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

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लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

इसके अलावा 2014 के चुनावों में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में बांग्लादेश से असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में शर्णार्थियों की समस्या उठाते हुए दावा किया कि सत्ता में आते ही वह भारत-बांग्लादेश सीमा पर कटीले तारों की रेखा खींच कर बांग्लादेशियों द्वारा सीमा लांघने की कोशिश को पूरी तरह से रोक देंगे. ठीक इसी तरह डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका में क्राइम और ड्रग ट्रैफिकिंग के लिए मेक्सिको से आ रहे गैरकानूनी शरणार्थियों को जिम्मेदार ठहराते हुए राष्ट्रपति बनने पर अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर ऊंची दीवार खडी करवाने का दावा किया है.

इन आलोचनाओं से इतना साफ है कि जिस तरह आज दुनियाभर में एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति के पद पर नहीं देखना चाहता, ठीक उसी तरह जैसे आज से दो साल पहले एक वर्ग नरेन्द्र मोदी को भारत का प्रधानंत्री नहीं बनने देना चाहता था. लेकिन इस हकीकत के चलते यह कतई जरूरी नहीं है कि आज नरेन्द्र मोदी की तुलना डोनाल्ड ट्रंप से करने के लिए ऐसे उदाहरण देने की जरूरत है जहां दोनों में समानता को ही दर्शाया जाए. दोनों नेताओं में कोई वास्तविक तुलना तभी कारगर होगी जब वह प्रशंसा अथवा आलोचना के पुर्वागृहों के साथ नहीं की गई है.

डोनाल्ड ट्रंप एक रियल एस्टेट कारोबारी हैं जो अपने लोकतांत्रिक अधिकार के चलते राष्ट्रपति पद की दौड़ में आए. मौजूदा चुनाव से पहले ट्रंप का देश की किसी पार्टी से सरोकार नहीं रहा और न ही वह राजनीतिक गतिविधियों में शामिल रहे हैं. गौरतलब है कि अमेरिकी संविधान के विषय में मान्यता है कि वह देश के प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रपति बनने का बराबर अवसर देता है और अपने इसी अधिकार के साथ-साथ अपने अकूत संपदा के चलते आज वह राष्ट्रपति पद की दौड़ में सबसे आगे हैं.

वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने से शुरुआत करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुशासन में रहते हुए राजनीति सफर की शुरुआत बतौर मुख्यमंत्री की. गुजरात का एक सफल मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने देश के विकास का एक दृष्टिकोण पेश किया और देश की दूसरी सबसे बड़े राजनीतिक पार्टी ने उन्हें बतौर प्रधानमंत्री जनता के सामने किया. यह मोदी के उसी दृष्टिकोण का नतीजा है कि बीजेपी के लिए यह संभव हुआ कि उसने आजादी में अहम भूमिका निभाने और 60 साल से अधिक देश पर हुकूमत करने वाली कांग्रेस पार्टी के कद को संसद में बौना साबित कर दिया.

डोनाल्ड ट्रंप यकीनन अमेरिकी हितों की बात करते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं के कि उनकी तुलना मोदी से कर यह साबित किया जाए कि आज के दौर में अमेरिकी हित और भारतीय हित में कोई अंतर नहीं है. अमेरिका में एक बेहतर जीवन के अवसर के लिए मुसलमान एशियाई देशों से पहुंचे, ठीक उसी तरह जैसे हिंदू या यहूदी वहां पहुंचे थे. लेकिन भारत में मुसलमान न सिर्फ राजनीतिक तौर पर बल्कि सामाजिक तौर पर भी देश के अन्य धर्मों के साथ-साथ एक ही धागे से पिरोए हुए हैं. इस बात में कोई शक नहीं है कि बीजेपी हिंदू हितों की बात करती है और हिंदुओं को अपना महत्वपूर्ण वोट बैंक मानती है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह डोनाल्ड ट्रंप की तरह मुसलमानों को राजनीति और समाज से उघखाड़कर फेंक देने की पक्षधर है. इसके उलट 2014 के चुनावों में मोदी साफ कह चुके हैं कि उनकी सरकार सबका साथ- सबका विकास के सिद्धांत पर काम करेगी.

गौरतलब है कि अपने दो साल का कार्यकाल पूरा करने के साथ-साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर विशेष स्थान दिलाने में अहम सफलता दर्ज की है. यह सफलता न सिर्फ अमेरिका और यूरोप के देशों में दर्ज हुई है बल्कि सउदी अरब, ईरान, कतर, रूस और चीन जैसे देशों से द्विपक्षीय रिश्तों में मिली है. लिहाजा, प्रधानमंत्री मोदी के इस मजबूत पक्ष के चलते साफ है कि पहले हिटलर और पुतिन और फिर डोनाल्ड ट्रंप से उनकी तुलना महज विपक्ष की खीज का नतीजा है. इसी के चलते मोदी का विपक्ष उनके विरोध के पुर्वागृह से इस कदर ग्रस्त है कि डोनाल्ड ट्रंप और नरेन्द्र मोदी में अंतर नहीं कर पा रहा है.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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