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Updated: 06 जून, 2021 02:24 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मुकुल रॉय (Mukul Roy) के बेटे शुभ्रांशु रॉय (Subhranshu Roy) से मिलने अभिषेक बनर्जी, ममता बनर्जी के भतीजे की हैसियत से अस्पताल गये थे. वैसे भी वहां बिलकुल पारिवारिक माहौल रहा होगा. राजनीतिक विरोध से इतर एक पार्टी का नेता दूसरे दल के नेता के परिवार से मिलने गया था. कोरोना वायरस से संक्रमित होकार अस्पताल में भर्ती कृष्णा रॉय यानी मुकुल रॉय की पत्नी और शुभ्रांशु रॉय की मां का हालचाल जानने.

तब वैसे भी अभिषेक बनर्जी तृणमूल कांग्रेस के सांसद भर थे और पार्टी के यूथ विंग के अध्यक्ष, जैसे राहुल गांधी वायनाड से कांग्रेस के सांसद हैं, लेकिन अब अभिषेक बनर्जी की हैसियत बढ़ गयी है.

अब अभिषेक बनर्जी को तृणमूल कांग्रेस में महासचिव बना दिया गया है. अभिषेक बनर्जी की जगह अब फिल्म अभिनेत्री सायोनी घोष को तृणमूल यूथ विंग का नया अध्यक्ष बनाया गया है.

अभिषेक बनर्जी और सायोनी घोष को नयी जिम्मेदारियां मिलने के फैसले में एक खास बात ये भी है कि जब इस बारे में तृणमूल कांग्रेस की मीटिंग हो रही थी तो वहां प्रशांत किशोर भी मौजूद थे. विधानसभा चुनावों में जीत के बाद पहली बार इस तरह की मीटिंग हुई है.

क्या टीएमसी की मीटिंग में प्रशांत किशोर की मौजूदगी को देखते हुए अभिषेक बनर्जी के अस्पताल पहुंच कर मुकुल रॉय की पत्नी का हालचाल लेने से भी कोई कनेक्शन हो सकता है?

प्रशांत किशोर के जिम्मे विधानसभा चुनाव कैंपेन की निगरानी और ममता बनर्जी को चुनाव जिता कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठाने की जिम्मेदारी थी - प्रशांत किशोर नंदीग्राम में ममता बनर्जी की जीत तो सुनिश्चित नहीं करा सके, लेकिन तृणमूल कांग्रेस की सरकार तो बनवा ही दी, उस चैलेंज को सही साबित करते हुए कि बीजेपी को चुनावों में 100 सीटें मिलने पर वो चुनाव रणनीति बनाने का काम छोड़ देंगे. हालांकि, नतीजे आने के बाद प्रशांत किशोर ने कहा कि आगे से वो ये काम नहीं करने जा रहे हैं.

किसी राजनीतिक दल की अंदरूनी मीटिंग में, जब किसी को नया पदाधिकारी बनाने का फैसला लिया जाना हो क्या ठेके पर काम करने वाले किसी बाहरी व्यक्ति को मीटिंग अटेंड करने दिया जा सकता है? बिलकुल नहीं, लेकिन अगर वो महज घोषित तौर पर बाहरी हो तो ऐसा हो सकता है.

मतलब, अभी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ममता बनर्जी, अभिषेक बनर्जी या तृणमूल कांग्रेस से जुड़े फैसलों या उठाये जाने वाले कदमों में प्रशांत किशोर की कोई भूमिका नहीं रह गयी है. मतलब ये भी कि अलपन बंदोपाध्याय को ममता बनर्जी का तीन साल के लिए सलाहकार बनाये जाने के पीछे भी प्रशांत किशोर का दिमाग होने से इनकार करना ठीक नहीं होगा.

बाकी बातें अपनी जगह हैं और अब बड़ा सवाल ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के फोन कर हाल समाचार पूछने के बाद भी क्या मुकुल रॉय बीजेपी छोड़ने के बारे में सोचेंगे?

सवाल ये भी है कि जिस तरह की बयानबाजी अब मुकुल रॉय के बेटे शुभ्रांशु रॉय करने लगे हैं - क्या उनके लिए बीजेपी में बने रहना मुश्किल नहीं हो जाएगा?

आपदा में राजनीतिक अवसर ज्यादा हैं

देखा जाये तो मुकुल रॉय के मुकाबले शुभेंदु बनर्जी का बीजेपी में कोई ज्यादा कंट्रीब्यूशन नहीं है. अगर नंदीग्राम में ममता बनर्जी को हराने की बात छोड़ दें तो. हार जीत का अंतर भी बेहद कम रहा, जिसके खिलाफ ममता बनर्जी ने तब कोर्ट जाने की भी बात कही थी. शुभेंदु बनर्जी ने ममता बनर्जी को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराने का दावा किया था.

नंदीग्राम से बाहर निकल कर देखें तो शुभेंदु अधिकारी छोटे मोटे चमत्कार भी नहीं दिखा पाये जिसकी बदौलत बीजेपी के खाते में बंगाल की कम से कम 100 सीटें ही आ जायें. बावजूद ये सब होने के, फिर भी बीजेपी मुकुल रॉय की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए शुभेंदु अधिकारी को पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाने का फैसला किया. शुभेंदु अधिकारी की ही तरह विधानसभा की एक सीटे जीते तो मुकुल रॉय भी हैं.

subhranshu roy, abhishek banerjee, mamata banerjeeशुभ्रांशु ने तो साफ कर दिया है, मुकुल रॉय के मन की बात सामने आना बाकी है

विधायक के रूप में शपथ लेने के बाद से ही मुकुल रॉय को सार्वजनिक तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं देखा गया है. पहले भी बीजेपी में शामिल होने के बाद से मुकुल रॉय उपेक्षित ही महसूस करते रहे हैं. चुनावों से ऐन पहले तो उनको बीजेपी में उपाध्यक्ष पद दिया गया है. एक फायदा ये भी कह सकते हैं कि नारदा स्टिंग केस में चार्जशीट में नाम होने के बावजूद सीबीआई ने तृणमूल कांग्रेस नेताओं की तरह उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया है.

इसे आपदा में मिला राजनीतिक अवसर भी कह सकते हैं, मुकुल रॉय होम आइसोलेशन में बताये जा रहे हैं, लिहाजा राजनीतिक तौर पर सार्वजनिक बने रहने की मजबूरी से बेफिक्र भी होंगे.

मुकुल रॉय की पत्नी की तबीयत ज्यादा खराब होने की वजह से अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था और ये 11 मई की बात है. तब से लेकर अब तक महीना भर होने को है, लेकिन मुकुल रॉय की तरफ से न तो किसी तरह का बयान आ रहा है और न ही कोई एक्टिविटी देखने को मिली है.

पश्चिम बंगाल चुनावों में प्रचार के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कोरोना संक्रमित हो गये थे, लेकिन होम आइसोलेशन में ही वर्चुअल मीटिंग करते रहे और अपनी टीम 9 के कामकाज पर निगरानी भी रखते रहे. टीम 9 योगी आदित्यनाथ की कोविड 19 को कंट्रोल करने के लिए बनायी गयी टास्क फोर्स है.

मुकुल रॉय के होम आइसोलेशन में रहने तक बीजेपी नेतृत्व के लिए भी राहत की बात है. न वो कोई बयान देंगे और न ही उनको लेकर सवाल पूछे जाएंगे. टीएमसी में जाने को लेकर मुकुल रॉय की घर वापसी का मसला विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के तत्काल बाद ही उछलने लगा था. मजबूरन, मुकुल रॉय को ट्विटर पर बताना पड़ा कि वो बीजेपी में थे, हैं और आगे भी रहेंगे - फिर बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मुकुल रॉय की तारीफ करते हुए रीट्वीट भी किया था.

मुकुल रॉय के मामले में जब तक कोई बड़ा अपडेट नहीं आता तब तक ये समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोन के बाद उनके लिए बात को टाल पाना मुश्किल हो सकता है - लेकिन जिस तरह से शुभ्रांशु रॉय बीजेपी के खिलाफ ताबड़तोड़ बयानबाजी कर रहे हैं, आसार अलग ही लगते हैं.

बेटे का स्टैंड तो साफ है, मुकुल रॉय जो भी सोच रहे हों

शुभ्रांशु रॉय ने बीजेपी 2019 के आम चुनाव के वक्त ही ज्वाइन की थी. हालांकि, मुकुल रॉय के साथ साथ बीजेपी ने शुभ्रांशु रॉय को भी विधानसभा के लिए टिकट दिया था. मुकुल रॉय तो विधायक बन गये, लेकिन शुभ्रांशु चुनाव हार गये.

शुभ्रांशु सुर्खियों में अपनी एक फेसबुक पोस्ट को लेकर आये. शुभ्रांशु ने लिखा था, 'जनता की चुनी हुई सरकार की आलोचना करने से ज्यादा स्वयं की आलोचना जरूरी है.'

पश्चिम बंगाल बीजेपी के नेताओं ने इसे शुभ्रांशु की निजी राय बता कर मामले को टालने की कोशिश की थी, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ. शुभ्रांशु ने अपनी निजी राय का पिटारा ही सबके सामने खोल दिया है.

न्यूज 18 बांग्ला से बातचीत में शुभ्रांशु रॉय ने कई ऐसी बातें बोल दी हैं जिसके बाद बीजेपी में उनके लिए मुकुल रॉय से भी बुरा हो सकता है - और वो अपनी बात पर कायम रहते हैं तो उनका स्टैंड भी साफ तौर पर समझ लिया जाना चाहिये.

शुभ्रांशु कहते हैं, 'मैं समझ गया हूं कि राजनीति में कुछ भी संभव है.' शुभ्रांशु ये भी बताते हैं कि ममता बनर्जी ने भी उनसे पिता मुकुल रॉय और मां कृष्णा रॉय का हाल चाल पूछा है.

ममता के साथ साथ अभिषेक के बारे में बताते हैं कि वो पिछले दो हफ्ते से उनकी मां की सेहत के बारे में पूछते रहे हैं, 'वो मेरी मां को देखने आये, मैं उनका आभारी हूं.' बताते हैं कि मुकुल रॉय को भी कोरोना संक्रमण हुआ था, लेकिन वो घर पर ही रहे और अब ठीक हो गये बताये जा रहे हैं. मुकुल रॉय की पत्नी कृष्णा रॉय कोलकाता के अपोलो अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं, ऐसा पता चला है.

यहां तक तो कोई खास बात नहीं है, लेकिन शुभ्रांशु रॉय के मुंह से निकले दो वाक्य ऐसे हैं जो बीजेपी के लिए कही गयी सबसे खराब बात है. एक वाक्य को तो राजनीतिक बयान मान सकते हैं, लेकिन दूसरा वाक्य तो मन की बात हो सकती है - जो भड़ास के तौर पर सामने आयी है.

शुभ्रांशु रॉय कहते हैं, 'पश्चिम बंगाल विभाजनकारी राजनीति को स्वीकार नहीं करता है.'

शुभ्रांशु रॉय के इस बयान में कोई नयी बात नहीं है. ऐसे बयान बीजेपी के विरोधी नेता हमेशा ही बोलते रहते हैं. पूरे चुनाव में सबसे ज्यादा तो ऐसा ममता बनर्जी के ही मुंह से सुना गया होगा.

सबसे महत्वपूर्ण बात जो शुभ्रांशु रॉय कहते हैं, वो है - "कई बार बेटे के कर्मों के कारण माता-पिता को तकलीफ होती है. मैं निजी तौर पर महसूस करता हूं कि मेरी मां मेरे बुरे कर्मों के कारण पीड़ित हैं.'

क्या ये बोल देने के बाद भी शुभ्रांशु रॉय के बीजेपी में बने रहने की उम्मीद की जा सकती है?

मुकुल रॉय के बारे में नहीं मालूम, लेकिन ये तो साफ है कि शुभ्रांशु रॉय ने अपना मन बना लिया है - वो जल्दी ही ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं. संभव है तृणमूल कांग्रेस के नये नवेले महासचिव अभिषेक बनर्जी अपने कर कमलों से शुभ्रांशु का भगवा चोला उतारें - और ये सब प्रशांत किशोर की मौजूदगी में ही हो.

अगर वास्तव में ऐसा ही होता है तो भी, ये कोई अनोखी बात नहीं होगी और न ही ऐसा पहली बार बीजेपी में होने जा रहा है. बिलकुल ऐसा न सही, इसका उलटा तो हुआ ही है - बीजेपी छोड़ कर यशवंत सिन्हा तृणमूल कांग्रेस के उपाअध्यक्ष पहले ही बन चुके हैं और उनके बेटे जयंत सिन्हा मोदी कैबिनेट 2.0 में मंत्री नहीं बन पाये, लेकिन अब भी बीजेपी में ही बने हुए हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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