New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 18 जुलाई, 2018 06:33 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

मॉब लिंचिंग समाज के लिए जितना जहरीला है, सियासत के लिए उतना ही फायदे का सौदा. विपक्ष के लिए मॉब लिंचिंग सत्ता पक्ष को घेरने का तार्किक मौका देता है, तो केंद्र की सत्ता पर काबिज बीजेपी के लिए उसके समर्थकों के एकजुट होने का माहौल. मौका देख कर विपक्ष ने मॉनसून सत्र का आगाज मॉब लिंचिंग पर हंगामे के साथ किया है, मगर वो टीम मोदी की चाल में उलझ गया है.

मोदी सरकार पर भी संसद को चलाने का दबाव है. संसद चले इसी बात के लिए तो प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और उनके सारे साथी देश भर में उपवास पर बैठे थे - इल्जाम कांग्रेस और विपक्ष पर लाद दिया कि वे संसद चलने नहीं दे रहे. मॉनसून सत्र को चलने देने के लिए जरूरी था कि विपक्ष की मांगें मानी जायें. जैसे ही विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का झुनझुना उठाया, सरकारी पक्ष ने हरी झंडी दिखा दी - खूब बजाओ. चार साल बाद नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव मंजूर हुआ है.

अविश्वास प्रस्ताव का हासिल क्या

अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सोनिया गांधी ने भी विश्वास जताया है, तो टीम मोदी को भी पक्का विश्वास है कि इससे कुछ भी नहीं होने वाला - क्योंकि लोक सभा में संख्या बल सरकार के पक्ष में है. जब सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला तो ऐसे अविश्वास प्रस्ताव का मतलब क्या है? अगर बीजेपी के अंदर ही बगावत की चिंगारी लगी हुई हो तो बात और है. कांग्रेस को भला क्यों लगता है कि जिन सांसदों का टिकट कट सकता है वे सरकार के खिलाफ वोट करेंगे?

sonia, rahulअविश्वास प्रस्ताव से क्या मिलेगा?

बजट सत्र में वाईएसआर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को स्पीकर ने अस्वीकार कर दिया था. फिर स्पीकर सुमित्रा महाजन विपक्ष के चौतरफा हमलों की शिकार बनी थीं. उसके बाद से ही कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाने की जुगाड़ में जुट गयी थी - उसे बाकी विपक्ष का साथ चाहिये था. अब टीडीपी और कांग्रेस सांसद की ओर से दिये गये अविश्वास प्रस्ताव को स्पीकर सुमित्रा महाजन ने स्वीकार कर लिया है. प्रस्ताव पर 20 जुलाई को लोक सभा में चर्चा होगी.

अविश्वास प्रस्ताव का भी वही हाल होगा जो चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाये जाने पर हुआ होता. ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व सरकार को घेरने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार है. कांग्रेस को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि जो कदम उठाया जा रहा है वो किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने वाला भी है या नहीं.

अविश्वास प्रस्ताव तीसरा मुद्दा है जिसको लेकर कांग्रेस ने जोरदार उत्साह दिखाया है. यूपी चुनाव के बाद ईवीएम के मुद्दे पर कांग्रेस ने विपक्षी नेताओं के साथ चुनाव आयोग का दौरा किया - बाद में आपसी खींचतान में उलझ गये और फिर मैदान से हट गये. यही हाल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग को लेकर भी रहा. महाभियोग का आइडिया भी कांग्रेस का नहीं था, लेकिन उसने मुफ्त में बदनामी मोल ली. अविश्वास प्रस्ताव भी वैसा ही उधार का आइडिया है - जिसका अंजाम पहले से पता है.

विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव से ज्यादा असरदार तो इतना ही बता देना काफी है कि जब 2014 में चुन कर आये थे तो 337 सांसदों का साथ रहा - अब ये 310 पर पहुंच चुका है. लाज बचाने के लिए तो ये भी काफी है कि बीजेपी के पास अब भी लोक सभा में 273 सांसद हैं.

कैसे बीतेगा मॉनसून सत्र

मॉनसून सत्र की शुरुआत स्पीकर द्वारा सांसदों को खुशखबरी देने के साथ हुई. स्पीकर ने बताया कि सदन में वाई-फाई की सुविधा शुरू कर दी गई है और रजिस्ट्रेशन के बाद सभी सदस्य इसका लाभ उठा सकेंगे.

ऑल पार्टी मीट के बाद केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने उम्मीद जतायी थी कि मॉनसून सत्र का माहौल खुशनुमा होगा. सत्र शुरू होने के पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से कहा - "हमारा प्रयास निरंतर होता रहेगा कोई भी सदस्य किसी भी विषय पर चर्चा करना चाहता है... सरकार इसके लिए तैयार है... देश के कई भागों में वर्षा के कारण आपदा है कई भागों में कम बरसात है ऐसे मुद्दों पर भी चर्चा लाभकारी रहेगी..."

narendra modiमॉनसून सत्र के बाद पड़ेगी पाप-पुण्य पर बौछार

अब जबकि स्पीकर ने विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है, फिर भी संसद नहीं चलती तो मोदी सरकार के लोग राहुल गांधी और सोनिया गांधी को मौका खोज खोज कर कोसेंगे. लोक सभा में स्पष्ट बहुमत के चलते सरकार पर आंच आने वाली नहीं है, ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष के आइडिया का अकाल ही पेश करता है और कुछ भी नहीं.

कांग्रेस ने एक दर्जन से ज्यादा मुद्दों की फेहरिस्त तैयार की है जिन्हें संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में उठाने की तैयारी है. सरकार के पास भी पेश करने के लिए करीब करीब 50 बिलों की फेहरिस्त है. अरसे से लटके विधेयकों के मामले में जब चार साल में कोई खास प्रगति नहीं हुई तो अब क्या उम्मीद की जाये? जाहिर है वे ही मुद्दे उठेंगे या उन पर चर्चा होगी या हंगामा होगा जिनसे सीधा चुनावी फायदा सभी को नजर आएगा. राज्य सभा के उप सभापति के चुनाव को लेकर भी अभी कोई स्पष्ट स्थिति समझ नहीं आ रही है.

संसद से वोट बैंक साधने की कोशिश

बजट सत्र के आखिर में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण बिलकुल किसी चुनावी रैली की तरह था. चार साल के शासन के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी अपने समर्थकों को यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि देश के सामने जो भी चुनौतियां हैं वे कांग्रेस राज के पापों का फल है. मोदी के भाषण के साथ ही सोशल मीडिया पर शुरू हो गया कि किस तरह मोदी पापों को गंगा में धो धोकर पुण्य में सफलतापूर्वक बदल रहे हैं. ये तब की बात है जब कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का माहौल बन रहा था.

अभी अभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने महिला आरक्षण बिल पर प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है. राहुल गांधी ने मॉनसून सत्र में ही महिला आरक्षण बिल लाने की मांग करते हुए बिल का सपोर्ट करने का वादा किया है. राहुल गांधी का कहना है कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिये. ऐसा ही पत्र सोनिया गांधी ने भी गुजरात चुनाव से पहले लिखा था. मतलब साफ है, राहुल गांधी का पत्र 2019 को नजर में रख कर लिखा गया है.

राहुल गांधी को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जवाबी चिट्ठी लिखी है और पूछा है, 'यूपीए शासन के दौरान महिला विधेयक को क्यों पास नहीं कराया गया?' रविशंकर प्रसाद की जवाबी चिट्ठी में नई डील का भी जिक्र है, जिसे खुद उन्होंने समझाया भी है, 'नई डील के मुताबिक हमें महिला आरक्षण बिल, तीन तलाक विरोधी बिल और निकाह हलाला बिल भी दोनों सदनों में पास करने चाहिये'.

सही बात है सबको अपने अपने वोट बैंक से मतलब है. कठुआ से लेकर उन्नाव तक बलात्कार की घटनाओं पर इंडिया गेट पर मार्च निकालने और महिला बिल पर पत्र लिखने का भी वही मकसद है जो मुस्लिम वोट बैंक से क्रीमी लेयर महिला मुस्लिम खोज निकालने में है. एक मीडिया रिपोर्ट को आधार बनाकर बीजेपी सवाल पूछ रही है - क्या कांग्रेस सिर्फ मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है, महिला मुस्लिमों की नहीं?

ये राजनीति का कोई ककहरा नहीं, बल्कि नया वाक्य विन्यास है जहां हिंदू पार्टी बनाम मुस्लिम पार्टी की बहस चरम पर है, जबकि चुनाव में काफी वक्त है. राम मंदिर का मामला सुप्रीम कोर्ट में है और अमित शाह डंके की चोट पर किसी चुनावी वादे से भी आगे बढ़ कर यकीन दिलाने की कोशिश कर रहे हैं कि मंदिर तो 2019 से पहले बन कर रहेगा. क्या मजाक है? 2019 में ही मंदिर बन गया तो 2022 में क्या होगा? क्या चीन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक होगा? वैसे भी मालूम होना चाहिये कि चीन सीमा पर सिर्फ तनाव रहता है, गोली नहीं चलती.

मंदिर 2019 में ही बन कर तैयार हो जाएगा तो समाज से संन्यास ले चुके योगी आदित्यनाथ क्या फिर से मठ में लौट जाएंगे? ले देकर बताने के लिए उनके पास एक मंदिर ही तो है - बाकी एनकाउंटर तो चलता रहेगा. वो पुलिस का काम है, बस फरमान जारी करने वाला बदलता रहता है.

अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है तो मॉब लिंचिंग पर भी कानून तो बनेगा ही. लेकिन कब? बाकी बातों से फुरसत मिलेगी तभी तो. चुनाव के चलते जब एक्सप्रेस वे का उद्घाटन सुप्रीम कोर्ट के डेडलाइन तय करने पर होता है तो कानून का क्या? जब कोर्ट की तारीख पड़ेगी तो देखी जाएगी. तब कुछ तारीखें तो ड्राफ्ट तैयार करने के नाम पर भी ली जा सकती हैं.

मॉब लिंचिंग पर कानून को लेकर जिस दिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया उसी दिन झारखंड में स्वामी अग्निवेश हमले के शिकार हो गये. स्वामी अग्निवेश का कहना है कि हमला करने वाले उन्हें मार डालना चाहते थे. स्वामी अग्निवेश पर हमला करने वाले बीजेपी समर्थक ही बताये जा रहे हैं. खबर ये भी है कि पहले स्वामी अग्निवेश समर्थकों और बीजेपी समर्थकों में बहस और झड़प हुई जो बाद में हिंसक रूप ले ली. स्वामी अग्निवेश विवादित रहे हैं. स्वामी अग्निवेश के वहां जाने का मकसद विवादित हो सकता है, लेकिन ये बताकर उन पर हमले को जायज तो नहीं ठहराया जा सकता.

स्वामी अग्निवेश पर हमले से उस घटना की याद ताजा हो गयी जिसमें भीड़ ने बीच सड़क पर अलीमुद्दीन को पीट पीट कर मार डाला था. ये उसी दिन का वाकया है जब प्रधानमंत्री मोदी गुजरात से स्वयंभू गौरक्षकों को नसीहत दे रहे थे - और कालांतर में अलीमुद्दीन की हत्या के आरोपियों को मोदी के ही मंत्रिमंडलीय सहयोगी जयंत सिन्हा माला-फूल और मिठाई देकर घर पर सम्मानित करने के बाद गर्व से फोटो सेशन करा रहे थे.

मॉनसून सत्र देश के सामने ज्वलंत मुद्दों पर बहस और समाधान खोजने की जगह 2019 के जंग-ए-जम्हूरियत का रिहर्सल ज्यादा लग रहा है. टीडीपी हो या कांग्रेस या फिर कोई और सब तो उन्हीं बातों में उलझे हुए हैं जिनकी बदौलत 2019 में जनता के फैसले को अपने पक्ष में मोड़ा जा सके.

बजट सत्र नहीं चलने देने की तोहमत विपक्ष पर थोप कर मोदी, उनके मंत्री और बीजेपी नेताओं ने पूरे देश में पार्ट टाइम करवा चौथ जैसा व्रत रखा - और टीम राहुल के लोग उपवास से पहले छोले भटूरे उड़ाते कैमरे में कैद कर लिये गये.

कुछ भी बदल नहीं है. संसद चलने देने में न तो सत्ता पक्ष की दिलचस्पी दिखती है, न विपक्ष की. मोदी सरकार के चार गोल के मुकाबले विपक्ष भी कम से कम एक गोल अपने नाम कर लेना चाहता है. यही वजह है कि विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव का झुनझुना थमाकर सत्ता पक्ष फुटबॉल मैच में गोल कर लेने के बाद टाइमपास करना चाहता है. बीच बीच में जब भी मौका मिलेगा वे बातें या माहौल बना लिया जाएगा जिससे 2019 में सीधा फायदा हो - और प्रधानमंत्री द्वारा मॉनसून सत्र की पूर्णाहूति में पाप-पुण्य का लेखा जोखा पेश तो होना ही है.

इन्हें भी पढ़ें:

'साम्प्रदयिकता के रंग सनम हम तो डूबेंगे लेकिन तुमको भी ले डूबेंगे'

'हिन्दू पाकिस्तान' का जिक्र करके थरूर ने कांग्रेस की ही मुश्किल बढ़ाई है

2019 चुनाव में तीसरा मोर्चा न हुआ तो विकल्प बेल-गाड़ी या जेल-गाड़ी

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय