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Updated: 05 अक्टूबर, 2022 05:42 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मुश्किल से तीन महीने हुए होंगे, जब जनसंख्या नियंत्रण पर संसद में मोदी सरकार ने अपना रूख साफ कर दिया था. असल में सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर चल रही चर्चाओं पर सरकार का रुख जानना चाहा था.

सवाल के लिखित जवाब में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने साफ कर दिया था कि जनसंख्या नियंत्रण (Population Control Policy) के लिए कानून लाने पर सरकार कोई विचार नहीं कर रही है. राज्य सभा में कई तरह के आंकड़े पेश किये और फिर साफ तौर पर बोल भी दिया, 'सरकार किसी भी कानूनी उपाय पर विचार नहीं कर रही है.'

जुलाई, 2022 के आखिर में गोरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन ने भी जनसंख्या नियंत्रण को लेकर प्राइवेट मेंबर बिल लाने को लेकर सुर्खियों में थे, लेकिन खुद ही घिर गये और बात आगे नहीं बढ़ सकी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का हवाला देते हुए रवि किशन का कहना था, ‘नये भारत और विश्व गुरु बनने का सपना जो मोदी जी देख रहे हैं, जनसंख्या पर नियंत्रण उसके लिए बहुत जरूरी है.’

रवि किशन के अपने निजी विधेयक को विकास का बिल बताये जाने के बावजू सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल किया गया - और वरुण ग्रोवर तो ट्विटर पर आईना ही दिखाने लगे थे, ‘खुद की चार औलादों के बाद आई ये अक्लमंदी, कि अब बाकी इंडिया की करानी चाहिये नसबंदी.’

यूपी चुनाव से पहले भी बीजेपी खेमे में जनसंख्या नियंत्रण पर खूब बयानबाजी हुई. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो साल भर पहले ही, अपनी पिछली ही पारी में नयी जनसंख्या नीति की घोषणा कर चुके हैं. 11 जुलाई, 2021 को विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के लिए जनसंख्या नीति की घोषणा की तो उसे विधानसभा चुनावों से जोड़ कर देखा गया. मतलब भी वही था. ड्राफ्ट बिल में साफ किया गया है कि दो से अधिक बच्चों वाले अभिभावकों को सरकारी योजनाओं का कोई फायदा नहीं मिल सकेगा. ऐसे लोग सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई भी नहीं कर पाएंगे - और पंचायत, स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने से रोकने का भी प्रावधान किया गया है, जबकि एक बच्चे वाले अभिभावकों को कई तरह की सुविधा देने का प्रस्ताव है.

ठीक साल भर बाद भी ड्राफ्ट बिल का स्टेटस नहीं बदला. वैसे भी चुनाव तो जीत ही चुके हैं. अब ऐसी जरूरत भी पड़ेगी तो अगले आम चुनाव से पहले ही. लिहाजा जनसंख्या दिवस, 2022 के मौके पर आयोजित कार्यक्रम योगी आदित्यनाथ बस इतना ही कहते सुने गये कि कि बढ़ती जनसंख्या की स्थिति काफी गंभीर है - और हमें जनसंख्या को स्थिर करने की रणनीति पर काम करना होगा.

योगी आदित्यनाथ के रूख को देखते हुए समाजवादी पार्टी की तरफ से स्वाभाविक रिएक्शन भी आया. संभल से सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने मीडिया के सामने आकर कहा, 'जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए कानून को एक हथियार के रूप में सोचने की जगह, सरकार को तालीम पर जोर देना चाहिये.

क्या वास्तव में मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) को चिंता सिर्फ बढ़ती जनसंख्या को लेकर ही है? या फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड और हिंदू राष्ट्र के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में ये भी किसी पॉलिटिकल टूल की तरह सामने आया है?

जनसंख्या नियंत्रण पर संघ का जोर क्यों?

तीन तलाक और धारा 370 के बाद सवाल उठने लगा था कि संघ और बीजेपी के एजेंडे में अगला कदम क्या हो सकता है? जब एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया तो जबरदस्त रिएक्शन हुआ था. तब बिहार में एनडीए की सरकार थी, और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की तरफ से ऐतराज जताया गया तो बीजेपी की तरफ से सफाई पेश की जाने लगी.

mohan bhagwatजनसंख्या नियंत्रण नीति की मांग क्या संघ के हिंदू राष्ट्र की मंजिल का कोई पड़ाव है?

बिहार में बीजेपी नेता सुशील मोदी अपनी ही बात पर सफाई पेश करने लगे, और फिर बीजेपी की तरफ से तस्वीर साफ की गयी कि इसे सिर्फ बीजेपी शासित राज्यों में ही लागू किया गया - उत्तराखंड में इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है.

जनसंख्या कानून को लेकर भी बीजेपी की तरफ से आवाजें उठी हैं, लेकिन अभी तक यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसी तस्वीर सामने उभर कर नहीं आयी है. संघ प्रमुख के बयान के बाद निश्चित तौर पर ये बहस गंभीर रूप लेगी.

मोहन भागवत ने कई देशों का उदाहरण देते हुए अपनी बात समझाने की कोशिश की है. संघ प्रमुख का ज्यादा जोर इस बात पर है कि जनसंख्या नियंत्रण को हर किसी पर एक ही तरीके से यानी बराबर, बगैर किसी भेदभाव के लागू किया जा सके - और उसे पूरी तरह से लागू करने के लिए पहले से लोगों को जागरुक किया जाये, तभी जनसंख्या नियंत्रण के नतीजे हासिल किये जा सकेंगे.

चीन का उदाहरण देते हुए मोहन भागवत कहते हैं, अपनी जनसंख्या नियंत्रित करने की नीति बदलकर चीन अब उसे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया है. संघ प्रमुख कहते हैं, अपने देश का हित भी जनसंख्या के विचार को प्रभावित करता है... आज हम सबसे युवा देश हैं.'

समाज विज्ञानी और मनोवैज्ञानिकों की राय का हवाला देते हुए मोहन भागवत कहते हैं, छोटे परिवारों के कारण बच्चों के स्वस्थ समग्र विकास, परिवारों में असुरक्षा का भाव, सामाजिक तनाव, एकाकी जीवन जैसी कई चुनौतियां खड़ी हो जा रही हैं - और समाज के सिस्टम का केंद्र परिवार व्यवस्था पर भी एक सवाल खड़ा हो गया है... एक अहम सवाल जनसांख्यिकी असंतुलन को लेकर भी है.

संघ प्रमुख कहते हैं, 75 साल पहले हमने देश में अनुभव किया है और 21वीं सदी में जो तीन नये स्वतंत्र देश अस्तित्व में आये - ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवा, वे इंडोनेशिया, सूडान और सर्बिया के एक भूभाग में जनसंख्या का संतुलन बिगड़ने का ही परिणाम है.

मोहन भागवत समझाने की कोशिश करते हैं, 'जब-जब किसी देश में जनसांख्यिकी असंतुलन होता है, तब-तब उस मुल्क की भौगोलिक सीमाओं में भी परिवर्तन आता है... जन्म दर में असमानता के साथ साथ लोभ, लालच, जबरदस्ती से चलने वाला मतांतरण और देश में हुई घुसपैठ भी बड़े कारण हैं... सबका विचार करना पड़ेगा.'

एजेंडे की बाकी चीजें तो अपनी जगह हैं ही, हाल फिलहाल ये भी देखने में आया है कि संघ अपने लिए छवि सुधार अभियान भी चला रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शुरू किये गये हर घर तिरंगा अभियान के तहत सोशल मीडिया पर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का प्रोफाइल बदलने का मामला हो, या फिर संघ प्रमुख मोहन भागवत का दिल्ली में इमाम से मिलना, मदरसे का दौरा करना - ये सब छवि सुधार अभियान नहीं तो क्या है?

हिंदुओं में आपस में ही एकजुटता कायम न हो पाना तो अरसे से संघ की बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है, तभी तो मोहन भागवत ने दोहराया है, मंदिर, पानी, श्मशान सभीके लिए एक होना चाहिये और ये व्यवस्था सुनिश्चित करनी ही होगी.

अपने भाषण में मोहन भागवत ने एक बड़ी ही महत्वपूर्ण बात बहुत जोर देकर कही है, ये घोड़ी चढ़ सकता है... वो घोड़ी नहीं चढ़ सकता... ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें तो हमें खत्म करनी होंगी.'

लेकिन सवाल यही है कि क्या ऐसा वास्तव में हो पाएगा? क्या आरक्षण को लेकर संघ की तरफ से बयानबाजी के पीछे भी यही वजह होती है? हालांकि, ऐसी चीजों से जुड़े सबसे बड़े कारण तो धर्म परिवर्तन है, जिसके लिए संघ को घर वापसी अभियान चलाना पड़ता है. यूपी चुनाव से पहले के एक सम्मेलन में भी मोहन भागवत ने घर वापसी अभियान पर वैसे ही जोर दिया था जैसे अभी वो जनसंख्या नियंत्रण की बात कर रहे हैं.

महिलाओं के मुद्दे पर भी संघ शुरू से विरोधियों के निशाने पर रहा है, और पर्वतारोही पद्मश्री संतोष यादव को विजयदशमी समारोह में चीफ गेस्ट बनाये जाने के पीछे भी मकसद छवि सुधार ही लगती है.

मोहन भागवत कह भी रहे हैं, महिलाओं के बिना समाज की पूर्ण शक्ति सामने नहीं आएगी. कहते हैं, 'जो काम पुरुष कर सकता है, वो सब काम मातृशक्ति भी कर सकती है - लेकिन जो काम महिलाएं कर सकती हैं, वो सब काम पुरुष नहीं कर सकते.'

अगर सरकार का इरादा नहीं हुआ तो?

विजयदशमी के मौके पर संघ प्रमुख मोहन भागवत की ये सलाह कि देश के लिए एक व्यापक जनसंख्या नीति लाने की जरूरत है, बिलकुल वैसी ही लगती है, जैसे 2019 के चुनाव से पहले राम मंदिर निर्माण को लेकर कानून बनाने की मांग की गयी थी. संघ प्रमुख की मांग के बाद हिंदू संगठनों और बीजेपी के तमाम नेता अयोध्या में मंदिर निर्माण को लेकर कानून बनाने की मांग करने लगे थे - और शांत तभी हुए जब इंटरव्यू में पूछे गये सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार का स्टैंड साफ किया.

जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तब स्थिति साफ की थी, एक बार फिर उनको ही आगे आकर सरकार की स्थिति स्पष्ट करनी होगी. चूंकि राम मंदिर का मामला तब सुप्रीम कोर्ट में रहा, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी का कहना रहा कि अदालत का फैसला आने से पहले सरकार कोई भी कदम नहीं उठाने वाली. बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आ गया और भूमि पूजन के बाद राम मंदिर निर्माण का काम भी चल रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से रुख साफ किया जाना तब और भी जरूरी हो जाता है, जब केंद्रीय मंत्री के संसद में बयान के बाद भी संघ प्रमुख अपनी मांग दोहराते हैं. फिर तो और कोई रास्ता भी नजर नहीं आता.

जनसंख्या नियंत्रण पर प्रधानमंत्री मोदी का बयान सरकार का रुख तो साफ करेगा ही, योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं के लिए भी सबक होगा. अगर प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से किसी तरह का आश्वासन मिलता है तब तो बात ही और है, वरना योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं के लिए नसीहत तो होगी ही झटका भी होगा.

घर वापसी और लव जिहाद जैसी मुहिम चला कर कट्टर हिंदू नेता की छवि हासिल करने वाले योगी आदित्यनाथ जनसंख्या नियंत्रण जैसे कार्यक्रमों के पक्ष में खड़े होकर अपना जनाधार तो बढ़ा ही रहे हैं, उनके समर्थक योगी आदित्यनाथ को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखने लगे हैं.

संघ की तरफ से भले ही योगी आदित्यनाथ को सपोर्ट मिलता रहा हो, लेकिन बीजेपी नेतृत्व तो अपने एक्शन से ही हकीकत से रूबरू कराने की कोशिश करता है. बीजेपी संसदीय बोर्ड में योगी आदित्यनाथ को न लिया जाना भी तो मैसेज ही था - मोदी के बाद योगी नहीं, अमित शाह का नंबर आता है. मतलब, अभी तो होगा वही जो अमित शाह चाहेंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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