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Updated: 23 जून, 2016 07:07 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शंघाई संगठन समिट के लिए उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद पहुंच चुके हैं जहां वह चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करेंगे. वित्त मंत्री अरुण जेटली पांच दिवसीय यात्रा पर बीजिंग पहुंचे हैं, जहां वह चीन प्रायोजत एशियन इंवेस्टमेंट बैंक की पहली बैठक में देश का नेतृत्व करेंगे और चीन के साथ वित्तीय संबंधो पर अहम द्विपक्षीय वार्ता करेंगे. वहीं विदेश सचिव एस जयशंकर दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल पहुंच चुके हैं जहां न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) की दो दिवसीय अहम बैठक शुरू हो चुकी है. इस बैठक में भारत को समूह की सदस्यता देने पर चर्चा होने की संभावना जताई गई है.

प्रधानमंत्री के विदेश दौरों को मकसद के हिसाब से देखा जाए तो उनकी यह ताशकंद यात्रा अब तक की सबसे अहम विदेश यात्रा है. इस यात्रा में उनकी अब तक की सभी विदेश यात्राओं का सार है. अमेरिका से लेकर यूरोप और ऑस्ट्रेलिया तक की अपनी यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को दुनिया के उस एक्सक्लूजिव न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की सदस्यता दिलाने की कवायद की है और अब इस दिशा में सबसे बड़ा रोढ़ा माने जा रहे चीन से वह ताशकंद में मुलाकात करने वाले हैं. मोदी और जिनपिंग की इस मुलाकात में भारत की एनएसजी सदस्यता पर सस्पेंस का पर्दा पूरी तरह से उठने जा रहा है.

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 शंघाई संगठन समिट में एनएसजी को लेकर हो सकती है प्रधानमंत्री मोदी की शी जिनपिंग से बात

भारत को एनएसजी सदस्यता मिलने में चीन की खास अहमियत है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस वक्त कोरिया की राजधानी सियोल में देश के विदेश सचिव एनएसजी के सदस्य देशों की किसी टिप्पणी या सवाल का जवाब दे रहे होंगे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन और रूस के राष्ट्रपति के साथ होंगे. इतनी ही नहीं, एक बैकअप के तौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद रहेंगे जहां सियोल की मुलाकात के बाद उनकी चीन के वित्त मंत्री से अहम मुलाकात होनी है.इससे पहले 2008 में तत्कालीन प्रधानंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान एनएसजी से भारत को महत्वपूर्ण छूट मिली थी जिसके बाद बिना इस समूह में शामिल हुए भी भारत समूह के कई अधिकारों का इस्तेमाल कर रहा था. इस वक्त भी भारत ने एनएसजी के सभी सदस्य देशों को एक सूत में पिरोने का काम किया था लेकिन वह छूट लेने में सबसे अहम भूमिका तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश की थी जिन्होंने ऐसी ही अहम बैठक से पहले एनएसजी के सभी सदस्य देशों को पर्सनली फोन कर भारत के पक्ष में फैसला करने की पुरजोर अपील की थी.

बहरहाल, इस बार मामला थोड़ा ज्यादा पेंचीदा है. भारत ने इस समूह की पूर्ण सदस्यता की कवायद की है और चीन के साथ-साथ कुछ देशों ने भारत को इस समूह में शामिल करने पर अपना रुख साफ नहीं किया है. अब से कुछ दिनों पहले तक चीन ने भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को भी शामिल किए जाने की दलील के साथ भारत के प्रस्ताव को कमजोर करने की कोशिश की थी. लेकिन हाल में चीन की तरफ से इस मुद्दे पर संजीदगी के साथ वार्ता करने की बात आने से यह संदेश मिला कि भारत को सदस्यता दिए जाने के लिए चीन ने अपने रुख में नर्मी दिखाई है. वहीं अमेरिका, फ्रांस और रूस जैसे अहम मित्र देशों ने एक बार फिर अपनी तरफ से एनएसजी सदस्यों से भारत की सदस्यता पर उचित फैसला करने की अपील की है.

अब देखना यह है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी की इस मुद्दे पर कवायद रंग लाएगी? क्या वह चीन को इस बात के लिए राजी कर पाएंगे कि भारत को इस समूह में जगह देना दोनों देशों की आर्थिक स्थिति के लिए बेहतर होगा. लिहाजा एक बात साफ है कि अब से कुछ घंटों में सियोल में होने वाले फैसले के लिए भारत ने अपनी पूरी ताकत लगा रखी है. इस बैठक में चाहे किसी भी कीमत पर फैसला यदि भारत के पक्ष में होता है तो उसे अंतरराषट्रीय जगत में प्रधानमंत्री मोदी का सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी. जाहिर है यह प्रधानमंत्री मोदी की इसीलिए अब तक की सबसे अहम विदेश यात्रा है.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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