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Updated: 18 दिसम्बर, 2015 05:32 PM
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जीएसटी बिल को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के साथ चाय पर चर्चा की. वेंकैया नायडू ने घर घर दस्तक अभियान चलाया, लेकिन नतीजा?

अब मोदी सरकार बड़ी ही बेबसी के साथ स्वीकार कर रही है कि किसी भी सूरत में जीएसटी 1 अप्रैल 2016 से लागू नहीं होने वाला. शराबबंदी पर नीतीश का रवैया सबके सामने ही है.

हासिल सिर्फ शून्य

तमाम गुणा भाग के बावजूद जीएसटी के मसले पर सरकार को शून्य ही हासिल हुआ है. मोदी ने सोनिया और मनमोहन को बुलाकर 25 नवंबर को जीएसटी पर चर्चा की. फिर वेंकैया नायडू ने कांग्रेस के कई नेताओं के घर जाकर मुलाकात की. वेंकैया ने अरुण जेटली के साथ कांग्रेस के कुछ नेताओं को संसद में इसी मकसद से दावत भी दी लेकिन वे खा पीकर चलते बने. पहले कांग्रेस ने कहा कि उसके नेता मल्लिकार्जुन खर्गे की मौजूदगी में ही बात होगी, बाद में बोल दिया कि बात सिर्फ जीएसटी पर नहीं होगी. बात होगी तो ललित गेट से लेकर व्यापम तक पर बात करनी पड़ेगी.

खबर थी कि सरकार ने जीएसटी को लेकर कांग्रेस की आपत्तियां दूर करने पर भी राजी हो गई थी लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई.

अभी बैक डोर से जीएसटी पर रास्ते खोजे ही जा रहे थे कि हेराल्ड केस निकल आया और कांग्रेस का ध्यान उसकी ओर घूम गया.

नई तारीख

हो सकता है सरकार अब जीएसटी की डेडलाइन 1 अप्रैल से बढ़ाकर 1 जून या कोई और तारीख कर दे. जीएसटी बिल भी सरकार अगले सत्र में पेश करने का फैसला करे.

डेडलाइन बढ़ाने के कयास लगाए जाने की वजह भी है. अप्रैल तक राज्य सभा में बीजेपी के सदस्यों की संख्या में इजाफा हो जाएगा. तब तक बीजेपी के 17 सदस्य बढ़ने की अपेक्षा है. ऐसा हुआ तो मौजूदा 48 सदस्यों सहित ये संख्या 65 हो जाएगी. फिर ये कांग्रेस के 67 से कम ही होगी. राज्य सभा में समाजवादी पार्टी के 15, जेडीयू और टीएमसी के 12-12 और बीएसपी के 10 सांसद हैं.

सदन में शक्ति परीक्षण की हालत में विपक्ष के बंटने का फायदा सरकार को जरूर मिलेगा. अब तक की स्थिति से तो ऐसा ही लग रहा है कि विपक्ष एकजुट नहीं है - खास कर हेराल्ड केस में कांग्रेस के स्टैंड को लेकर.

वैसे अब तक जो तस्वीर सामने आई है उसमें लालू प्रसाद भी जीएसटी के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं. शरद यादव का जीएसटी के पक्ष में ताजा ताजा बयान आया ही है. मुलायम सिंह यादव पहले से ही सरकार के साथ हैं. ममता बनर्जी ने भी जीएसटी पर समर्थन की बात कह ही रखी है.

जब इतने लोग पक्ष में हैं और सरकार का दावा है कि कांग्रेस ने जो एतराज जताया था उसे भी मान लिया गया है फिर लागू होने में मुश्किल क्या है? मोदी और नीतीश कुमार कहने को तो एक दूसरे के विरोधी हैं, लेकिन सारे तौर तरीके एक जैसे अपनाते हैं.

1 अप्रैल की तारीख इतना भायी कि दोनों ने अपने अपने हिसाब से तारीख पक्की कर दी. मोदी ने जीएसटी तो नीतीश ने शराबबंदी के लिए पहली अप्रैल की तारीख पसंद की. जब फैसले लागू करने की नौबत आई तो दोनों ने ही पल्ला झाड़ लिया. मोदी विपक्ष पर तोहमत मढ़ने का इंतजाम कर लिया तो नीतीश ने राजस्व की मजबूरी खोज निकाली.

ये आश्वासन भी ब्लैक मनी पर उछाले गए चुनावी जुमले जैसे क्यों लगने लगे हैं? या इस बार सारे नेता मिलकर लोगों को अप्रैल फूल बना रहे हैं?

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