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Updated: 26 मई, 2018 05:07 PM
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अपनी सरकार के चार साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा खुद का रिपोर्ट देने का आइडिया अपनी जगह सही है. किसी को इस बात से भी आपत्ति नहीं हो सकती कि वो देश के किस हिस्से में रिपोर्ट कार्ड पेश करें, लेकिन जगह विशेष के पीछे कोई वजह समझ में आये तो मन में कुछ सहज सवाल जरूर उभरते हैं. सवाल ये है कि प्रधानमंत्री रिपोर्ट कार्ड के लिए ओडिशा को क्यों चुना?

क्या मोदी के ओडिशा में रिपोर्ट कार्ड पेश करने के पीछे बीजेपी की दक्षिणायन होती कोई रणनीति है?

दक्षिणायन होती बीजेपी

बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस में अमित शाह से दक्षिण भारत को लेकर पार्टी के रुख के बारे में पूछा गया. जवाब में अमित शाह ने कर्नाटक में बीजेपी के प्रदर्शन का उदाहरण दिया. दक्षिण में पोटेंशियल की बात मानते हुए अमित शाह ने सवालिया लहजे में कहा - 'कर्नाटक में 40 से 104 पर पहुंचना आखिर क्या है?'

amit shahकर्नाटक से आगे... ओडिशा है!

दक्षिण भारत का पहला राज्य कर्नाटक ही रहा जहां येदियुरप्पा ने बीजेपी के संगठन को खड़ा किया और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हुए. कोशिश तो उन्होंने नये सिरे से भी की थी, बहुमत से पिछड़ जाने के बावजूद लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाने के चलते नाकाम हो गये. बहरहाल, सवाल ये है कि बीजेपी की ओडिशा को लेकर इतनी ज्यादा दिलचस्पी क्यों है? एक ऐसा राज्य जहां लोक सभा की 21 सीटों में से सिर्फ एक सीट बीजेपी के पास है. ओडिशा में भी विधानसभा चुनाव आम चुनाव के साथ ही 2019 में होने हैं.

अब तक धारणा यही रही है कि प्रधानमंत्री पद का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है. मोदी ने भी यही सोचकर गुजरात से यूपी का रुख किया और वाराणसी को संसदीय क्षेत्र बनाया. 2014 में वो चुनाव तो गुजरात के वडोदरा से भी लड़े थे, लेकिन बाद में वो सीट छोड़ दी.

कुछ मीडिया रिपोर्ट में 2019 में मोदी के ओडिशा से भी चुनाव लड़ने की संभावना जतायी जा रही है. पिछली बार जब मोदी ने यूपी का रुख किया तो वहां भी बीजेपी की स्थिति अच्छी नहीं थी. मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने यूपी में न सिर्फ 71 सीटें जीतीं बल्कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भारी जीत दर्ज कर सूबे में सरकार बनाने में भी सफल हुई.

बीजेपी की यूपी वाली रणनीति के हिसाब से देखें तो मोदी के ओडिशा की ओर रुख करने को लेकर तस्वीर थोड़ी साफ होती लगती है. ओडिशा में रिपोर्ट कार्ड पेश करने की बात भी उन मीडिया रिपोर्ट का सपोर्ट करती है जिनमें उनके वाराणसी के अलावा ओडिशा की किसी सीट से चुनाव लड़ने की बात चल रही है. कर्नाटक के मंच पर विपक्षी दलों की जो एकजुटता दिखी उसके बाद एक सर्वे में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान यूपी में भी देखी गयी. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बीजेपी की मौजूदा सीटों में से 56 सीटों का नुकसान देखा गया और उनमें 46 यूपी से पायी गयीं. इससे भी लगता है कि बीजेपी यूपी सहित उत्तर भारत में होने वाले नुकसान की भरपाई दक्षिण से करना चाहती है - और ओडिशा उसे हर हिसाब से माकूल लग रहा होगा.

narendra modiओडिशा पर खास नजर...

वैसे भी प्रधानमंत्री मोदी पिछले तीन साल में छठी बार ओडिशा के दौरे पर हैं. 2017 में ओडिशा में ही बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी - और तभी अमित शाह ने बीजेपी के स्वर्णकाल की बात कही थी. हाल ही में शाह ने दोहराया कि जब तक ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बीजेपी की सरकार नहीं बन जाती मिशन पूरा नहीं होगा. ये बात शाह ने तब कही थी जब वो मान कर चल रहे थे कि कर्नाटक चुनाव तो बीजेपी जीतेगी ही.

बीजेपी ने उत्तर से दक्षिण की ओर रुख करने की रणनीति तो काफी हद तक साफ कर दी है - क्या नया स्लोगन गढ़े जाने में भी इसी रणनीति की कोई भूमिका है?

स्लोगन नया, सोच भी वही या कुछ अलग?

अपनी सरकार के चार साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक वीडियो ट्वीट किया है. नये स्लोगन के साथ - साफ नीयत, सही विकास.

एक अन्य ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं, '2014 में आज के ही दिन हमने भारत के बदलाव के सफर की शुरुआत की थी. पिछले चार साल में विकास जन आंदोलन बन गया है. देश का हर नागरिक इसमें अपनी हिस्‍सेदारी महसूस कर रहा है. 125 करोड़ भारतीय भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं.' देश का विकास अलग अलग पैमानों पर तौला जा रहा है और उसी हिसाब से सत्ता पक्ष और विपक्ष दावे कर रहा है, लेकिन एक मोदी की एक बात आंकड़ों से मेल नहीं खाती. आबादी को लेकर जो आंकड़ा मोदी की जबान पर बार बार आता है और ट्वीट में भी उसी का जिक्र है उसमें अब तक 10 करोड़ का इजाफा हो चुका है.

2014 के चुनाव प्रचार में मोदी हर मौके पर 'अच्छे दिन...' का जिक्र जरूर किया करते. सत्ता संभालने के बाद इस नारे की जगह 'सबका साथ, सबका विकास' ने ले ली. नये स्लोगन - 'साफ नीयत, सही विकास' में विकास तो है लेकिन 'साथ' की बात पीछे छूट गयी है. ये स्लोगन खास तौर पर 2019 के हिसाब से गढ़ा गया माना जा रहा है.

अब तक जब भी गोररक्षकों के उत्पात या अल्पसंख्यकों को टारगेट किये जाने की बात छिड़ती, प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनके सारे मंत्री और तमाम बीजेपी ने नेता एक बार 'सबका साथ, सबका विकास' स्लोगन की याद जरूर दिलाते और इसे मोदी सरकार का मूल मंत्र बताते.

digvijay, javadekar'48 साल बनाम 48 महीने'

ऐसा लगता है जैसे ये नारा भी बीजेपी के दक्षिणायन होने की रणनीति के तहत ही गढ़ा गया है. 'सबका साथ, सबका विकास' एक तरीके से बीजेपी के लिए बचाव का हथियार रहा जो खुद के हिंदुत्व एजेंडे पर घिर जाने की स्थिति में वो इस्तेमाल किया करती रही. अब बीजेपी कुछ ठोस दिखाना चाहती है. विशेष कार्यक्रम 'पंचायत आज तक' में मोदी सरकार के मंत्रियों का भी जोर '48 साल बनाम 48 महीने' पर ही रहा - और मोदी सरकार की उपलब्धियों पर फोकस रहे. कांग्रेस नेताओं के काउंटर करने पर भी किसी ने नये तरीके की कोई नयी बात नहीं कही. बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस में भी अमित शाह ज्यादातर वक्त कांग्रेस की पुरानी सरकारों को ही कोसते रहे, लेकिन उन्होंने 'पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस' की भी बात कही. पंचायत आज तक में ऐसे ही एक सवाल पर नितिन गणकरी का कहना रहा कि वो कोई पत्रकार या साधु संत नहीं हैं. बल्कि, हर राजनीतिक पार्टी की तरह चुनाव लड़ कर सत्ता हासिल करने में यकीन रखते हैं और इसमें गलत क्या है?

लगता है बीजेपी अब 'पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस' जैसी ठोस बातों के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है - और नया स्लोगन 'साफ नीयत सही विकास' नये फॉर्मैट में ज्यादा सूट करता है.

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