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Updated: 09 अगस्त, 2015 12:51 PM
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सूचना और प्रसारण मंत्रालय न्याय व्यवस्था और भारतीय राष्ट्रपति के सम्मान की रक्षा के लिए एक्शन में आ गया है. ऐसा बताया गया है कि तीन टीवी चैनलों ने राष्ट्रपति और न्यायपालिका की अवमानना की है. यह मामला याकूब मेमन को हुई फांसी से जुड़ा है. ऐसा कहा गया है कि इन चैनलों ने इस मसले पर अलग राय रखते हुए इसे खूब उछाला.

यह तीन चैनल हैं आज तक, एबीपी न्यूज और एनडीटीवी 24x7. इन चैनलों ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की वांटेड सूची में शामिल छोटा शकील का इंटरव्यू चलाया. शकील ने इस इंटरव्यू में कहा कि याकूब निर्दोष था और उसके साथ न्याय नहीं किया गया. साथ ही शकील ने यह भी कहा कि वह कोर्ट पर विश्वास नहीं करता. एनडीटीवी ने याकूब के वकील का इंटरव्यू चलाया जिसमें उन्होंने यह मत व्यक्त किया कि कई देशों में अब फांसी की सजा को खत्म किया जा चुका है.

अखबारों में भी ऐसे विचार आए. सोशल मीडिया और समाचार वेबसाइटों में भी कई जगह यह बातें कही गई. एक अखबार ने तो टाइगर मेमन की बात तक को छापा और कहा कि टाइगर ने खुद इस अखबार को फोन किया. हालांकि अखबार और नए मीडिया को लेकर ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा क्योंकि वे 'प्रोग्राम कोड' के दायरे में नहीं आते जो अपने आप में बेहद सख्त और हास्यास्पद रूप से काफी बड़ा है.

अगर सूचना और प्रसारण मंत्रालय इतना ही गंभीर है तो प्रोगाम कोड को सख्ती से लागू करे. तब भारत में शायद ही कोई टीवी चैनल बचेगा. यहा तक कि दूरदर्शन के सामने भी बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी.

प्रोगाम कोड को केबल नेटवर्क टेलीविजन रूल्स, 1994 के रूल-6 में जगह दी गई है. इसमें 15 सब-क्लॉज हैं. इसके एक नियम के अनुसार प्रसारणकर्ता (ब्रोडकास्टर्स) को किसी ऐसे कार्यक्रम का प्रसारण नहीं करना चाहिए 'जो सभ्य न हो और लोगों की पसंद के खिलाफ हो.' अब मुझे वहां लोगों द्वारा व्याकरण का गलत इस्तेमाल पसंद नहीं आता. यह मेरी पसंद के खिलाफ है लेकिन मैं व्याकरण का मंत्री तो हूं नहीं.

कई ऐसी चीजें हैं जिसका अर्थ सरकार इस रूप में लगा सकती है कि यह सभ्य नहीं है और नियमों के खिलाफ है. क्या अब सरकार निर्णय लेगी कि 125 करोड़ लोगों की पसंद का विषय क्या होगा? सरकार को क्या यह अच्छा लगता है जब एंकर लगातार ऊंची आवाज में चिल्लाते रहते हैं? या फिर यह क्या सभ्य लगता है जब टीवी न्यूज वाले लगातार अपने कार्यक्रम में आए मेहमानों से सवाल करते हैं और मेहमान है कि उस पर कुछ बोलता नहीं?

सरकार किसी चैनल पर इस वजह से प्रतिबंध तो लगाने नहीं जा रही क्योंकि फलां चैनल का एंकर ज्यादा तेज आवाज में बात करता है. लेकिन कानूनन अगर सरकार चाहे तो ऐसा कर सकती है. अहम बात यह कि प्रोगाम कोड अपने आप में इतना विस्तृत है कि सरकार जब चाहे किसी चैनल को नोटिस भेज सकती है. फिर भी कभी किसी चैनल का लाइसेंस रद्द नहीं किया गया. कुछ मौकों पर कुछ मेहमानों द्वारा किसी-किसी चैनल के बहिष्कार या उसके कार्यक्रम में हिस्स नहीं लेने की बात जरूर होती रही है. ऐसे में इस नोटिस का सीधा मतलब तो यही है कि एक चेतावनी दी जा रही है. चेतावनी यह कि हम जैसा कहते हैं वेसा करों नहीं तो हमारे पास आपको चुप कराने के पर्याप्त साधन मौजूद हैं.

प्रोग्राम कोड में कई और दूसरे नियम हैं. मसलन, आप ऐसे कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं कर सकते जिसमें मित्र देशों की आलोचना है. या किसा धार्मिक ग्रुप के लिए अपमानजनक बातें कही गई हो, अश्लील या अभद्र हो, झूठी सूचना हो, किसी को जानबूझकर बदनाम करने की कोशिश हो. यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होता और इसकी एक लंबी सूची है. अंधविश्वास को बढ़ावा देने से रोकने के नियम को अगर देखा जाए तो हमारे आधे से ज्यादा हिंदी न्यूज चैनल बंद हो जाएंगे.

याकूब के मामले में राष्ट्रपति के फैसले पर सवाल उठाने की कोशिश की बात कही गई है. प्रोग्राम कोड अपने आप में बोलने और अपनी राय जाहिर करने की आजादी जैसे मूल अधिकारों का अतिक्रमण करता है. इसके कई नियम तर्कसंगत हैं ही नहीं. ऐसे में इसे ही अदालत में चुनौती दी जा सकती है.

महत्वपूर्ण बात यह कि बोलने की आजादी पर सरकार की ओर से किसी भी प्रकार का नियंत्रण कोर्ट के जरिए आना चाहिए. अगर सरकार जनहित को देखते हुए किसी चीज को सेंसर करना चाहती है तो उसे इसके लिए कोर्ट से आदेश हासिल करना चाहिए.

याकूब मामले पर तीन चैनलों को नोटिस जारी किए गए और सरकार ने याकूब के अंतिम संस्कार की कवरेज पर रोक लगाई. यह दिखाता है कि सरकार कैसे किसी मुद्दे की विस्तृत कवरेज को नियंत्रण करने के मूड में है. क्या पता कल सरकार यही रवैया अन्य राजनीतिक मुद्दों जैसे भ्रष्टाचार आदि के मामले में भी अपनाएगी. प्रोग्राम कोड का उपयोग UPA2 सरकार ने भी किया.

हम सरकार को यह फैसला नहीं करने देंगें कि हम कैसे सोचे, या फिर क्या खबर और क्या खबर नहीं है. सरकार किसी टीवी न्यूजरूम के आउटपुट एडिटर की नौकरी पर कब्जा नहीं कर सकती.

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लेखक

शिवम विज शिवम विज @shivamvijdillidurast

लेखक एक पत्रकार हैं.

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