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Updated: 07 मई, 2020 09:51 PM
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25 मार्च को संपूर्ण लॉकडाउन लागू होने के बाद से दिहाड़ी मजदूरों (Migrant Workers) के कदम रुके नहीं हैं. अब भी ऐसी खबरें आ रही हैं कि कैसे कुछ मजदूरों का समूह साइकिल से ही अपने घर लौटा है - और कैसे कोई मजदूर घर पहुंचने के ऐन पहले ही रास्ते में ही दम तोड़ बैठा. जगह जगह मजदूरों के संघर्ष और श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में खाने को लेकर मारपीट की भी खबरें हैं.

मजदूरों को लेकर हाल फिलहाल दो विवाद भी हुए हैं - एक मजदूरों से रेल टिकट का किराया वसूले जाने का और दूसरा, कर्नाटक में कारोबारियों के दबाव में ट्रेन कैंसल किये जाने को लेकर.

अब जो खबर आ रही है वो बता रही है कि दिहाड़ी और प्रवासी मजदूरों की कितनी अहमियत है - और किसे मजदूरों की किस वजह से कितनी फिक्र है?

खबर है कि कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को फोन कर अपील की है कि जैसे भी मुमकिन हो वो मजदूरों की वापसी का कार्यक्रम रोक दें. असल में ये अर्थव्यवस्था (Economic Challenges) को पटरी पर लाने की चुनौती है - और थोड़ा डर भी.

मजदूरों को रोक दें प्लीज!

राज्य सरकारों की ही मांग पर शुरू हुई श्रमिक स्पेशल ट्रेनों की डिमांड सभी राज्यों ने अपनी अपनी जरूरत के हिसाब से रेलवे को बता दी थी, लेकिन कर्नाटक की बीएस येदियुरप्पा सरकार ने अचानक ऐसी 10 ट्रेनों की मांग रद्द कर दी. सूत्रों के हवाले से न्यूज एजेंसी ने खबर दी कि बीजेपी सरकार ने ये कदम बिल्डर्स की मांग पर उठाया है. माना गया कि अगर प्रवासी मजदूर अपने घर लौट गये तो निर्माण के काम तो लटक जाएंगे. अपने इस फैसले को लेकर कर्नाटक सरकार विपक्ष के निशाने पर है.

इससे पहले मजदूरों के लिए रेल टिकट के किराये लेने की बात हुई थी तो कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने एक करोड़ रुपये का फंड ऑफर किया था - और फिर सोनिया गांधी ने बयान जारी कर कहा कि मजदूरों का किराया कांग्रेस अपने संसाधनों से जुटा कर देगी. उसके बाद फिर सत्ता पक्ष की तरफ से जैसे तैसे मैनेज कर मामले को शांत कराने की कोशिश की गयी. अब खबर ये है कि कर्नाटक सहित कई राज्यों मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को फोन कर गुजारिश कर रहे हैं कि वो मजदूरों को वापस न बुलायें. अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक के अलावा पंजाब, हरियाणा और गुजरात के मुख्यमंत्री फोन कर योगी आदित्यनाथ से मजदूरों की वापसी का कार्यक्रम रोक देने की अपील की है.

ये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भरोसा दिलाने की भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि प्रवासी मजदूरों को लौटने की जरूरत नहीं पड़ेगी और राज्य सरकार उनके हितों का पूरा ख्याल रखेगी.

हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने लॉकडाउन के दौरान इंतजामों में लगे अधिकारियों से कहा था कि दो महीने में दूसरे राज्यों से 5-10 लाख मजदूरों के पहुंचने की संभावना है. लिहाजा वे उनके लिए क्वारंटीन से लेकर हर संभव जरूरी उपाय जल्द से जल्द सुनिश्चित कर लें. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मुताबिक करीब सात लाख मजदूर लॉक डाउन के फौरन बाद अपने घर लौटने वाले हैं. बिहार का तो हाल ये है कि पांच लाख से ज्यादा लोग लौट चुके हैं और लौटने की इच्छा रखने वालों की तादाद करीब 20 लाख है. लॉकडाउन खत्म होने के बाद यूपी लौटने वालों की भी तादाद वैसी ही हो सकती है.

yogi adityanath, migrant labourersलखनऊ में उत्तर प्रदेश लौटे प्रवासी मजदूरों का हालचाल लेते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

ऐसे ही फोन अप्रैल के मध्य में नीतीश कुमार के पास भी आये थे. तब भी ऐसे ही कई राज्यों ने बिहार सरकार से संपर्क साधा था. तब भी यूपी सरकार से इस मकसद से संपर्क किया गया था. तब भी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बारे में मालूम हुआ था कि वो नीतीश कुमार से मजदूरों को लेकर मदद मांग रहे थे. अमरिंदर सिंह ने बिहार सरकार को भरोसा दिलाया था कि पंजाब सरकार मजदूरों के हितों का पूरा ध्यान रखेगी.

दरअसल, पंजाब की खेती बिहार और यूपी के मजदूरों की मेहनत पर ही काफी हद तक टिकी होती है. तेलंगाना सरकार ने भी बिहार और यूपी सरकार से संपर्क कर ऐसा ही आग्रह किया था. तेलंगाना सरकार का तो यहां तक कहना था कि अगर जरूरी लगे तो वो लॉकडाउन के बाद बस और ट्रेन के माध्यम से मजदूरों के काम पर लौटने का इंतजाम भी कर सकते हैं.

आखिरकार काम ही बोलता है

एक अनुमान के मुताबिक देश में 90 फीसदी रोजगार असंगठित क्षेत्र में हैं और इनमें आधे से अधिक हिस्सेदारी यूपी और बिहार के प्रवासी मजदूरों की है - एक बार घर लौट जाने के बाद अगर वे दोबारा काम पर नहीं पहुंचे तो पूरी व्यवस्था ही चरमरा जाएगी.

ऐसे में कई मुख्यमंत्रियों को डर है कि अगर प्रवासी मजदूर वापस चले जाएंगे तो राज्य में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की सारी कवायद धरी की धरी रह जाएगी. जब मजदूर ही नहीं रहेंगे तो काम कौन करेगा और काम ही नहीं होगा तो अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार तो होने से रहा.

ये योगी आदित्यनाथ ही हैं जो दिहाड़ी मजदूरों के लिए सबसे पहले आगे आये. ये भी तब की बात है जब लॉकडाउन के बाद दिल्ली में रह रहे हजारों मजदूर, बच्चों के साथ महिलाएं और बुजुर्ग पैदल ही अपने गांव पहुंचने के लिए निकल पड़े थे. दिल्ली में किराये के ठिकानों से निकल कर पहले आनंद विहार और फिर गंतव्य की ओर. जो जैसे था वैसे ही निकल पड़ा. कोई ठेले पर. कोई साइकिल से और ज्यादातर पैदल ही. ये तभी की बात है जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह रहे थे कि जो जहां हैं वहीं बने रहें वरना लॉकडाउन फेल हो जाएगा - और अरविंद केजरीवाल के विरोधी उन पर वोट मिल जाने के बाद पूर्वांचल के लोगों को खुली सड़क पर छोड़ देने के इल्जाम लगा रहे थे.

ये भी तभी की बात है जब योगी आदित्यनाथ रातों रात बसों का इंतजाम कर दिल्ली की सीमा पर भेजे और यूपी के लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने का इंतजाम किया. बाद में तो योगी आदित्यनाथ ने कोटा में फंसे यूपी के छात्रों को भी वापस लाया और मजदूरों की वापसी का सिलसिला तो जारी ही है. बाकी बातें अपनी जगह हैं और सबसे बड़ा सच तो यही है कि अर्थव्यवस्था की चुनौतियों ने आखिरकार मजदूरों की पूछ बढ़ा ही दी.

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