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Updated: 31 जनवरी, 2022 03:41 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सियासी ड्रामे में अनूठी स्क्रिप्ट लिखी जा रही है. है बड़ी दिलफरेब चीज इतनी की यहां रिश्तों, नातों, कसमों वादों और विचारधारा की कोई जगह नहीं है. 'बहुओं' ने ऐसी क्रांति की शुरुआत कर दी है जो 'ससुरों' की राजनीति को खराब कर रही है. मैटर बरेली का है. पानी पी पीकर भाजपा को कोसने और सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अपने बयानों के लिए मशहूर और अभी बीते दिनों ही यूपी में अधर में फंसी कांग्रेस पार्टी को समर्थन देने वाले मौलाना तौक़ीर रजा की बहू निदा खान ने भाजपा की सदस्यता ले ली है.

एक कट्टरपंथी परिवेश से भाजपा के दर पर आने से पहले निदा ने ड्रामा भी कम नहीं किया. भाजपा आईं निदा ने ऐसा बहुत कुछ कहा जिसने न चाहते हुए भी अखबार वालों को उन्हें 3 पन्ने पर जगह देने के लिए मजबूर कर दिया. निदा ने खुद को अबला बताते हुए कहा कि उनके साथ अब तक जो अन्याय हुए हैं, उसके बाद अब उन्हें किसी पर भी भरोसा नहीं है, सिवाए बीजेपी के. निदा ने ये भी कहा है कि भाजपा में शामिल होने के बाद वो किसी कर्मठ सिपाही की तरह न्याय की लड़ाई लड़ेंगी.

UP Assembly Elections 2022, Nida Khan, Maulana Tauqeer Raza, BJP, Triple Talaq, Justice, Aparna Yadavयूपी चुनाव से पहले मौलाना तौकीर रजा की बहू का भाजपा के खेमे में जाना सिर्फ सियासी ड्रामा है

इतिहास गवाह है बीजेपी में आए रंगरूट का परम कर्तव्य है कि यहां आने के बाद वो भले ही भाजपा की शान में कसीदे बाद में पढ़े लेकिन उसे पहले तल्ख बाण चलाने होंगे कांग्रेस पार्टी और कांग्रेसियों को छलनी करना पड़ेगा. बात चूंकि निदा की हुई है तो उन्होंने भी इस परंपरा का पूर्णतः पालन किया है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को निशाने पर लेते हुए निदा ने कहा है कि जब वह मौलाना तौक़ीर रजा के घर की बहू बनीं और उनके साथ अन्याय हुआ, तो तौकीर रजा गूंगा गुड़ खाए रहे और उनके मुंह से चूं तक नहीं निकली. लेकिन आज वही तौकीर रजा खुद को प्रियंका गांधी का बड़ा भाई बताकर उनके साथ खड़े रहने का दावा करते हैं. प्रियंका के 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' नारे का समर्थन करते हैं.

ताजी ताजी भाजपा में आईं निदा कितनी और किस हद तक भरी हुई हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की5 उन्होंने भाजपा के मोह में अपने ससुर तक को नहीं छोड़ा. बताया कि वह (मौलाना तौक़ीर रजा) अपनी घर की महिलाओं का उत्पीड़न करते हैं. पढ़ने वाली लड़कियों को कॉलेज से उठवा लेते हैं और फिर प्रियंका गांधी का भाई बनकर उनके संरक्षक बनने की बात करते हैं.

एक पुरानी घटना का जिक्र करते हुए निदा ने कहा कि जो बहू पढ़ना चाहती थी, उसे मौलाना के गुर्गों द्वारा एग्जाम सेंटर से उठवा लिया गया. विरोध करने पर तीन तलाक की धमकी दी गई. निदा के अनुसार तौकीर रजा ने उनसे ये तक कहा था कि अगर परिवार या उनकी (मौलाना तौकीर रजा की) राजनीति के खिलाफ उन्होंने (निदा ने) एक शब्द भी बोला तो फतवा जारी करा दिया जाएगा.

यानी अपने साथ हुए जुल्मों सितम को आधार बनाकर और न्याय की लड़ाई के लिए निदा ने भाजपा का दामन थाम लिया है. जैसी बातें हैं साफ है कि निदा ने अपने फैसले से खुद को मुसलमानों का रॉबिन हुड समझने वाले तौकीर रजा की मिट्टी पलीत कर दी है और उनकी पॉलिटिक्स को कटघरे में खड़ा कर दिया है.

बात क्रांति करती बागी बहुओं की चली है और उसमें भी बड़ी बात उत्तर प्रदेश की चली है. तो सपा खेमे को क्यों छोड़ दिया जाए. एक ऐसे समय में जब यूपी का किला फतेह करने के लिए अखिलेश यादव ने सियासी चौपड़ बिछा दी हो. अपने घोड़े खोल दिये हों घर की बहू अपर्णा यादव बिष्ट का भाजपा में जाना न केवल अखिलेश यादव के लिए परेशानी का सबब है बल्कि उस खड़ी फसल पर पाला गिरने की तरह है जिसे नेता जी (मुलायम सिंह यादव ) ने बड़े अरमानों से बोया था.

घर परिवार में जो गतिरोध था सो था, मगर अपर्णा ने चुनाव से ठीक पहले टीम अखिलेश से टीम योगी में स्विच करने का फैसला क्यों लिया ? एक बड़ी वजह राजधानी लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट है. इस सीट से चुनाव लड़कर जीत की लाल टोपी पहनने का अपर्णा का बड़ा मन था. लेकिन अखिलेश यादव ने एक न सुनी नतीजा बहू अपर्णा के बागी तेवर.

अपर्णा भले ही कैंट से टिकट की लालच में ससुर मुलायम सिंह यादव को भौचक्का छोड़ भाजपा के खेमे में आ गयी हों लेकिन यहां भी चुनौतियां कम नहीं हैं. लखनऊ की कैंट सीट ने खुद एक पार्टी के रूप में भाजपा के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है. ज्ञात हो कि लखनऊ कैंट सीट पर वोटिंग चौथे चरण के तहत 23 फरवरी को होगी, लेकिन कन्फ्यूजन कुछ यूं है कि बीजेपी अब तक अपने उम्मीदवार के नाम पर मुहर नहीं लगा पाई है.

करीब 3 लाख से ज्यादा मतदाता कैंट सीट पर अपर्णा के अलावा प्रयागराज की सांसद रीता बहुगुणा जोशी और लखनऊ कैंट के मौजूदा विधायक सुरेश चंद्र तिवारी की भी नजर है. रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे मयंक के लिए कैंट से टिकट मांग रही हैं. लखनऊ कैंट की पूर्व विधायक रीता बहुगुणा जोशी इस सीट के लिए कितनी गंभीर हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें बेटे के स्वर्णिम भविष्य के लिए अपनी सांसदी छोड़ने से भी गुरेज नहीं है.

वहीं इस सीट पर मौजूदा भाजपा विधायक सुरेश चंद्र तिवारी के अपने अलग आलाप हैं. तिवारी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे हैं और कह रहे हैं कि मेरा मानना है कि मुझे कैंट सीट से टिकट मिल रहा है. खुद सोचिये यदि भाजपा की नजर अपर्णा पर नहीं गयी और उसने मयंक, सुरेश चन्द्र तिवारी या फिर किसी और को टिकट दे दिया तो क्या होगा? इससे भी बढ़कर ये सोचिये कि उम्र के इस पड़ाव में अखिलेश की जिद के चलते मुलायम सिंह यादव का क्या होगा?

बहरहाल चाहे वो तौकीर रजा की बहू निदा खान हो या मुलायम सिंह यादव की बहू अपर्णा यादव बिष्ट इस बात में कोई शक नहीं कि इन क्रांतिकारी बहुओं ने अपनी क्रांति के चक्कर में अपने 'संसुरों' को खून के आंसू रोने पर मजबूर कर दिया है. बाकी इस बात में भी कोई शक नहीं कि 2022 का यूपी विधानसभा चुनाव न केवल दिलचस्प बल्कि दिलफरेब भी होगा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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