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Updated: 09 जुलाई, 2017 02:14 PM
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मां, माटी और मानुष - यही ममता बनर्जी का स्लोगन रहा है. पांच साल के शासन के बाद जब ममता के साथियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो उनके पीछे वो मजबूती से डटी रहीं. जो बात ममता ने समझायी उसे लोगों ने मान भी लिया कि सब कुछ 'विरोधियों की साजिश' रही और दोबारा सत्ता सौंप दी.

पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा को लेकर भी ममता फिर से यही समझाने की कोशिश कर रही हैं - सब विरोधियों की साजिश है. फिलहाल विरोधियों से ममता का मतलब केंद्र में सत्ताधारी और बंगाल में पांव जमाने की जुगत में जुटी बीजेपी है.

जहां तक सियासत का सवाल है बीजेपी और ममता दोनों ही एक दूसरे के साथ शह-मात का खेल खेल रहे हैं, सवाल ये है कि आखिर कब तक विरोधियों की साजिश की सहानुभूति की मदद से ममता सरकार चलाती रहेंगी? पश्चिम बंगाल की मौजूदा स्थिति इतनी नाजुक हो चली है कि अगर ममता बीजेपी से ही उलझी रहीं तो मां, माटी और मानुष का मसला बहुत पीछे छूट जाएगा.

तृणमूल का 'गुजरात मॉडल'!

पश्चिम बंगाल में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के पीछे एक फेसबुक पोस्ट जिम्मेदार है. पुलिस ने फेसबुक पोस्ट करने वाले को गिरफ्तार भी कर लिया. 24 परगना जिले के बदूरिया और बशीरहाट में सबसे ज्यादा हिंसा का तांडव देखने को मिला है.

तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि पश्चिम बंगाल को गुजरात नहीं बनने देंगे. ठीक है, लेकिन उसे भी सवाल का जवाब देना होगा कि गुजरात मॉडल से उसका आशय क्या है?

तृणमूल कांग्रेस के राज्य सभा सांसद सुखेंदु एस. रॉय ने बीबीसी से कहा है, "पश्चिम बंगाल को कोई गुजरात न समझे. केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी अशांति फैलाना चाहती है."

west bengal violenceसियासी टकराव के साइड इफेक्ट...

बीजेपी गुजरात मॉडल को विकास के प्रतीक के तौर पर प्रचारित करती रही है, लेकिन तृणमूल का इशारा गुजरात दंगों की ओर है. वैसे बीजेपी भी ममता सरकार पर वही इल्जाम लगा रही है - एक खास समुदाय के तुष्टीकरण का. जिस तरह के आरोपों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोधी उन्हें घेरते रहे हैं, ममता के विरोधी भी मौजूदा दौर में उनके बारे में वही राय कायम करने की कोशिश में हैं. 15 बरस बाद भी मोदी के खिलाफ बिहार के अशोक चौधरी के आरोपों में जरा भी हेर फेर नहीं है. लालू के बचाव में चौधरी ने कहा था कि मोदी हजारों लोगों को मार कर प्रधानमंत्री बने हैं.

क्या तृणमूल कांग्रेस को ये नहीं पता कि जिन आरोपों के कठघरे में बरसों मोदी खड़े रहे ममता बनर्जी भी आज उसी जगह खड़ी नजर आ रही हैं?

पश्चिम बंगाल में हो क्या रहा है?

ये सच है कि जिन राज्यों में बीजेपी को मजबूत करने पर अमित शाह का जोर है पश्चिम बंगाल उस सूची में ऊपर ही आता है. ये भी सच है कि विधानसभा चुनाव और बाद के उपचुनाव ही नहीं बल्कि सिविक पोल में भी बीजेपी को मुहंकी खानी पड़ी है.

लेकिन ममता की लगातार जीत राज्य में कानून व्यवस्था के उन सवालों से बचने की छूट नहीं दे देती. जाहिर है ऐसे ही कुछ सवाल होंगे जो राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी और ममता की बातचीत में उठे होंगे. सवाल जो भी रहे हों बातचीत के फौरन बाद ही ममता आपे से बाहर नजर आईं. राज्यपाल के व्यवहार से ममता ने खुद को बहुत ज्यादा अपमानित बताया. इतना अपमानित जितना वो अपनी पूरी सियासी जिंदगी में भी नहीं हुईं. ऐसे देखा जाये तो राइटर्स बिल्डिंग की घटना भी पीछे छूट जाती है.

ममता का आरोप है कि राज्यपाल ने उन्हें धमकाया. इतना धमकाया कि इस्तीफा देने के बारे में सोचने लगीं. हालांकि, राजभवन ने एक बयान जारी कर ममता के सारे आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया. बयान में ये भी कहा गया कि दोनों के बीच हुई बातें गोपनीय रहीं और उनके सार्वजनिक होने की अपेक्षा नहीं की जाती.

हकीकत जो भी हो, पता उन दोनों को ही होगा लेकिन बड़ा सच ये है कि पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौर नहीं थम रहा है. ममता पर खास समुदाय के साथ पक्षपात करने के भी आरोप लग रहे हैं. ठीक वैसे ही जैसे आरोप बीजेपी के खिलाफ उसके विरोधी लगाते हैं.

2011 और 2016 - दोनों चुनावों में ममता की जीत के पीछे मुस्लिम वोटों की बड़ी भूमिका मानी जाती है. 2011 की जनगणना के मुताबिक बंगाल में 24 फीसदी मुस्लिम हैं. पहले ये वोट वाम मोर्चा को मिलता था जो बाद में तृणमूल की ओर शिफ्ट हो गया.

बीजेपी पर आरोप है कि वो हिंदू वोटों को एकजुट करने के लिए सारा खेल खेल रही है. यही वजह है कि ममता और उनकी टीम बीजेपी पर बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने का आरोप लगा रहे हैं. इन्हीं आरोपों के दायरे में तृणमूल नेता राजभवन को भी आसानी से घसीट ले रहे हैं. कभी राज्यपाल को 'तोता' तो कभी 'ब्लॉक प्रमुख' की तरह काम करने के आरोप लगाये जा रहे हैं.

ये ठीक है कि अरुणाचल प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक बीजेपी के ट्रैक रिकॉर्ड ठीक नहीं रहे हैं, लेकिन ये भी तो गलत नहीं कि कोलकाता में सेना के रूटीन अभ्यास को लेकर ममता बनर्जी और उनकी पार्टी हंगामा खड़े कर देती है. दिसंबर, 2016 में सड़क पर सैनिकों की मौजूदगी देख ममता बनर्जी पूरी टीम के साथ रात भर विधानसभा में बैठी रहीं.

ममता बनर्जी राज्यपाल पर बरसती हैं तो केंद्र सरकार पर असहयोग का आरोप लगाती हैं. राज्यपाल की ही तरह केंद्र सरकार ने भी ममता के आरोपों को नकार दिया है. गृह मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से आई खबर से मालूम होता है कि केंद्र ने हिंसा पर काबू पाने के लिए बीएसएफ की चार कंपनी पश्चिम बंगाल भेजी थी लेकिन राज्य सरकार ने वापस कर दिया.

दुर्भाग्य की बात है कि गुजरात में जिस तरह के आरोप मोदी पर लगते रहे, पश्चिम बंगाल में इस वक्त ममता पर भी वैसे ही इल्जाम लग रहे हैं. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन किसकी तरफदारी कर रहा है. अगर मामला ऐसे ही चलता रहा तो वो दिन भी दूर नहीं जब मां, माटी और मानुष जैसी बातें लोगों को एक मामली स्लोगन से ज्यादा नहीं लगेंगी.

अच्छा तो ये होता कि तृणमूल नेता और ममता खुद भी बीजेपी से उलझे रहने की बजाय कानून व्यवस्था पर फोकस करते. मां, माटी और मानुष के बारे में सोचने के लिए ये बेहद नाजुक दौर है, राजनीति के लिए तो सारी उम्र पड़ी है.

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