New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 12 अगस्त, 2017 07:08 PM
आईचौक
आईचौक
  @iChowk
  • Total Shares

विपक्षी खेमे में नीतीश कुमार ने जो जगह खाली कर दी है, ऐसा लगता है ममता बनर्जी उसे भरने की कोशिश कर रही हैं. ममता बनर्जी ने भी कोशिशें वैसे ही तेज कर दी हैं जैसे कभी नीतीश कुमार तत्पर हुआ करते थे. नीतीश की ही तरह अब ममता बनर्जी भी चाहती हैं कि बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों का एक मजबूत महागठबंधन खड़ा हो.

ममता का कहना है कि व्यापक हित में वो अपने सिद्धांतों से भी समझौता करने को तैयार हैं - और यही वजह है कि वो चाहती हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल को लेकर जिद छोड़ दें.

पवार ने बनायी दूरी, माया और अखिलेश ने भी प्रतिनिधि भेजे

11 अगस्त को सोनिया गांधी ने एक बार फिर विपक्षी दलों की मीटिंग बुलाई थी. मीटिंग के लिए कांग्रेस नेता गुलामनबी आजाद की ओर से 18 दलों को न्योता भेजा गया था, लेकिन शामिल सिर्फ 13 पार्टियां ही हुईं. इनमें सबसे खास रहा शरद पवार की पार्टी एनसीपी का हिस्सा न लेना. माना जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा चुनाव में धोखा देने की आशंका के चलते एनसीपी ने ये मीटिंग के बहिष्कार का फैसला लिया.

मीटिंग में जेडीयू के बागी नेता शरद यादव को भी बुलाया गया था, लेकिन बिहार दौरे में व्यस्त होने के कारण उन्होंने बतौर प्रतिनिधि दूसरे बागी नेता अली अनवर को भेजा. नतीजा ये हुआ कि जेडीयू ने अनवर अली को संसदीय दल से हटा दिया.

mamata banerjee, sonia gandhiकेजरीवाल की पैरवी...

विपक्षी दलों की इस मीटिंग में यूपी से मायावती और अखिलेश यादव के भी शामिल होने की अपेक्षा थी, लेकिन उन दोनों ने भी अपनी अपनी पार्टी के सीनियर नेताओं को भेज दिया. ऐसा रवैया पहले ममता बनर्जी का हुआ करता था, मगर इस मीटिंग में ममता न सिर्फ शामिल हुईं बल्कि बाद में भी काफी सक्रिय नजर आ रही हैं.

नीतीश को राहुल गांधी ने तो धोखेबाज तब कहा जब उन्होंने महागठबंधन छोड़ कर बीजेपी से हाथ मिला लिया. ममता ने तो नीतीश को तभी धोखेबाज करार दिया था जब उन्होंने नोटबंदी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया. फिर भी, अभी तो ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी नीतीश की राह पर ही चलते हुए विपक्षी गठबंधन में उसी स्थान को भरने की कोशिश कर रही हैं जो नीतीश के बीजेपी के साथ हो जाने से खाली हुआ है.

जब नीतीश कुर्सी के लिए बीस साल की दुश्मनी भुलाकर लालू प्रसाद से से हाथ मिला सकते हैं और फिर बीस महीने बाद दोबारा उसी कुर्सी के लिए बीजेपी से भी हाथ मिला सकते हैं तो ममता ऐसा क्यों न करें? आखिर आजमाया हुआ नुस्खा है, फिर अमल करने में बुराई क्या है - वो भी जब व्यापक हित की बात हो. वैसे भी जिस लेफ्ट फ्रंट को कोस कोस कर ममता कांग्रेस के सहारे पश्चिम बंगाल की सत्ता तक पहुंचीं उससे मौका मिलते ही नाता तोड़ लिया. अभी पिछले विधानसभा चुनावों में भी सोनिया गांधी से ममता बार बार बात और मुलाकात कर कोशिश करती रहीं कि सीपीएम और कांग्रेस का गठबंधन न होने पाये - और अब तो वो कांग्रेस और सीपीएम दोनों के साथ काम करने को तैयार हैं. दलील वही है - व्यापक हित में.

अब ममता सिर्फ खुद ही ऐसा नहीं चाहती, वो चाहती हैं कि सोनिया गांधी भी अरविंद केजरीवाल को लेकर अपनी जिद छोड़ दें.

यहां भी सबका साथ और सबका विकास जरूरी है

ममता बनर्जी का कहना है कि जिस तरह वो राष्ट्रीय स्तर पर लेफ्ट के साथ काम करने को तैयार हैं वैसे ही कांग्रेस को भी आम आदमी पार्टी को विरोधी दलों के साथ जोड़ना चाहिये. वैसे लेफ्ट से ममता का आशय फिलहाल सीपीएम से ही लग रहा है. देखा गया कि 26 मई की मीटिंग में भी केजरीवाल को नहीं बुलाया गया था - और इस वाली मीटिंग में भी नहीं. राष्ट्रपति चुनाव में देखा गया कि संभावित विपक्षी गठबंधन से दूर रखे जाने के बावजूद अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने विपक्षी उम्मीदवार मीरा कुमार को ही वोट दिया. अब जो क्रॉस वोटिंग हुई उसकी बात और है. उपराष्ट्रपति चुनाव में भी आप ने वही रवैया अख्तियार किया और गोपाल कृष्ण गांधी को वोट दिया. यही सब कारण है जिससे ममता केजरीवाल को साथ लेने की वकालत कर रही हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में ममता ने संभावित महागठबंधन को लेकर अपनी थ्योरी भी पेश की है. ममता ने जो खाका तैयार किया है कि उसके मुताबिक सभी क्षेत्रीय पार्टियों को उनके इलाके में उन्हें नेतृत्व का अधिकार मिलना चाहिये. दिल्ली से कांग्रेस पार्टी भी सभी क्षेत्रीय पार्टियों की मदद करे और जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में है, वहां क्षेत्रीय दल उसका सहयोग करें. उसी पैटर्न पर जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, वहां कांग्रेस को उनकी मदद करनी होगी.

mamata banerjee, sonia gandhiकेजरीवाल अछूत क्यों?

ममता को उम्मीद है कि अगर इस योजना पर अमल हो तो उनका 'बीजेपी भारत छोड़ो आंदोलन' कामयाब तो होगा ही, कांग्रेस ने जो 'बीजेपी गद्दी छोड़ो' की कॉल दी है उसमें भी उसे 2019 कामयाबी मिल सकती है.

इन्हें भी पढ़ें :

सियासी टी20 मैच : मोदी सरकार के पैंतरे और कांग्रेस का काउंटर अटैक

अहमद पटेल की जीत ने बढ़ाया कांग्रेस का मनोबल, संसद में सोनिया ने मोदी-संघ को घेरा

जिस दौर में नीतीश बीजेपी से हाथ मिला लेते हों, हजार रुपये देकर कांग्रेस से कोई क्यों जुड़े?

लेखक

आईचौक आईचौक @ichowk

इंडिया टुडे ग्रुप का ऑनलाइन ओपिनियन प्लेटफॉर्म.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय