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Updated: 07 मार्च, 2021 08:44 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बीजेपी में अभी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को दो-दो जगहों से घेरने की रणनीति तैयार की जा रही थी, तभी तृणमूल कांग्रेस नेता ने जोर का झटका दे डाला. बीजेपी अभी उम्मीदवारों के नाम पर सोच विचार कर रही है और ममता बनर्जी ने अपनी उम्मीदवारी सहित सारे प्रत्याशियों के नाम घोषित कर डाले.

बेशक मोदी-शाह (Modi-Shah) की चुनावी राजनीति ने ममता बनर्जी के सियासी किले को भारी नुकसान पहुंचाया है, लेकिन एक ही सीट से चुनाव लड़ने का तृणमूल कांग्रेस नेता का फैसला दुस्साहसी ही माना जाएगा.

भले ही बीजेपी के बंगाल चुनाव सह-प्रभारी अमित मालवीय ने ममता बनर्जी के फैसले में कमजोरी खोज डाली हो, लेकिन सच तो ये भी है कि तृणमूल कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ साथ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा की चुनौती तो बढ़ा ही दी है.

कहां शुभेंदु अधिकारी के साथ साथ केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो भी ममता बनर्जी को भवानीपुर में घेरने का प्लान बना रहे थे - और बीजेपी नेतृत्व ममता को दो सीटों से लड़ने को उनके डर से जोड़ कर पेश कर रहा था - लेकिन ममता बनर्जी ने भवानीपुर छोड़ कर सिर्फ नंदीग्राम (Nandigram Only) से चुनाव लड़ने की घोषणा कर डाली है.

अमित मालवीय की ही तरह बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष और बाबुल सुप्रियो ने भी ममता बनर्जी को भगोड़ा बताने की कोशिश की है, लेकिन कोई दो राय नहीं कि जिस रणनीति के तहत ममता बनर्जी ने अपनी उम्मीदवारी पर फैसला लिया है वो मोदी-शाह के लिए काफी तगड़ा चैलैंज साबित होने वाला है.

बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज है

बीजेपी नेताओं, विशेष रूप से पार्टी के आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय के ट्वीट से साफ है कि ममता बनर्जी सिर्फ नंदीग्राम से चुनाव लड़ने के फैसले को कैसे लोगों के बीच पेश करने की कोशिश होने वाली है.

ममता बनर्जी ने पार्टी काडर के साथ साथ पश्चिम बंगाल में अपने समर्थकों को मैसेज देने की कोशिश की है कि उनको चाहे जितना भी तोड़ने मरोड़ने या खत्म करने की सियासी कवायद चले, वो न तो डरने वाली हैं और न ही अपने तेवर में किसी भी परिस्थिति में बदलाव लाने वाली हैं.

लेकिन अमित मालवीय ममता बनर्जी के नंदीग्राम पहुंचने से पहले भवानीपुर में ही घेर ले रहे हैं - और ममता बनर्जी को भगोड़ा साबित करने में जुट जाते हैं. जाहिर है बीजेपी समर्थकों को अब इसी ऐंगल से समझाने की कोशिश होने वाली है.

mamata banerjee, suvendu, shah, modiममता बनर्जी की नंदीग्राम चाल बीजेीप नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ाने वाली है

अमित मालवीय पश्चिम बंगाल के लोगों को अब यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर मौजूदा मुख्यमंत्री अपनी परंपरागत सीट को लेकर असमंजस में है तो ऐसा इसलिए है क्योंकि उसने अपने खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर की जमीनी हकीकत समझ ली है. अमित मालवीय का कहना है कि ये तो सिर्फ शुरुआत भर है, 'जल्द ही वो मां, माटी और मानुष को अपने हाथों से फिसलते देखेंगी.'

अमित मालवीय का जो भी दावा हो, लेकिन वो ये तो समझ ही रहे होंगे कि ममता बनर्जी के भवानीपुर और नंदीग्राम दोनों जगह से चुनाव लड़ने की स्थिति में घेरना ज्यादा आसान होता.

ममता बनर्जी के दो सीटों से लड़ने की स्थिति में तो केंद्रीय मंत्री रहते हुए बाबुल सुप्रियो तक भवानीपुर से मैदान में उतरने का माहौल बना रहे थे. बीच में ऐसा भी माना जा रहा था कि बीजेपी शुभेंदु अधिकारी को नंदीग्राम से न उतार कर उनके लिए कोई और रोल सोच सकती है.

वैसे भी बीजेपी के लिए शुभेंदु अधिकारी बगैर ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़े जितने काम के हैं, एक बार चुनाव हार जाने के बाद बेकार हो जाएंगे. हो सकता है शुभेंदु अधिकारी खुद भी ममता से सीधे सीधे टकराने से बचने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन सीधे सीधे कुछ कह भी तो नहीं सकते.

शुभेंदु अधिकारी पहले कह रहे थे कि वो ममता बनर्जी को कम से कम 50 हजार वोटों से हराएंगे. तब वो नंदीग्राम के साथ साथ भवानीपुर से भी चुनाव लड़कर ममता बनर्जी को हरा देने के दावे कर रहे थे. अब शुभेंदु अधिकारी एक नयी बात भी कहने लगे हैं.

शुभेंदु अधिकारी कहने लगे हैं कि नंदीग्राम से ममता बनर्जी के खिलाफ जो भी चुनाव लड़े, वो खुद ये सुनिश्चित करने की कोशिश जरूर करेंगे कि उस विधानसभा क्षेत्र में कमल ही खिले.

बीजेपी नेतृत्व अब पश्चिम बंगाल में आसोल पोरिबोर्तन की बातें कर रहा है - और ये भी सच ही है कि नंदीग्राम हमेशा ही बड़े बदलावों का गवाह रहा है. ये नंदीग्राम ही है जिसकी बदौलत ममता बनर्जी के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना मुमकिन हुआ.

2006-07 में तत्कालीन सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य ने नंदीग्राम में एक कंपनी को केमिकल हब बनाने के लिए 10 हजार एकड़ जमीन देने का ऐलान करते हुए जमीन अधिग्रहण करने का आदेश दे दिया. शुभेंदु अधिकारी ने लोगों के साथ आंदोलन शुरू कर दिया और 14 मार्च 2007 को हिंसा और पुलिस फायरिंग में 14 लोगों की मौत हो गयी. फिर क्या था ममता बनर्जी सीधे नंदीग्राम पहुंच गयीं और मां, माटी और मानुष के नारे के साथ वाम मोर्चा सरकार के जाने का रास्ता दिखा दिया.

ममता बनर्जी एक बार फिर उसी मैदान में पहुंच कर डट गयी हैं - और अब उनको शिकस्त देने के लिए मोदी-शाह को नये सिरे से तैयारी करनी होगी जो काफी मुश्किल हो सकती है.

ममता के नंदीग्राम के जरिये मैसेज क्या है

1. नंदीग्राम की सिर्फ एक सीट से चुनाव लड़कर ममता बनर्जी सबसे बड़ा मैसेज तो यही देना चाहती हैं कि उनको पक्का यकीन है कि वो बीजेपी को हराने में पूरी तरह सक्षम हैं.

ममता बनर्जी ने ये कदम तृणमूल कांग्रेस काडर में जोश भरने के मकसद से भी किया है. कार्यकर्ता जब अपने नेता को बहादुरी से लड़ते देखते हैं तो पूरी ताकत झोंक देते हैं, ममता बनर्जी बार बार कहती रही हैं कि वो फाइटर हैं और अपने ताजा फैसले के साथ ही वो एक बार फिर वही मैसेज देने की कोशिश कर रही हैं.

ममता बनर्जी की जीत में मुस्लिम वोट बैंक की बड़ी भूमिका रही है, फुरफुरा शरीफ वाले पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के ममता बनर्जी के खिलाफ चले जाने का खासा असर हो सकता है. अगर मुस्लिम समुदाय के सामने बीजेपी को हराने की कुव्वत रखने वाले को वोट देने वाले को चुनना होगा तो वो एक बार फिर से ममता बनर्जी के नाम पर विचार कर सकता है. ये मौका भी ममता ने सोच समझ कर ही मुहैया कराया है.

2. अगर भवानीपुर और नंदीग्राम दोनों सीटों से ममता बनर्जी लड़तीं तो पूरे चुनाव बीजेपी की तरफ से उनके डर को लेकर शोर मचाया जाता. लोगों को लगातार समझाया जाता कि ममता बनर्जी को एक सीट से जीत का यकीन नहीं होने के चलते ऐसा किया गया है - मतलब ममता को किसी एक सीट से हार जाने का डर है.

3. देखने में तो ये भी आया ही है कि भवानीपुर ममता बनर्जी को सूट भी नहीं कर रहा था. भले ही वो 2011 से ही भवानीपुर का प्रतिनिधित्व कर रही थीं, लेकिन जीत का अंतर तो घटता ही जा रहा था.

2011 में हुए उपचुनाव में ममता बनर्जी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को जहां करीब 50 हजार वोटों के अंतर से हराया था, 2016 में ये घट कर 25 हजार के आस पास हो गया था - किसी भी पार्टी के बड़े नेता के लिए ये आंकड़े काफी कमजोर लगते हैं.

बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो इसे ही आधार बनाते हुए कह रहे हैं कि ममता बनर्जी हार के डर से मैदान छोड़ कर भाग खड़ी हुई हैं. पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने भी बाबुल सुप्रियो वाली ही लाइन ली है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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