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Updated: 08 जुलाई, 2018 04:39 PM
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बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पश्चिम बंगाल पहुंचे हुए हैं. बाकी सब तो ठीक है, दिक्कत वाली बात बस ये है कि बंगाल के बुद्धिजीवियों ने अमित शाह के साथ मंच शेयर करने से इंकार कर दिया है. बीजेपी इसके लिए तृणमूल नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को जिम्मेदार बता रही है.

हाल के पंचायत चुनाव के माहौल में देखें तो बीजेपी का इल्जाम काफी हद तक सूट भी करता है, लेकिन बात गले के नीचे आसानी से नहीं उतर रही. बंगाल का बुद्धिजीवी तबका खफा तो ममता बनर्जी से ही रहता है, फिर बीजेपी से दूरी क्यों बनाएगा? अगर बीजेपी के आरोप सिर्फ राजनीतिक नहीं हैं तो बंगाल का भद्रलोक आखिर क्या सोच रहा है?

संपर्क - OK, समर्थन - NO!

पश्चिम बंगाल के दो दिन के अमित शाह के दौरे में एक शाम बंगाल के बुद्धिजीवियों के नाम लिखने की कोशिश रही. शाह के लोगों ने बुद्धिजीवियों से संपर्क तो कायम कर लिया, लेकिन समर्थन नहीं ले पाये. दरअसल, ज्यादातर बुद्धिजीवियों ने बीजेपी का न्योता स्वीकार तो कर लिया था, पर वेन्यू से दूरी बना ली.

amit shahबुद्धिजीवियों से संपर्क तो हुआ, लेकिन समर्थन नहीं मिला

ये मामला ज्यादा दिलचस्प इसलिए भी हो गया है क्योंकि ज्यादातार कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों और बुद्धिजीवियों ने बीजेपी का न्योता स्वीकार तो कर लिया, लेकिन कार्यक्रम से दूरी बना ली. ऐसे लोगों में शामिल हैं - एक्टर और थियेटर आर्टिस्ट सौमित्र चटर्जी, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अशोक गांगुली, समाजिक कार्यकर्ता संतोष राना, थियेटर कलाकार रुद्रप्रसाद सेन गुप्ता, चंदन सेन, मनोज मित्रा, गायक अमर पॉल और चित्रकार समीर ऐक.

बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के नाम पर आयोजित इस कार्यक्रम में बुद्धिजीवी के नाम पर ले देकर लेखक बुद्धदेब गुहा को देखा गया. असल में, संपर्क फॉर समर्थन अभियान के तहत बीजेपी नेता देशभर के बुद्धिजीवियों से मिलकर एनडीए सरकार की अब तक की उपलब्धियां बता रहे हैं. अभियान से बीजेपी को अपेक्षा है कि समाज में राय प्रभावित करने वाले ये लोग आम अवाम को बीजेपी की बातें बतायें - 2019 में पार्टी को उसका फायदा मिल सके.

अब सवाल है कि बुद्धिजीवियों ने अमित शाह से किसी प्रभाव में आकर दूरी बनायी या, वे कुछ और प्लान कर रहे हैं?

नोटबंदी अब भी पड़ रही भारी!

बीजेपी नेताओं का आरोप है कि सत्ताधारी टीएमसी के लोग बुद्धिजीवियों को न आने देने के लिए धमका रहे थे. ये सही है कि शुरुआती दौर में ममता के परिवर्तन का समर्थन करने वाले बुद्धिजीवियों को कालांतर में उनके काम के तौर तरीके ठीक नहीं लगे. उन्हें लगा परिवर्तन में ही परिवर्तन हो गया और जिन उद्देश्यों के साथ इनकी शुरुआत हुई, वे आधी अधूरी रहीं. बावजूद इन सबके, मेल टुडे में रोमिता दत्ता लिखती हैं, वे कुछ नया आजमाने या फिर उसे रिप्लेस करने की कोशिश करना चाहेंगे.

soumitra chatterjeeनोटबंदी से खफा...

पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेताओं ने ऐसे बुद्धिजीवियों को टारगेट किया जो ममता सरकार में भूले-बिसरे कैटेगरी में दिखे. ममता बनर्जी के सात साल के शासन के बाद भी खांटी लेफ्ट समर्थक की छवि धारण किये सौमित्र चटर्जी को बीजेपी ने अपने हिसाब से खांचे में पूरी तरह फिट पाया.

पश्चिम बंगाल बीजेपी नेता राहुल सिन्हा न्योता लेकर सौमित्र चटर्जी के यहां पहुंचे. सौमित्र चटर्जी ने घर आये मेहमान की आवभगत तो खूब की लेकिन कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर मना कर दिया. कहा तो यही कि तबीयत थोड़ी नासाज है, लेकिन अंदर वजह कुछ और थी.

बाद में मालूम हुआ सौमित्र चटर्जी ने मौके को माकूल पाकर मन की बात जबान पर ला दी और जी भर कर खरी खोटी सुनायी - नोटबंदी ने तबाह कर दिया.

इससे पहले पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने भी करीब दो दर्जन लोगों को चाय पर चर्चा के लिए बुलाया था, लेकिन उनमें से कुछ ही राजभवन तक पहुंच पाये.

ममता से तो पहले से ही खफा हैं बुद्धिजीवी

ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने तक पश्चिम बंगाल का बुद्धिजीवी वर्ग 'परिवर्तन' के नाम पर ममता बनर्जी का समर्थक रहा, लेकिन सूबे में टीएमसी के पहले शासन के साल भर बीतते बीतते उनकी राय बदलने लगी. ममता से बुद्धिजीवियों के खफा होने की बड़ी वजह कार्टून को लेकर उठा विवाद और दो प्रोफेसरों की गिरफ्तारी रही. हालांकि, उन्हें पार्क स्ट्रीट बलात्कार मामले पर ममता की पुलिस और सरकार का रवैया और सरकारी लाइब्रेरी में चुनिंदा अखबारों का भेजा जाना उन्हें कभी रास नहीं आया.

2013 के इन वाकयों पर तब ममता बनर्जी की टिप्पणी रही, "बलात्कार की दो-तीन घटनाएं हुई हैं. लेकिन हर शाम ये लोग अश्लील चर्चा में लग जाते हैं..."

ममता ने तो उन्हें पॉर्न में शामिल बता डाला था, "पैनल चर्चा के लिए किन्हें बुलाया जा रहा है? दरअसल उनमें से कई तो अश्लीलता में शामिल हैं. वे सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा करते हैं लेकिन वे वाकई धन के लिए काम कर रहे होते हैं. चर्चा कुछ नहीं, बल्कि मनी शो है."

लेफ्ट समर्थकों के बारे में, मेल टुडे में रोमिता दत्ता लिखती हैं, "सबसे बड़ी समस्या ये है कि अपनी आइडियोलॉजी से डिगने वाले नहीं, लेफ्ट विचारधारा में इनकी गहरी आस्था है. इन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि पार्टी सत्ता में है या नहीं."

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