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Updated: 22 जून, 2019 03:05 PM
अरिंदम डे
अरिंदम डे
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पश्चिम बंगाल में ममता दीदी ने पार्टी वालों को खाया हुआ कमीशन जनता को वापस करने को कहा है. लोकसभा चुनाव के बाद से ही उनके तेवर काफी सख्त नज़र आ रहे हैं और उनहोंने यह साफ कर दिया है कि पार्टी में भ्रष्ट लोगों की कोई जगह नहीं है. उनका कहना है कि या तो खुद को सुधारो नहीं तो पार्टी से निकलो.

यह अच्छी बात है कि पश्चिम बंगाल को फिर से वही मुख्यमंत्री नजर आ रही हैं जो हमेशा ज़रूरतमंदों के साथ खड़ी होती थीं. डॉक्टरों की हड़ताल ख़त्म करने में उनकी भूमिका मनमुताबिक रही. लोगों को आजकल यह मलाल रहता है कि मुख्यमंत्री तक सीधा पहुंचना मुश्किल है. किसी मंत्री या किसी पार्टी अधिकारियों से ही बात हो पाती है. इस बार उन्होंने इसका संज्ञान लिया और सीधे डॉक्टरों से बात की. राजनैतिक दखलंदाजी का अस्पतालों में या समाज के लगभग सारे हिस्सों में कितना फर्क आएगा यह तो समय ही बताएगा. हालांकि अभी भी वो जाति आधारित शोषण से पीछे हटती नहीं दिख रही हैं, पर फिर भी आसार सकारात्मक हैं. क्योंकि विधानसभा चुनाव जब भी होगा, ममता बनर्जी के काम काज की बलबूते पर ही लड़ा जाएगा.

mamata-banerjeeपश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अब भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाए हुए हैं

उनकी भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम यह भी बताती है कि कुछ चीज़ें उनको भी पता थीं. जिन्हें अबतक वो शायद पार्टी के स्वार्थ में नज़रअंदाज़ करती आई हैं. वैसे नई टाउन, राजारहाट क्षेत्र में उन्हीं की पार्टी के विधायक और संसद के बीच आए दिन सिंडिकेट की हिस्सेदारी को लेकर बवाल मचा रहता है. अब पानी सर के ऊपर से गुजरता हुआ देखकर उनको कड़ा फैसला लेना पड़ा. लेकिन उनके कह देने से ही भ्रष्टाचार या सिंडिकेट राज खत्म नहीं हो जाएगा. पार्टी में काफी लोग हैं जो नीचे से ऊपर तक इससे जुड़े हैं.

इस बीच भाजपा और अन्य विरोधी दलों को बैठे बिठाये एक मुद्दा मिल गया. पिछले कई दिनों में बर्दवान, बांकुरा, हुगली, पुरुलिया, बीरभूम और अन्य कई जगहों में लोग पंचायत और म्युनिसिपाल्टी के कार्यकर्ताओं से दिए हुए कमीशन वापस मांगते हुए, प्रदर्शन करते दिखे हैं. कई जगहों पर भीड़ भड़क गयी और पत्थरबाज़ी भी हुई है. कई जगहों पर भीड़ को संभालने के लिए पुलिस भी बुलानी पड़ी.

तृणमूल का कहना है के यह विरोधियों की साज़िश है. उधर विरोधी पार्टियों का कहना है कि यह तृणमूल की अंधेरगर्दी के खिलाफ जनाक्रोश है. सच शायद इन दोनों बिंदु के बीच में कहीं होगा, पर यह ज़रूर है कि यह मामला बहुत जल्दी तूल पकड़ सकता है और उससे राज्य की कानून व्यावस्था पर भी असर पड़ सकता है. वैसे भी लोकसभा चुनाव के बाद से बंगाल में हिंसा का दौर चल रहा है- बमबाजी, मार काट, हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं.

परिचय न देते हुए तृणमूल के निचले स्तर के कार्यकर्ता इस बात से नाखुश हैं कि इस कमीशनखोरी में लिप्त बड़ी मछलियों पर अब तक कोई आंच नहीं आयी है. कानून के जानकारों का कहना है कि कोई भी ऐसे ही कट मनी वापस नहीं कर सकेगा. जबरन वसूली एक गैर ज़मानती अपराध है. दोषी पाए गए तो भारतीय दण्डविधि की धारा 384 और 386 के अंतर्गत 3 से 10 साल जेल और जुर्माना तक हो सकता है. और अगर कोई कमीशन का पैसा वापस करता है तो वह कानून की नजर में 'एडमिशन ऑफ़ गिल्ट' होगा. ऐसे में सवाल यह है कि तृणमूल के कौन से नेता आगे आएंगे? कोई आएगा भी? यह मामला अब दिलचस्प होता जा रहा है. देखते रहिए.

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लेखक

अरिंदम डे अरिंदम डे @arindam.de.54

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

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