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Updated: 26 अप्रिल, 2020 05:19 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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पश्चिम बंगाल (West Bengal) के लोग चुपचाप सब कुछ देख रहे हैं. कोई ऑप्शन भी नहीं है फिलहाल उनके पास, खामोशी से चीजों पर नजर रखने के अलावा. उनकी तरफ से एक्शन लेने का समय अभी बहुत दूर है. लोग ये जरूर देख रहे हैं कि उनके सूबे की मुख्यमंत्री उनके साथ हैं. दरवाजे पर पहुंच कर भरोसा जो दिलाया है कि फिक्र करने की जरूरत नहीं है - सरकार आपकी भलाई के बारे में सोच रही है और काम भी कर रही है. सरकार को ये भी मालूम है कि आपके पास काम नहीं है, फिर भी जरूरी है कि कोरोना की जंग में जीत तक सब लोग घरों में ही रहें.

लेकिन केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के गृह मंत्री अमित शाह को नहीं लगता कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लोगों की जरा भी फिक्र है क्योंकि लॉकडाउन प्रोटोकॉल का ठीक से अनुपालन नहीं हो रहा है. अमित शाह की चिंता भी वाजिब है - आखिर पश्चिम बंगाल में आधे से कुछ कम सांसद तो बीजेपी के भी हैं ही. तभी तो अमित शाह ने केंद्र से कोरोना महाआपदा पर प्रोटोकॉल की पैमाइश के लिए पश्चिम बंगाल में केंद्र की तरफ से दो टीमें भे्ज दी हैं.

लोग भले चुप हों, लेकिन केंद्रीय टीमें (IMCT) भेजे जाने के मुद्दे पर कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां ममता बनर्जी के (Mamata Banerjee) साथ खड़ी हैं - राज्यपाल जगदीप धनखड़ और बीजेपी नेताओं के अलावा अगर कोई ममता बनर्जी की मुखालफत कर रहा है तो वो है डॉक्टरों का एक समूह - बंगाली फिजीशियंस. ये बंगाली फिडीशियंस ही हैं जिन्होंने मरीजों की मौत पर सवाल उठाया था - ये कहते हुए कि जिस तरीके से डेथ सर्टिफिकेट जारी किये जा रहे हैं वो मेडिकल एथिक्स के खिलाफ है. केंद्रीय गृह मंत्रालय की टीमें बंगाली फिजीशियंस वाले सवालों पर ही ममता सरकार से जवाब मांग रही हैं. जवाब मिला भी है - सवाल पूछे जाने के 24 घंटे में मौतों की संख्या चौगुना पहुंच जा रही है. सीधी सी बात है - जब सवालों पर नये सवाल और ज्यादा सवाल का मौका देंगे तो बवाल तो मचेगा ही. पश्चिम बंगाल में फिलहाल यही सब हो रहा है.

ये 'पॉलिटिकल वायरस' क्या है?

केंद्र की बीजेपी सरकार के एक्शन से बुरी तरह खफा ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार की टीमों को नया नाम दे डाला है - पॉलिटिकल वायरस (Political Virus). कुछ कुछ सोनिया गांधी से मिलता जुलता ही है, पालघर में साधुओं की मॉब लिंचिंग के बाद CWC की वीडियो बैठक में सोनिया गांधी ने बीजेपी पर 'सांप्रदायिक नफरत का वायरस' फैलाने का आरोप लगाया था.

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार को केंद्र की बीजेपी सरकार से टकराव छोड़कर सहयोग करने का अनुरोध किया है. हाल ही में ममता बनर्जी ने जगदीप धनखड़ को सात पेज का लंबा पत्र लिखा था और जिसमें सरकार के कामकाज में लगातार दखल देने का आरोप लगाया था. पत्र के जवाब में राज्यपाल ने ममता बनर्जी पर अल्पसंख्यक समुदाय का खुल्लम-खुल्ला तुष्टिकरण और कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से निपटने में बड़ी नाकामियों पर पर्दा डालने की रणनीति करार दिया है.

mamata banerjee and IMCT members in kolkataममता बनर्जी के साथ पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा और कोलकाता में IMCT के सदस्य

बाकी बातें अलग हैं, लेकिन तमाम तनातनी के बीच जो सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात है, वो है कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा - अब तक 57. पहली बार पश्चिम बंगाल सरकार ने माना है कि हाल फिलहाल 57 लोगों की मौत हुई है और उन्हें कोरोना संक्रमण भी था. लगे हाथ एक लोचा भी जोड़ दिया है कि इनमें से 39 ऐसे मामले हैं जिनमें रोगी को कोरोना तो था ही, लेकिन दूसरी बीमारी भी रही है.

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव राजीव सिन्हा ने मौतों की वजह पर ये कह कर कमेंट करने से इंकार कर दिया कि ये डॉक्टरों के अधिकार क्षेत्र का मामला है और वो नौकरशाह हैं, लेकिन जोर देकर अपनी बात जरूर रखी - ‘राज्य में कोरोना से सिर्फ 18 लोगों की मौत हुई है - बाकी 39 मौतें दूसरे कारणों से हुईं.’

स्वास्थ्यकर्मियों के संगठन 'बंगाली फिजीशियंस' ने डेथ सर्टिफिकेट दिये जाने के तौर तरीकों पर सवाल उठाया था. सोशल मीडिया के जरिये कुछ डॉक्टरों का कहना था कि वो न तो मरीज के परिवार वालों को और न ही सार्वजनिक तौर पर ये बता पा रहे हैं कि मौत की वजह क्या रही और ये मेडिकल एथिक्स के खिलाफ है. दरअसल, कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में पश्चिम बंगाल सरकार ने एक कमेटी बनायी है और वही कमेटी डेथ सर्टिफिकेट देती है. बंगाली फिजीशियंस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को एक पत्र भी लिखा था जिसमें बहुत ही गंभीर आरोप भी लगाया गया था - कोरोना से होने वाली मौतों को छिपाया जा रहा है - और सही आंकड़े नहीं दिए जा रहे हैं.

केंद्रीय टीम ने डेथ सर्टिफिकेट जारी किये जाने को लेकर भी राज्य के मुख्य सचिव से पत्र देकर पूछा है कि क्या दूसरे रोगों से होने वाली मौतों के मामले में भी डेथ सर्टिफिकेट ये कमेटी ही देती है? सवाल ये भी है कि क्या कमेटी को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से मान्यता मिली हुई है?

केंद्रीय गृह मंत्रालय की IMCT का कहना है कि कई पत्र लिखे जाने के बावजूद पश्चिम बंगाल सरकार सवालों के जवाब नहीं दे रही है - लेकिन ममता बनर्जी का तो अपना अंदाज होता है. वो जानती हैं कि हमलों को कैसे काउंटर करना है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने IMCT के दौरे को सिरे से खारिज कर दिया है. कह रही हैं - कोविड-19 की स्थिति जानने के लिए बंगाल का दौरा करने वाली इंटर-मिनिस्ट्रियल सेंट्रल टीम ने कुछ नहीं किया - ऊपर से आरोप लगा रही हैं कि केंद्रीय टीमों का असली मकसद 'राजनीतिक वायरस' फैलाना है और ये काम वो बेशर्मी से कर रहे हैं.

मगर मामला फंस गया है. मौत तो मौत है. न मौत छिपायी जा सकती है और न ही मौतों का आंकड़ा. ताज्जुब की बात ये है कि जो पश्चिम बंगाल सरकार केंद्रीय टीम के सवालों से पहले मौतों का आंकड़ा 15 से आगे बढ़ने ही नहीं दे रही थी - वो अचानक 57 कैसा बताने लगी. वो भी महज 24 घंटे में. 24 घंटे में मौतों का नंबर चौगुना कैसे हो गया - ये सब सवाल ऐसे हैं जिनकी वजह से ममता बनर्जी और उनके मुख्य सचिव अपनेआप सवालों के कठघरे में खड़े भी हो रहे हैं और उलझ भी जा रहे हैं. मगर, तथ्यों को छिपाया तो जा नहीं सकता. जवाब तो देना ही पड़ेगा. कब तक रोकोगे भला?

सहयोग भले न मिले, IMCT को सवालों के जवाब का इंतजार है

केंद्रीय टीम का कहना है कि एयरपोर्ट से लेकर जहां भी जाना था उसका रूट प्लान पहले ही स्थानीय पुलिस को दे दिये गया था. ऐसे मामलों में प्रोटोकॉल यही होता है. केंद्रीय टीम का कहना है कि सारे काम बीएसएफ को करने पड़े - अस्पताल का रास्ता तक पता लगाना पड़ा क्योंकि पुलिस की तरफ से बताया ही नहीं गया.

केंद्रीय टीम ने पत्र के जरिये ही पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव से काफी सारे सवाल पूछे हैं, लेकिन उसे जवाब नहीं मिले हैं. ये सवाल हैं -

1. लॉकडाउन का आप किस तरह पालन करा रहे हैं?

2. लॉकडाउन के दौरान कितने लोगों का चालान हुआ है?

3. सीलिंग इलाकों से कितने लोगों को बाहर जाने की अनुमति दी गई?

4. स्वास्थ्य कर्मियों पर हमले के कितने मामले सामने आये - उन पर क्या एक्शन लिये गये?

5.अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए कितने बेड हैं - गरीब लोगों के लिए क्या व्यवस्था की गई है?

पश्चिम बंगाल पहुंची IMCT की अगुवाई रक्षा मंत्रालय के सीनियर अफसर अपूर्व चंद्रा कर रहे हैं. पहुंचने के पहले से लेकर वो लगातार राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर अपनी जरूरतों से लेकर अपने अनुभव तक शेयर कर रहे हैं. लब्बोलुआब ये है कि टीम को न तो सवालों के जवाब मिल रहे हैं और न ही राज्य सरकार की तरह से किसी तरह का सहयोग. सूत्रों के हवाले से न्यूज एजेंसी एएनआई और कुछ मीडिया रिपोर्ट ने मालूम होता है कि कोलकाता पहुंचने पर टीम को कोई एस्कॉर्ट नहीं मिला और हर जगह बीएसएफ को मोर्चा संभालना पड़ा. कहा तो यहां तक जा रहा है कि एक डीसीपी ने बीएसएफ को कहा था कि उनकी इजाजत के बगैर टीम के लोग कहीं जाने न पायें.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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