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Updated: 08 सितम्बर, 2020 06:36 PM
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चुनावी माहौल में कई चीजें बहुत कॉमन होती हैं. आम चुनाव की ही तरह, राज्य विधानसभा के चुनावों में भी सत्ताधारी दल का दूसरे राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन और ऐसा संभव न हो पाये तो तोड़-फोड़ भी आम बात है - और अगर प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) जैसा माहिर रणनीतिकार चुनावी मुहिम देख रहा हो तो फिर खेल के मैदान का दायरा भी बढ़ जाता है

पश्चिम बंगाल (West Bengal Election 2021) से पहले बिहार चुनाव में हो रहा है, लेकिन ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के राज्य में राजनीतिक गतिविधियां नीतीश कुमार से किसी भी मामले में कम नजर नहीं आतीं. ममता बनर्जी वैसे ही गठबंधन को बेकरार हैं जैसे 2017 में अखिलेश यादव रहे. अखिलेश यादव का तब कांग्रेस तक ही जोर रहा, लेकिन ममता बनर्जी परंपरागत दुश्मन लेफ्ट तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं - और जैसे नीतीश कुमार आरजेडी से नेताओं को मौका देखते ही झटक ले रहे हैं, ममता बनर्जी भी बीजेपी की तरफ वैसी ही हरदम ताक में बैठी हुई हैं.

ये 2019 के आम चुनाव में बीजेपी से मिले जोरदार झटके का ही असर है कि ममता बनर्जी के प्रशांत किशोर के जरिये वाम दलों के कई सीनियर नेताओं तक पहुंचने की खबर आ रही है.

लेफ्ट अब दुश्मन क्यों नहीं?

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 2021 का चुनाव जीतने के लिए वो सब करने को तैयार नजर आ रही हैं जिनसे अक्सर उनको परहेज रहा है - वो कांग्रेस पर भी डोरे डाल रही हैं और प्रशांत किशोर की मदद से लेफ्ट नेताओं के पास भी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सीपीएम के 5 बड़े नेताओं का दावा है कि प्रशांत किशोर की संस्था I-PAC के जरिये उनसे संपर्क कर टीएमसी ज्वाइन करने का ऑफर दिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, प्रशांत किशोर की टीम की तरफ से उनसे संपर्क कर सत्ताधारी पार्टी की तरफ से बेहतर अवसर की पेशकश की गयी - और ये सब अगस्त, 2020 की ही बात है. साथ ही साथ, ऐसे नेताओं ने ये भी साफ कर दिया है कि वे मौके पर ही पेशकश ठुकरा भी चुके हैं.

लेफ्ट सरकार में मंत्री रहे देबेश दास ने अखबार को बताया है, '4 अगस्त को एक व्यक्ति ने मुझे फोन किया और कहा कि मैंने कोलकाता में अपने विधानसभा क्षेत्र में विधायक रहते अच्छा काम किया है. उसने बोला कि आईपैक मुझसे संपर्क करना चाह रही है.'

देबेश दास जाधवपुर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रह चुके हैं जिनको तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के लिए हर तरीके से समझाने की कोशिश की गयी. लेकिन प्रशांत किशोर की टीम के लोगों को निराशा ही हाथ लगी, वो बताते हैं, 'मैंने उससे बोल दिया कि मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है.'

लेफ्ट के जिन नेताओं से प्रशांत किशोर की टीम ने संपर्क किया है उनमें एक मौजूदा विधायक भी शामिल है जिनकी उम्र 67 साल है. नेताओं से संपर्क के दौरान आईपैक के लोगों की तरफ से तरह तरह के ऑफर देकर लुभाने की कोशिश की जा रही है.

साउथ दिनाजपुर की हरिरामपुर सीट से मौजूदा विधायक का दावा है कि विस्तार से बातचीत के लिए उनको प्रशांत किशोर के दफ्तर बुलाने का प्रयास किया गया. सीपीएम विधायक रफीकुल इस्लाम बताते हैं, 'मुझे दफ्तर आने की गुजारिश की गयी. मैंने कह दिया कि 67 साल का हो चुका हूं - और इस उम्र में अपनी विचारधारा नहीं छोड़ सकता.'

सीपीएम के पूर्व विधायक लक्ष्मी कांता रॉय और ममता रॉय से भी ऐसे ही संपर्क किया गया था - और प्रशांत किशोर की टीम की तरफ से बोला गया कि अगर वे टीएमसी ज्वाइन कर लेते हैं तो फंड की भी कोई दिक्कत नहीं आने वाली है.

ममता रॉय बताती हैं, '9 अगस्त को एक व्यक्ति मेरे घर आया. इधर उधर देखने के बाद उसने पूछा कि कैसे मैं एक छोटे से घर में रह लेती हूं - और क्यों मेरे पास कार भी नहीं है? फिर बोला कि अगर मैं टीएमसी ज्वाइन कर लू्ं तो फंड तो मिलेगा ही, जो भी जरूरत होगी पूरी की जाएगी.'

ममता रॉय के यहां भी प्रशांत किशोर की टीम के लोगों को दो टूक जवाब सुनने को मिला - "चले जाओ, कम्युनिस्टों को खरीदा नहीं जा सकता."

mamata banerjeeएक राजनीतिक अदा ये भी - अगस्त, 2019 में ममता बनर्जी ने सड़क किनारे एक दुकान पर चाय बनाकर लोगों को पिलायी थी.

ऐसा भी नहीं कि ऐसे ऑफर लेफ्ट के हर नेता के लिए है. आईपैक की तरफ से एक सर्वे कराया गया है और उसी में चुने गये नेताओं को पेशकश की जा रही है - ऑफर के साथ उन नेताओं से ही संपर्क किया जा रहा है जिनकी साफ सुथरी छवि है और वे अपने इलाके में लोगों के बीच लोकप्रिय हैं.

ये बता रहा है कि ममता बनर्जी को साफ सुथरी छवि के नेताओं की कितनी जरूरत है. 2016 में चुनावों के ऐन पहले नारदा स्टिंग के जरिये टीएमसी के कई नेताओं के घोटाले में शामिल होने के आरोप लगाये गये - लेकिन ममता बनर्जी उनकी गारंटी के साथ आगे आयीं और अपने दम पर उनको चुनाव भी जिताया और सरकार बनी तो मंत्री भी बनाया. लगता है अब ममता बनर्जी की पार्टी में ऐसे नेताओं का टोटा पड़ने लगा है, तभी तो जानी सियासी दुश्मनों को भी गले लगाने की कवायद चलायी जा रही है.

दिलचस्प बात ये है कि जो नेता आईपैक की टीम के पहुंच के बाहर चले जा रहे हैं उनके पास प्रशांत किशोर खुद जा रहे हैं. फॉरवर्ड ब्लॉक के एक विधायक का दावा है कि प्रशांत किशोर खुद उसे एक होटल में ले गये और अगली सरकार में मंत्री पद की भी पेशकश की, हालांकि, आईपैक की टीम अखबार से बातचीत में इसे पूरी तरह खारिज कर रही है.

उत्तरी दिनाजपुर की चकुलिया से दूसरी बार विधायक बने अली इमरान के मुताबिक 17 जुलाई को वो पत्नी के साथ डिनर के लिए गये थे, तभी होटल में प्रशांत किशोर पहुंचे और हमारे साथ चाय भी पीये. अली इमरान का कहना है कि उनके दावे की पुष्टि के लिए होटल के लाउंज का 10-11 बजे का सीसीटीवी फुटेज चेक किया जा सकता है.

ध्यान रहे ममता बनर्जी वाम मोर्चे के खिलाफ ही परिवर्तन का नारा देकर सत्ता तक पहुंची - और तभी से पिछले चुनाव तक वो लेफ्ट शासन की वैसे ही याद दिलाती रही हैं जैसे बिहार में नीतीश कुमार अपने से 15 साल के शासन के पहले वाले 15 साल को जंगलराज बताकर लोगों को डराने की कोशिश करते हैं. वैसे तो नीतीश कुमार ने भी आरजेडी के कई नेताओं को लपक लिया है, लेकिन ममता बनर्जी का ऐसा बड़ा दिल पहली बार देखने को मिल रहा है.

बीते पंचायत चुनावों में तो हिंसा के भी सारे आरोप टीएमसी कार्यकर्ताओं पर ही लगे हैं - और ये लेफ्ट पार्टियों के साथ साथ बीजेपी की तरफ से भी एक जैसे ही आरोप लगे हैं. बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या का इल्जाम तो आम चुनाव में जहां कहीं भी प्रधानमंत्री मोदी या अमित शाह की सभा होती जरूर सुनने को मिलता - और ये जरूरी नहीं कि वो सभा पश्चिम बंगाल में ही हुई हो.

बीजेपी नेताओ पर भी नजर है

लेफ्ट के साथ साथ ममता बनर्जी की बीजेपी नेताओं पर भी नजर है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की तरह ममता बनर्जी के लोग बीजेपी में असंतुष्ट नेताओं की जोरशोर से तलाश कर रहे हैं - और कभी कभार कामयाबी भी मिल जा रही है.

ऐसे ही बीजेपी के एक नेता कृषानु मित्रा टीएमसी के हाथ लगे हैं. कृषानु मित्रा बीजेपी के प्रवक्ता और मीडिया सेल के प्रमुख रह चुके हैं. 29 साल तक आरएसएस से जुड़े रहने के बाद 2009 में कृषानु मित्रा बीजेपी में शामिल हुए लेकिन 2017 में पार्टी छोड़ भी दिये - और अब जाकर टीएमसी के हो गये हैं. बताते हैं कि सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लिए वो राजनीति में आये लेकिन बीजेपी ने भी उनको निराश किया इसीलिए छोड़ भी दिये. टीएमसी ज्वाइन करने के पीछे उनकी दलील है - ममता बनर्जी दिल्ली पर आश्रित रहने वाली नेता नहीं हैं और यही कारण है कि वो पश्चिम बंगाल के मामलों में बेहतर तरीके से फोकस कर पाती हैं.

बीजेपी के मौजूदा दौर से कृषानु मित्रा काफी निराश हैं, कहते हैं - 'जब हम आरएसएस में थे तो हर मुद्दे पर खुलकर बात करते थे... चाहे वो साहित्य हो या फिर सरकार की नीतियां, लेकिन आज हालत ये है कि अगर कोई व्यक्ति बीजेपी की नीतियों पर सवाल उठाता है तो उसे बुरी तरह ट्रोल किया जाता है जो बेहद खतरनाक है.

टीएमसी के हो चुके कृषानु मित्रा बीजेपी पर हिंदी थोपने का भी इल्जाम लगाते हैं - और याद दिलाते हैं कि कैलाश विजयवर्गीय लंबे अरसे से पश्चिम बंगाल में बीजेपी के प्रभारी हैं लेकिन वो अब भी बंगाली नहीं बोल पाते!

अब तो लगता है ममता बनर्जी को न तो खुद पर भरोसा रहा और न टीएमसी काडर पर ही - तभी तो गठबंधन और तोड़ फोड़ में जुट गयी हैं. हाल ही में गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की एक बैठक में ममता बनर्जी जिस तरह से सोनिया गांधी को खुश करने में लगी हुई थीं, देखते ही बना था. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी मीटिंग में मौजूद थे और बीजेपी के खिलाफ मिल कर लड़ने की दुहाई दे रहे थे.

2016 में तो भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद अकेले दम पर पार्टी को जिता दिया था - और दागी नेताओं को मंत्री तक डंके की चोट पर बनाया. लगता है इस बार हिम्मत जवाब देने लगी है. खासकर 2019 के आम चुनाव के नतीजों के बाद और वो गठबंधन के साथ साथ स्वच्छ छवि वाले नेताओं को पार्टी में लेने की कोशिश में हैं, भले ही ये सलाह पीके की तरफ से आयी हो - या ममता की सलाह पर वो लोगों से संपर्क कर रहे हों.

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