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Updated: 15 जून, 2018 05:47 PM
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भारतीय राजनीति में ऐसे कई नेता हैं जो अपने भाषणों से लोगों को गुदगुदाने के लिए काफी प्रचलित हैं. चाहे वो लालू यादव हों या हुकुमदेव नारायण यादव. लेकिन एक नेता ऐसे भी हैं जिनका इरादा तो लोगों को हंसाने का नहीं होता लेकिन गाहे-बगाहे उनके भाषण लोगों का सबसे ज्यादा मनोरंजन कर देते हैं. अक्सर उनकी युक्तियां उनकी छवि को एक ऐसे नेता के रूप में बदल देती हैं जैसे उन्हें किसी ने जबरदस्ती राजनीति में धकेल दिया हो. उनके विरोधी इसी छवि को भुनाकर इन्हें एक नॉन सीरियस और पार्ट टाइम नेता घोषित कर देते हैं. जाहिर सी बात है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी जान बूझकर तो ऐसे नहीं करेंगे.

rahul gandhiअक्सर अपनी बातों से हंसी का पात्र बन जाते हैं राहुल गांधी

हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने डाटा एनालिस्ट का एक सेल बनाया है. पार्टी डाटा के राजनीतिक महत्व को समझ गयी है और उसी के अनुरूप अपनी चुनावी रणनीति को साध रही है. आखिर जब इतनी बड़ी डाटा साइंटिस्ट की टीम पार्टी के पास है तो अपने ही युवराज को बार-बार अप्रैल फूल क्यों बना रहे हैं. ऐसे भी कुछ नेता हैं जो जान बूझकर अपने बयानों से अपना मजाक बनाते हैं ताकि बाद में पीड़ित कार्ड खेला जा सके और अपने विरोधियों को असहिष्णु साबित किया जा सके.

अपने आप को पीड़ित दिखाना, राजनीतिक रूप से अछूत दिखाना भी राजनेताओं का हमेशा से एक महत्त्वपूर्ण हथियार रहा है. इस कला के सबसे बड़े महारथी तो खुद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते बार-बार इमोशनल कार्ड खेला और उसमें सफल भी हुए. सत्ता के शीर्ष पद पर पहुंचने के लिए भी उन्होंने इसका बखूबी इस्तेमाल किया जो आजतक निरंतर जारी है. भाजपा के नेताओं को इस जीवंत उदाहरण से कुछ सीख लेनी चाहिए.

narendra modiमोदी जी भी इमोशनल कार्ड खेलते आए हैं

राहुल गांधी भले ही राजनीतिक भाषणबाज़ी में थोड़े कमतर दिखते हों लेकिन संगठन के नेतृत्व स्तर पर आज आग उगल रहे हैं. उनकी एक के बाद एक रणनीतियों ने भाजपा नेतृत्व के होश उड़ा दिए हैं. भले ही भाजपा के नेता ये मानने से इनकार करें लेकिन उन्होंने अपनी योजनाओं पर एक बार नए सिरे से काम करना शुरू कर दिया है. अभी हाल ही में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में राहुल ने ओबीसी सम्मलेन को सम्बोधित किया. भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे राहुल की नजर अब ओबीसी में गैर यादव वोटों पर होगी जिसे भाजपा ने राम मंदिर के आंदोलन के दौर में तैयार किया था. दरअसल राहुल गांधी अब उन जातियों तक पहुंचना चाहते हैं जिनका कांग्रेस की नीतियों और नीति-निर्माताओं से अभी तक कोई सरोकार नहीं रहा है.

कांग्रेस के बारे में जो आम धारणा रही है वो ये है कि सवर्णों के नेतृत्व में दलितों और मुस्लिमों का एक विशाल संगठन. अयोध्या विवाद के बाद से सवर्णों का मोह-भंग हुआ और मायावती के कारण दलित वोट बैंक भी छिटक गया. मुस्लिम वोट सभी पार्टियों में बंट जाने के बाद ओबीसी समुदाय को रिझाने के अलावा कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं था. पार्टी के पास बिहार, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश जैसे तीन बड़े राज्यों में एक भी ओबीसी चेहरा नहीं है जिसका हल इन्हें जल्द से जल्द निकालना होगा. खैर राहुल गांधी के हालिया संवाद से पार्टी ने इतना संदेश तो दे ही दिया है कि इस बार आर-पार की लड़ाई होने वाली है.

ऐसा पहली बार हो रहा है कि मोदी को हराने के लिए विपक्ष के नेता अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के साथ भी समझौता करने के लिए तैयार हैं. हाल ही में अखिलेश यादव ने यहां तक कह दिया कि उन्हें गठबंधन में अगर दो-चार सीटें कम भी मिलती हैं तो उन्हें मंज़ूर है. दरअसल ये जो जुनून है वो खुद की जीत से ज्यादा भगवा आर्मी को हराने का है. राहुल गांधी ने विपक्षी एकता को एक धार दी है और उन्हें प्रतिज्ञा दिलाई है कि जब तक मोदी और अमित शाह की जोड़ी को परास्त नहीं कर लेते तब तक चैन से नहीं बैठेंगे.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- इंडिया टुडे)

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