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Updated: 23 नवम्बर, 2019 09:39 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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महाराष्ट्र के सियासी सर्कस (Government Formation In Maharashtra) में शरद पवार (Sharad Pawar) को किनारे करते हुए भतीजे अजित पवार (Ajit Pawar) कुछ क्षणों के लिए रिंग मास्टर हैं. अजित ने बड़ा दाव खेला है और देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) को समर्थन देते हुए राज्य के उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्ज़ा जमाया है. अजित के इन बागी तेवरों के बाद न सिर्फ शिवसेना और कांग्रेस (ShivSena Congress) को गहरा आघात लगा है. बल्कि एनसीपी (NCP) के खेमे में भी एक अजीब सी ख़ामोशी छाई है. हर कोई इस बात को लेकर एक दूसरे से सवाल जवाब कर रहा है कि आखिर एक ही रात में ऐसा क्या हो गया जिसने महाराष्ट्र की राजनीति को उस मुकाम पर पहुंचा दिया जिसके बाद ये पूरा प्रकरण 'छल' और स्वार्थ का एक नया अध्याय बनेगा. भले ही शिवसेना के साथ हुई साझा पत्रकारवार्ता में शरद पवार इस बात को स्पष्ट कर चुके हों कि जो कुछ भी अजित पवार ने किया वो उनका निजी फैसला है और उनके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा. मगर जब हम गहराई में जाएं और महाराष्ट्र के इस सियासी ड्रामे को समझने का प्रयास करें तो ये सब होने वाला है इसकी स्क्रिप्ट उसी दिन लिख दी गई थी जब अमित शाह ने ये घोषणा की थी कि कुछ भी हो जाए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Chief Minister Devendra Fadnavis) ही बनेंगे. अब जबकि फडणवीस मुख्यमंत्री बन चुके हैं बड़ा सवाल ये है कि महाराष्ट्र के सियासी सर्कस में ताजे ताजे रिंग मास्टर बने अजित पवार को आईना कौन दिखाएगा? ये सवाल इसलिए भी जरूरी है क्योंकि महाराष्ट्र के इस ड्रामे की नई स्क्रिप्ट के सूत्रधार भले ही शाह रहे हों. मगर जिस परिपक्वता का परिचय अजित ने दिया और एक बड़ा दाव खेला. वो इतिहास में लंबे समय तक रखा जाएगा.

अजित पवार, एनसीपी, उद्धव ठाकरे, शिवसेना, महाराष्ट्र, Ajit Pawar महाराष्ट्र की सियासत में अपने कारनामे से अजित पवार ने सबको हैरत में डाल दिया है और एक बड़ी भूमिका में सामने आ गए हैं

बाकी बात अजित पवार की चल रही है तो ये बताना बेहद जरूरी है कि उनके ऊपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और अगर वो भाजपा के साथ नहीं आते तो उनकी मुसीबतों में इजाफा होना निश्चित था. भले ही आज महाराष्ट्र की एक बड़ी सियासी गुत्थी सुलझ गई हो मगर हमारा सवाल अब भी जस का तस है. तो अब देर किस बात की आइये जानें कि वो कौन है जो महाराष्ट्र में अजीत पवार को आईना कौन दिखाएगा.

एनसीपी, जो कभी हिंदुत्व और शिवसेना के खिलाफ थी

सवाल का जवाब तलाशने के लिए एनसीपी का जिक्र करना इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि आज भले ही बागी हुए हों लेकिन बीते दिन तक अजित पवार, चाचा शरद पवार के दल एनसीपी का ही हिस्सा थे. शायद ही किसी ने सोचा हो कि एक ऐसे समय में जब सब कुछ तय हो गया हो अजित ऐसा कारनामा करेंगे जिससे चाचा शरद पवार के पैरों के नीचे से जमीन चली जाएगी.

मामले के बाद एनसीपी में एक बड़ा वर्ग है जिसका मानना है कि सत्ता सुख भोगने के लिए जो कुछ भी अजित पवार ने किया उसने उस भरोसे को तोड़ा है जो किसी भी संगठन की नींव होता है. सवाल है क्या एनसीपी अपने ही परिवार के सदस्य अजित को मामले की गंभीरता समझाते हुए आईना दिखा पाएगी ? जवाब है नहीं. सवाल होगा क्यों ? तो इसका जवाब इतना भर है कि वो एनसीपी, जो खुद कभी हिंदुत्व और शिवसेना के खिलाफ थी, ने केवल सत्ता सुख के लिए उस पार्टी का दामन थाम लिया जिसकी विचारधारा उसकी विचारधारा से कई मायनों में अलग है.

कांग्रेस की सहयोगी होने के कारण एनसीपी सेक्युलर विचारधारा की प्रबल समर्थक है जबकि बात अगर शिवसेना की हो तो शिवसेना की पहचान उसका हिन्दुत्ववादी रवैया है जो कहीं दूर दूर तक शिवसेना की विचारधारा से मैच नहीं करता.

शिवसेना, जो कभी बीजेपी के साथ थी!

एनसीपी के बाद अब हम आते हैं शिवसेना पर. शिवसेना को हमने दूसरे पायदान पर इसलिए भी रखा है क्योंकि महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज होने के लिए एनसीपी ने न सिर्फ शिवसेना को भाजपा के साथ 30 साल पुराना साथ छोड़ने के लिए विवश किया बल्कि भाजपा और पीएम मोदी के खिलाफ अनर्गल बयान देने के लिए भी बाध्य किया. सवाल है कि क्या शिवसेना, पवार को आईना दिखा पाएगी? इसका भी जवाब है नहीं.

वजह क्या है इसका जवाब खुद प्रश्न में छिपा है. जो शिवसेना सिर्फ सत्ता सुख या ये कहें कि सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई खाने के लिए 30 साल पुराने साथ को पलक झपकते ही तोड़ सकती है वो भला किस मुंह से अजित पवार के सामने नीति और ज्ञान की बातें करेगी.

कांग्रेस, 'सेक्यूलर' पार्टी जो शिवसेना के साथ जा रही थी

इस पूरे प्रकरण में अगर सबसे ज्यादा नुकसान किसी का हुआ है तो वो और कोई नहीं बल्कि कांग्रेस है. बात कारण की हो तो भाजपा को सत्ता से दूर रखना ही महाराष्ट्र मामले में कांग्रेस का एजेंडा था. अपने इस एजेंडे को पूरा करने के लिए कांग्रेस ने आलोचकों तक की उस बात को खारिज कर दिया जिसके अंतर्गत कहा गया कि विपरीत विचारधारा होने के कारण कांग्रेस और शिवसेना का सामने आना किसी भी सूरत में सही नहीं है. बात अगर पार्टी कार्यकर्ताओं और खुद सोनिया गांधी की हो तो चंद चुनिंदा लोगों के अलावा कांग्रेस में एक बड़ा वर्ग वो था जिसने इस गठबंधन का विरोध किया था.

बाकी यहां भी हमारा सवाल वही है कि क्या कांग्रेस पार्टी अजित पवार को आईना दिखा पाएगी ? जैसे जवाब हम पहले दे चुके हैं इस मामले में भी जवाब वही है. वो कांग्रेस जो खुद को सेक्युलर कहती थी अपने सियासी फायदे के लिए शिवसेना के साथ आ गई. यानी कांग्रेस ने सिर्फ सत्ता सुख के लिए एक ऐसा काम कर दिया जिससे उसकी सम्पूर्ण छवि पर बट्टा लग गया.

ऐसे में बात घूम फिरकर फिर उसी खाके में आ जाती है कि जो कांग्रेस खुद इस गठबंधन को लेकर अपने ही दल के लोगों की आलोचना का शिकार हो रही है वो आखिर कैसे अजित पवार को ये बता पाएगी कि उन्होंने जो कुछ भी किया वो सियासी छल तो है ही मगर उनके द्वारा की गई हरकत ने कइयों का भरोसा भी तोड़कर रख दिया है.

भाजपा, जिसने किया साम दाम दंड भेद एक

इस पूरे मामले में हम सबसे अंत में भाजपा को रख रहे हैं. बात महाराष्ट्र चुनाव से पहले की हो तो चाहे पीएम मोदी रहे हों या फिर देश के गृह मंत्री अमित शाह, महाराष्ट्र में विपक्ष खासकर एनसीपी को जमकर घेरा गया. बात चूंकि अजित पवार की चल रही है तो भाजपा ने अपनी रैलियों में यही दिखाने का प्रयास किया था कि अजित पवार एनसीपी में शामिल वो नेता है जिनपर भ्रष्टाचार से जुड़े तमाम गंभीर आरोप हैं और जिस कारण वो ED और CBI की हिट लिस्ट में हैं.

अब जबकि महाराष्ट्र का सियासी समीकरण बदला है और अजित पवार ने देवेंद्र फडणवीस को अपना समर्थन दे दिया है तो कहा यही जा सकता है कि हमाम में सभी नंगे हैं और कोई भी पाक दामन नहीं है. भाजपा जानती थी कि अजित पवार करप्ट हैं मगर फिर भी उसने अजित पवार का समर्थन किया वहीं बात अगर अजित पवार की हो तो उन्होंने अपने चाचा का साथ सिर्फ इसलिए छोड़ा क्योंकि उनके अन्दर सत्ता को भोगने की भूख थी.जब परिस्थितियां इतनी पेचीदा हों तो ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि यदि अजित पवार को आईना दिखाने के लिए भाजपा सामने आ भी गई तो वो किस मुंह से उनसे सवाल करेगी.

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि राजनीति अवसरवादिता का खेल है मगर जैसा रुख सब कुछ जानते बूझते हुए भाजपा और अजित पवार ने एक दूसरे के प्रति रखा वो ये साफ़ बता देता है कि जब बात मौके की आती है तब राजनीति की नजाकत यही होती है कि गधे को बाप बनाकर उसके सामने  दंडवत हो जाया जाए इससे फायदा दोनों को मिलता है गधे को भी और उसके साधक को भी.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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