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Updated: 14 नवम्बर, 2019 09:44 PM
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प्रशांत किशोर (PK) के जेडीयू का उपाध्यक्ष बनने के बाद पहला आम चुनाव 2019 का रहा, लेकिन वो दूर-दूर तक दिखायी नहीं दिये. एक ट्वीट कर ये बताया जरूर कि चुनाव मुहिम वो नहीं बल्कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं की देखरेख में चल रही है. बतौर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर का जेडीयू नेताओं और नेतृत्व पर ये बड़ा तंज रहा.

अभी ये तो नहीं मालूम कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में PK की क्या भूमिका रहेगी, लेकिन झारखंड चुनाव के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में प्रशांत किशोर का नाम शामिल जरूर है. सूची में भी पीके का नाम नीतीश कुमार के ठीक बाद है, यानी उन सभी नेताओं से ऊपर है जिनके चलते आम चुनाव में बिहार से बाहर रहने को वो जिम्मेदार समझ रहे होंगे.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीति पर काम कर रहे पीके के रांची पहुंचने से पहले महाराष्ट्र की स्क्रिप्ट में उनके रोल की चर्चा भी होने लगी है - और माना जाने लगा है कि उद्धव ठाकरे के हद से ज्यादा अड़ियल रूख के पीछे पीके का ही दिमाग हो सकता है.

PK की वाइल्ड कार्ड एंट्री कब हुई?

बात विशेष तो ये है कि महाराष्ट्र के राजनीतिक पटल पर प्रशांत किशोर यानी पीके की परछाई भी नहीं नजर आई है, लेकिन वहां जो कुछ हुआ है उसमें पीके की बड़ी भूमिका मानी जा रही है. महाराष्ट्र की ताजा उठापटक के संदर्भ में प्रशांत किशोर को लेकर जो कहानी सुनी और सुनायी जा रही है उसका आधार लोकसभा चुनाव से पहले प्रशांत किशोर और उद्धव ठाकरे की एक मुलाकात है. ये उन दिनों की बात है जब शिवसेना और बीजेपी में काफी तनातनी चल रही थी.

आम चुनाव के साथ हुए आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी की जीत में प्रशांत किशोर का हाथ तो बताया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पीके की वैसी किसी भूमिका की बात सामने नहीं आ रही है.

कहते हैं प्रशांत किशोर ने पहले ही साफ कर दिया था कि बीजेपी और शिवसेना के बीच गठबंधन के मामले में उनका कोई रोल नहीं होगा - और चुनावी रणनीति वो सिर्फ शिवसेना के लिए करेंगे.

prashant kishor with uddhav thackerayबाहर होकर भी PK महाराष्ट्र में सक्रिय हैं - कमाल है!

महाराष्ट्र में अभी जो कुछ चल रहा है या हाल फिलहाल बीता है उससे जोड़ कर प्रशांत किशोर को टारगेट किया जाने लगा है. महाराष्ट्र को लेकर जेडीयू के ही एक नेता ने प्रशांत किशोर को निशाना बनाया है - नाम तो नहीं लिया है लेकिन 'मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट' जरूर कहा है.

जेडीयू नेता अजय आलोक की ही तरह बीजेपी महिला मोर्चा की सोशल मीडिया प्रभारी प्रीति गांधी भी प्रशांत किशोर को ही फसाद की जड़ मान रही हैं. प्रीति गांधी ने तो एक ट्वीट में नाम लेकर कहा है - ले डूबा!

एक ट्विटर यूजर ने जब ट्वीट के रिस्पॉन्स में लिखा कि वो संजय राउत को श्रेय लेने से वंचित न करें तो प्रीति गांधी का जवाब है - संजय राउत तो महज PK की स्क्रिप्ट बांच रहे थे.

तो क्या वाकई बीजेपी के सामने इतने कड़े तेवर के साथ उद्धव ठाकरे और उनके प्रवक्ता संजय राउत PK के बल पर ही दो-दो हाथ करते रहे?

शिवसेना की नाराजगी तो वाजिब है

5 फरवरी, 2019 को प्रशांत किशोर जब उद्धव और आदित्य ठाकरे से मिले तो राजनीतिक कयासों के दौर शुरू हो गये. कोई इसे बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन से जोड़ कर देख रहा था तो कोई किसी और तरीके से. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने ऐसी अटकलों पर ये कहते हुए विराम लगाने की कोशिश की कि मुलाकात बस शिष्टाचार वश रही, किसी तरह की राजनीति से उसका कोई वास्ता नहीं है. आम चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव भी बीत गया.

महाराष्ट्र के चुनाव नतीजे आने के बाद शिवसेना समर्थकों के निशाने पर प्रशांत किशोर आ ही गये. सोशल मीडिया पर कहा जाने लगा कि वो बाहरी हैं और उत्तर भारतीय कभी भी महाराष्ट्र की राजनीति समझ नहीं पाएगा. ट्रोल के निशाने पर युवा सेना के सचिव वरुण सरदेसाई भी रहे. वरुण सरदेसाई, आदित्य ठाकरे के मौसेरे भाई हैं और चर्चा रही कि वरुण सरदेसाई की सलाह पर ही प्रशांत किशोर की संस्था I-PAC को शिवसेना के चुनाव प्रचार का काम सौंपा गया था.

लोगों को गुस्सा इस बात को लेकर भी रहा कि जब अपने दम पर शिवसेना 2014 में 63 सीटें जीत गयी तो पीके के होते हुए महज 56 पर सिमट जाने का क्या मतलब?

बताते हैं कि नतीजे आने के बाद प्रशांत किशोर की टीम से आदित्य ठाकरे की मीटिंग भी हुई और वो उनके काम से खासे नाराज भी बताये गये. चूंकि मातोश्री से निकल पहली बार ठाकरे परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ रहा था इसलिए पीके को जिम्मेदारी दी गयी थी कि वो आदित्य ठाकरे को एक बड़े नेता के तौर पर स्थापित करें. वैसे आदित्य ठाकरे संवाद और जन आशीर्वाद यात्रा जैसे प्रोग्राम खुद ही बताते हैं कि वे पीके के कामकाज की स्टाइल का ही हिस्सा होते हैं. साथ ही, बीजेपी के साथ ही मिलकर चुनाव लड़ने की सलाह भी पीके की ही बतायी जा रही है.

सवाल है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रशांत किशोर की आखिर कितनी भूमिका रही? आखिर प्रशांत किशोर ने कौन सी रणनीति बनायी कि शिवसेना 2014 जितनी सीटें भी नहीं जीत पायी - क्या गठबंधन की स्थिति में किसी एक पार्टी के लिए काम करते वक्त प्रशांत किशोर फेल हो जाते हैं? शिवसेना का केस और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए काम करते समय भी तो वैसा ही हाल हुआ था.

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