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Updated: 27 नवम्बर, 2018 01:49 PM
अंजना ओम कश्यप
अंजना ओम कश्यप
  @anjanaom.kashyap.33
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पहली बातचीत हर चुनावी धरती पर ड्राइवर से ही होती है. हनुमान चालीसा की मधुर धुनों के बीच मेरा पहला सवाल, 'तो सोनू कौन जीतेगा?'. जवाब आया- 'मामला टाइट है.'

मामला कितना टाइट है ये बताने के लिए 10 बिंदू जो मैंने मध्य प्रदेश में कई किलोमीटर के सफर में पाए.

1. विधायक जी से गुस्सा

स्टूडियो वाला ज्ञानी जिस बात को आंखें तरेर कर कहता है 'पीपल आर वेरी ऐंग्री !' ये वही मिज़ाज है.

जिस शहर में, जिस बाजार में सोनू की गाड़ी रूकी, सब विधायक पर टूट पड़े. असल गुस्सा तो विदिशा में दिखा. गुस्सा विधायक ही नहीं सुषमा स्वराज पर भी था. अथाह था. वोटर का गुस्सा जब निकलता है तो बड़ी महीन बात पर. धूल ! उलाहना दे देकर भी मन शांत नहीं हो रहा था.

ताना 1- अब सुषमा जी को धूल मिट्टी में सांस लेने में तकलीफ हो रही है. ताना 2- विदेश जाएंगी, विदिशा नहीं आएंगी. ताना 3- अरे हार जातीं, डर से अब चुनाव नहीं लड़ेंगी.

बात इतनी है कि कई जगहों पर वोटर बड़े गुस्से में है. लेकिन इन्हीं बाजारों में कुछ ना-नुकुर के साथ संतुष्ट प्राणी भी मिलते गए. हां, 15 साल तक एक ही शासन के बाद भी.

2. कांग्रेस के दफ्तर खाली

हर शहर में 11-12 बजे तक कांग्रेस दफ्तर वीरान. हालांकि गुजरात के बाद से ही हर चुनाव में एक बदलाव देख रही हूं. कांग्रेस के नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता चुनावी राज्य में पधारते तो हैं लेकिन वहीं राजधानी में सिमट कर रह जाते हैं. छोटे शहरों के दफ्तर खाली हैं. कार्यकर्ता बिना ज़्यादा काम के भी सुस्ताने में व्यस्त. इधर बीजेपी दफ्तरों में सुबह से शोर शराबा. हाइ वोल्टेज एक्शन. विदिशा में शिवराज सिंह चौहान का एक मकान है जिसका किराया अभी तक वो दे रहे हैं. अब पार्टी का दफ्तर चल रहा है. हलचल नहीं वहां युद्ध सा माहौल था. स्टूडियो एक्सपर्ट कहेंगे 'अ डिवाइडेड कांग्रेस कांट मैच द बीजेपी चाणक्या लेवेल ऑफ एनर्जी'

3. नौकरी

स्टूडियो में बैठा ज्ञानी पूछता है ‘व्हेयर आर द जॉब्स?’ और जमीन पर खड़ा युवा चीखता है, ‘नौकरी क्या करें ?’ ये कांग्रेस बीजेपी से आगे का मामला हो चुका है इस देश में. चुनाव दर चुनाव ये विस्फोटक परिस्थिति और उग्र होती जा रही है. मध्य प्रदेश में बेरोजगारों की मशाल धधक रही है.

4. कर्ज़ माफी

ये महंगा पड़ सकता है. शिवराज को. कांग्रेस के कर्ज़ माफी प्लैन ने किसानें को एक मौका दिया है. वो कह रहे हैं, एक बार देते हैं कांग्रेस को वोट, कर्ज माफ नहीं किया तो 2019 में सबक सिखा देंगे. चुनाव प्रचार के आखिरी दिन शिवराज जब तक इस डैमेज को समझ पाते बहुत देर हो चुकी थी. उन्होंने कुछ किसान को सक्षम बनाने की आकाशीय हरियाली बिछाने की कोशिश आखिरी दिन ज़रूर की. स्टूडियो बहस में इसे एग्रेरियन डिस्ट्रेस कहा जाता है. 2009 के लोक सभा चुनावों में कर्ज माफी ने कांग्रेस की बड़ी मदद की थी.

5. हिंदुत्व

है. है हिंदुत्वा है. खास तौर पर मालवा में. उज्जैन में त्रिपुंड और एविएटर सजाए बुलेट पर चलने वाले युवा को राम मंदिर चाहिए. इस वोटर का खयाल सिर्फ स्टूडियो में नहीं रखा जाता, इन्हें जगह मैनिफेस्टो में भी मिलती है. कांग्रेस इनके लिए अध्यात्म मंत्रालय खोलेगी और शिवराज संतों को राज्य मंत्री बनाने के बाद गउ मंत्रालय खुलवाऐंगे. हांकिए.

mp electionsमध्यप्रदेश में स्थिति टाइट है

6. मिलेनियल पीढ़ी

इस पीढ़ी को मोबाइल से फुर्सत नहीं. हर टीवी कार्यक्रम खत्म होने पर पहला सवाल– यूट्यूब पर डालिएगा या नहीं. सीएम शिवराज वैसे तो टेक-सैवी माने जाते हैं. ना सिर्फ फेसबुक और ट्विटर बल्कि प्रचार में 3 डी वर्चुअल टेकनॉलजी का भी इस्तेमाल किया. कनेक्ट तो किया, असर पर सवाल है. इधर ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और दिगविजय सिंह भी विडियो और विज्ञापन झोंक रहे थे. मतलब ये कि दोनों तरफ से कार्पेट बॉंम्बिंग.

7. मोदी एंड शिवराज बनाम राहुल और त्रिदेव

क्या समान्वय था? क्या मोदी और अमित शाह के प्रचार और शिवराज एंड टीम में तालमेल की कमी थी. टकराव की परिस्थिति तो नहीं थी लेकिन एक दांये एक बांये. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और राज्य के नेता के बीच की खाई लोगों में चर्चा का विषय हैं. इधर राहुल गांधी मंदिर से शुरूआत कर हर भाषण में अंबानी, माल्या से होते हुए मेहुल चोकसी पर पहुंचते. हांलाकि त्रिदेव कहना गलत होगा, दिग्विजय तो पहले ही आउट थे. सो हर आरती और मंदिर में कमलनाथ और सिंधिया राहुल धुन में रम जाते ताकि आपसी महात्वाकांक्षा की लड़ाई पर ढक्कन लग जाए.

8. वायरल वीडियो

कमलनाथ का क्लोज़ डोर “90% मुसलमान वोटिंग के लिए आएं” वीडियो हो, या राजतिलक शो में नृत्य-नारेबाज़ी करते संबित पात्रा और राजीव त्यागी. वायरल वीडियो इतने हो गए हैं कि इसपर अब एमपी वाले थीसिस लिखने की स्थिति में हैं. शेयर करते गए, इनबॉक्स भरता गया.

9. राजनीति अब निजी है

चौकीदार चोर है. इस नारे ने बिसात बिछा दी. फिर तो राहुल के गोत्र तक बात गई. नाना-नानी और गांधी परिवार- द ठग्स ऑफ हिंदुस्तान की भी स्क्रिप्ट फर्राटे से पढ़ी गई. पाताल भी अपनी गहराई पर अचंभित है. तभी तो हर जगह आखिरी लाइन यही मिलती थी– इन नेताओं से क्या उम्मीद रखें मैडम. मेड इन दुंगरपुर युग कहिए इसे प्रचार का.

10. एसस/एसटी सीटें

मध्य प्रदेश में कुल 82 सीटें हैं जो एसस/एसटी के लिए आरक्षित हैं. इनमें से लगभग 65% सीटें भाजपा जीती थीं. इस बार सवर्ण आंदोलन और दलित विरोधी छवि को धोते हुए इस तरह की परफॉर्मेंस को कायम रखना चुनौती होगी. इसपर दारोमदार है जीत का. इधर इस बार सवर्णों का गुस्सा कहां तक जाएगा, ये हमारे अलावा कहां जाऐंगे वाली थ्योरी चलेगी ?

मामला टाइट है. 28 नवंबर को अपनी पार्टी के ज़्यादा से ज़्यादा वोटर जो बूथ तक ला पाएगा वो चुनाव निकाल लेगा.

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लेखक

अंजना ओम कश्यप अंजना ओम कश्यप @anjanaom.kashyap.33

लेखक आजतक में एक्सिक्यूटिव एडिटर हैं

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