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Updated: 19 मार्च, 2018 02:02 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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वैसे तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का मानना है कि आने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 2014 के मुक़ाबले ज़्यादा सीटें मिलेंगी, लेकिन हाल के दिनों में हुए राजनीतिक घटनाक्रमों, चाहे वो उप- चुनाव हों या फिर नए राजनीतिक और सामाजिक समीकरण हों, पर नज़र डालें तो यह साफ़ स्पष्ट होता है कि भाजपा के लिए वो ही राज्य इसे झटके दे सकते हैं, जिसके बल पर पिछले लोकसभा चुनाव में बम्पर सीटें जीत कर केंद्र में सरकार बनाई थी.

हम बात कर रहे हैं उन सातों राज्यों की, जिसके बदौलत भाजपा 2014 में केंद्र में सरकार बनाई थी, लेकिन अब उसे सबसे ज्यादा चुनौती उन्हीं राज्यों से मिलने की संभावना दिख रही है. और ये राज्य हैं- बिहार, उत्तर प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान.

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लोकसभा की कुल 543 में से 290 सीटें इन्हीं राज्यों के खाते में हैं, यानि 50 फीसदी से ज़्यादा. और भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में जो 282 सीटें मिली थीं, उसमें 197 सीटें उसे इन्हीं सातों राज्यों से हासिल हुई थीं. यही नहीं इन सात राज्यों से भाजपा की सहयोगी पार्टियों को भी 44 सीटें प्राप्त हुई थीं. लेकिन भाजपा के लिए इन राज्यों से 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र अच्छी खबर नहीं आ रही है. कई राज्यों में नए राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बने हैं तो कई राज्यों में इसकी सहयोगी पार्टियां ही इससे अलग होती जा रही हैं.

उत्तर प्रदेश

सबसे पहले बात देश के सबसे बड़े रजनीतिक राज्य से. यह वही राज्य है जिसने पिछले लोकसभा चुनाव में 80 में से 71 सीटें भाजपा को दी थीं और दो सीटें इसके सहयोगी दल को. लेकिन अब यहां हालात बदल चुके हैं. सपा और बसपा के साथ आने से भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं और जिसकी झलक बहुचर्चित गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उप-चुनाव में हार के साथ दिखाई दी. क्योंकि सपा और बसपा का मज़बूत और बड़ा वोट बैंक है.

गुजरात

ये वही गुजरात है जहां भाजपा 26 में से 26 सीटें पिछले लोकसभा चुनाव में जीती थी, लेकिन तीन महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में किसी तरह भाजपा अपनी सरकार बचा पाई थी. इसका मुख्य कारण था वहां नए सामाजिक और राजनीतिक समीकरण का उदय होना, जिसके कर्णधार हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की तिकड़ी थी.

बिहार

यह वही राज्य है जिसने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 40 में से 22 सीटें भाजपा को तो इसके सहयोगी दलों को 9 सीटें दी थीं. पिछली बार यहां मोदी लहर ने भाजपा की नैया पार लगा दी थी, लेकिन इस बार इसके सहयोगी दल इससे दूरियां बना सकते हैं. मसलन जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भाजपा से नाराज़ बताए जा रहे हैं तो हाल ही में सम्पन्न हुए अररिया लोकसभा उपचुनाव की हार से आहत रामविलास पासवान भी भाजपा को मंथन करने की सलाह दे चुके हैं. पासवान ने यह भी कहा है कि बीजेपी को अल्पसंख्यकों और दलितों को लेकर अपनी जनधारणा में बदलाव करने की जरूरत है.

महाराष्ट्र

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 23 और इसकी सहयोगी पार्टी शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं. लेकिन इस बार दोनों पार्टियों के रिश्तों में दरार आ गई है.

आंध्र प्रदेश

2014 में संयुक्त आंध्र प्रदेश की 42 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 3 तो इसकी सहयोगी पार्टी टीडीपी को 16 सीटें मिली थीं. लेकिन आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्ज़ा न दिए जाने से नाराज़ टीडीपी इससे अलग हो चुकी है.

मध्य प्रदेश

2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 27 सीटें जीती थीं, लेकिन वहां लगातार हो रहे उप-चुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है.

राजस्थान

मध्य प्रदेश जैसा ही हाल राजस्थान का भी है, जहां भाजपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में 25 में से सभी 25 सीटें तो जीती थीं, लेकिन उप-चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है.

इस तरह से इन सात राज्यों में 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद रजनीतिक और सामाजिक समीकरण बड़ी तेजी से बदले हैं जो साफ़ संकेत देते हैं कि आने वाला 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए इतना आसान नहीं होगा.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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