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Updated: 23 सितम्बर, 2017 12:02 PM
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साल 2017 में अब तक चार राज्यों के किसानों की कर्जमाफी हो चुकी है. अभी हाल में ही 14 सितंबर को राजस्थान सरकार ने भी किसानों के 20 हजार करोड़ की कर्जमाफी का ऐलान कर दिया है. इससे पहले उत्तर प्रदेश ने अप्रैल में, वहीं महाराष्ट्र और पंजाब की सरकारों ने जून के महीने में कर्जमाफी का ऐलान किया था. कर्जमाफी के जरिए भले ही सरकार किसानों की भलाई का दावा कर रही हो. लेकिन अगर हकीकत देखी जाए, तो इसके कई माइने सामने आएंगे. जिस भलाई का दावा सरकार कर रही है, उससे तो किसानों की आत्महत्या में कोई कमी नहीं आई है. इसके अलावे अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ रहा है, और आने वाले समय में पड़ने वाला है उससे तो रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने आगाह कर ही दिया है. तो सावल यह उठता है कि इससे आखिर फायदा किसका हो रहा है ?

राज्य सरकारों ने एक के बाद एक 4 राज्यों में कर्जमाफी का ऐलान कर दिया. सबसे पहले उत्तर प्रदेश में नई-नई आई भाजपा सरकार ने कर्जमाफी का ऐलान किया.

  1. योगी सरकार ने करीब 36.4 हजार करोड़ के कर्जमाफी का ऐलान किया. भाजपा ने चुनावों में इसी को मुद्दा बनाया था और फिर बढ़ते दबाव में कर्जमाफी का ऐलान करना पड़ा.
  2. उत्तर प्रदेश में हुए कर्जमाफी के ऐलान के बाद विपक्ष ने महाराष्ट्र सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. जिससे सरकार को झुकना पड़ा. फडण्वीस सरकार ने किसानों के 30 हजार करोड़ रूपए की कर्जमाफी का फैसला लिया है.
  3. पंजाब में आई कांग्रेस सरकार ने भी किसानों के कर्जमाफी का ऐलान कर दिया. पंजाब सरकार ने 20.5 हजार करोड़ की रकम का कर्ज माफ कर दिया.
  4. इस लिस्ट में अब राजस्थान का भी नाम जुड़ गया है. 11 घंटों तक लगातार चले बैठक के बाद सरकार ने यह फैसला ले लिया. जिसमें 20 हजार करोड़ की कर्जमाफी का ऐलान किया गया.

मार्च 2008 से मार्च 2017 के बीच केंद्र और राज्य सरकारों ने अब तक करीब 89 हजार करोड़ की कर्जमाफी का ऐलान किया है. माना तो यह जाता रहा है कि बढ़ते कर्ज के बोझ में डुबे किसानों की अत्महत्या को रोकने के लिए यह कदम उठाया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है. कर्जमाफी से किसानों के आत्महत्या का कोई लेना-देना नहीं है. जरा इन आकड़ों पर गौर कीजिए. इंडियास्पेंड के अनुसार औसतन 32.5 प्रतिशत लोग यानी करीब 8 करोड़ किसान बैंक की वजाय सेठ, साहुकारों से पैसे लेते हैं. मतलब साफ है कि जो बैंको से लोन लेंगे ही नहीं, उनका कर्जमाफी से कैसे भलाई हो सकती है. जरा इन आकडो़ं पर भी गौर कीजिए. सबसे पहले बात तेलंगाना की करते हैं. सरकार ने 2014 में यहां 17 हजार करोड़ की ऋण माफी की थी. लेकिन इसका असर किसानों की अत्महत्या पर नहीं दिखी. 2014 में राज्य में 1,347 किसानों ने आत्महत्या की थी, वहीं अगले साल यह आकड़ा बढ़कर 1,400 हो गई.

तेलंगाना, ग्राफ, किसानतेलंगानाउत्तर प्रदेश में साल 2012 में इससे पहले कर्जमाफी की गई थी. लेकिन इसका प्रभाव किसानों की आत्महत्या पर जरा भी पड़ा. कर्जमाफी के अगले साल ही आत्महत्या की संख्या में वृद्धि देखी गई. खैर इसके बाद इसमें जबरदस्त कमी आई लेकिन यह कमी कर्जमाफी की वजह से हुई, इस पर संशय है. अगर इसे ऋणमाफी से जोड़कर देखे तो भी यह साफ है कि कर्जमाफी इसका स्थाई हल नहीं है. अच्छी फसल से ही किसानों की आत्महत्या रूक सकती है.

उत्तर प्रदेश, ग्राफ, किसानउत्तर प्रदेश महाराष्ट्र और तामिलनाडु के आकड़े भी चौकाने वाले है. इन राज्यों में भी कर्जमाफी का कोई खास असर आत्महत्या के दर पर नहीं हुआ है. साल 2008 में ही केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र के किसानों के करीब 8 हजार करोड़ का ऋण माफ कर दिया था. इसका कुछ असर तो आत्महत्या के आकड़ों पर पड़ा, लेकिन यह कदम नाकाफी था. इसके बाद 2009 में राज्य सरकार ने 6.2 हजार करोड़ का कर्जमाफ कर दिया. तमिलनाडु के हालात पर जरा गौर कीजिए. साल 2016 में किसानों की कर्जमाफी की गई. 5.8 करोड़ के कर्जमाफी का असर आत्महत्या के आकड़़ों पर कितना पड़ता है, यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन इससे पहले के आकड़ों पर गौर कीजिए. इससे किसानों के जीवनदान अच्छी फसल ही है.

 

महाराष्ट्र, ग्राफ, किसानमहाराष्ट्र

 

तमिलनाडु, ग्राफ, किसानतमिलनाडु

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कर्जमाफी से बैंकिंग व्यवस्था पर पड़ने वाले नकारात्मक असर के बारे में सरकार को आगाह किया था. 6 अप्रैल के अपने बयान में पटेल ने कहा था कि ऋणमाफी से अस्थाई तौर पर ही राहत मिल सकती है. वहीं इससे अर्थव्यवस्था पर भी बोझ बढ़ता हैं.

रिजर्व बैंक से लेकर किसानों तक को ऋणमाफी का कोई फायदा नहीं दिख रहा है, तो सवाल यह है कि इससे आखिर फायदा किसको हो रहा है. कर्जमाफी का सबसे ज्यादा फायदा राजनीति का होता है. बड़े-बड़े किसानों को कर्जमाफी से असल फायदा होता है. जिससे चुनावों में वोट बैंक पर काफी असर पड़ता है. चुनावों का मौसम आ रहा है, गुजरात में चुनाव होने वाले हैं. चुनावों में किए वादे भी सरकार को विपक्ष के दबाव में पूरी करनी पड़ी. लेकिन अगर सरकार सच में किसानों की भलाई चाहता है, तो सरकार को कृषि नीतियों पर खर्च करना चाहिए. अच्छी नीतियां ही किसानों के जीवन में खुशहाली ला सकती है.

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