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Updated: 24 जून, 2015 03:14 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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धत्त बुड़बक! लालू प्रसाद का ये पसंदीदा जुमला है. ये लालू के ठेठ गंवई अंदाज की टैगलाइन है. अगर ये न हो तो लालू इंकम्प्लीट लगते हैं. शायद इसीलिए लालू ने अब अपना स्टेटस अपडेट किया है. लालू अब सोशल मीडिया खासकर ट्विटर और फेसबुक पर जोरदार मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं.

लालू का स्टेटस अपडेट

ये आईटी-वाईटी क्या होता है? कभी इसी तरह लालू प्रसाद विपक्षी दलों की खिल्ली उड़ाया करते थे. अब वो गुजरे जमाने की बात हो गई है. लालू प्रसाद अब बदल गए हैं. लालू का स्टेटस अपडेट तो देखिए. पहले उन्होंने खुद को अपडेट किया. फिर अपनी कोर टीम को खुद ही खास ट्रेनिंग दी. उसके बाद प्रवक्ताओं को जरूरी पाठ पढ़ाया - और अब कार्यकर्ताओं को नए नए तरीके से मोटिवेट कर रहे हैं.

एक कमान तेजस्वी को

काउंटर अटैक के लिए लालू ने क्विक रिस्पॉन्स टीम भी बनाई है. इसकी जिम्मेदारी लालू ने बेटे तेजस्वी यादव को सौंपी है जिसे संचालित करने के लिए वो दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. वैसे भी लालू बड़ी जिम्मेदारियां उन्हीं पर सौंपते हैं जिन पर सबसे ज्यादा भरोसा होता है. सीएम की कुर्सी सौंपनी पड़ी तो उन्होंने राबड़ी को चुना, लेकिन बात सोशल मीडिया की आई तो तेजस्वी को तरजीह दी. जब पप्पू यादव ने तेजस्वी का हक छीनने की कोशिश की तो उन्हें 'गेट-आउट' कर दिया.

सोशल मीडिया पर विपक्षी गठबंधन पर हमले के लिए युवाओं की टीम बनाई गई है. इसके साथ ही लालू खुद भी मुस्तैद और चौकस हैं. बीजेपी के हर अटैक पर काउंटर अटैक किया जा रहा है. व्हाट्सएप पर भी कई ग्रुप बनाए गए हैं. अगर व्हाट्सएप पर कार्टून के जरिए लालू को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश होती है तो फौरन लालू की टीम भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर हमला बोल देती है.

प्रचार से रोजगार मिलेगा

लालू कहते हैं कि उनके गरीब कार्यकर्ता उड़नखटोले और बड़ी बड़ी गाड़ियों से मुकाबला नहीं कर सकते. ये गरीबों से जोड़ने का लालू का तरीका है.

लालू कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रचार तंत्र और मजबूत संसाधनों से लैस हैं. इसके लिए लालू ने नया रास्ता खोज लिया है.

लालू का कहना है, "हम गली गली प्रचार करेंगे." प्रचार के लिए सौ-सौ टमटम हर जिले में में भेजे जाएंगे.

इसकी एक और खासियत लालू से ही सुनिए, "इससे टमटम और भोंपू वालों को रोजगार भी मिलेगा."

ये चुनाव में म्युचुअल बिजनेस का कंसेप्ट है. ये लालू का अपना फंडा है.

हालांकि, अपने लिए लालू ने एक अत्याधुनिक रथ तैयार कराया है जो तमाम सुविधाओं से लैस है. इसमें 7-8 लोगों के बैठने की शानदार व्यवस्था के साथ ही सुकून भरी नींद के लिए वातानुकूलित शयनकक्ष भी है. कार्यकर्ताओं से कनेक्ट होने के लिए सभी संचार सुविधाएं भी हैं. फिलहाल ये रथ पटना में राबड़ी देवी के आवास पर खड़ा है.

ऑफेंस इज बेस्ट डिफेंस

रेल मंत्री रहते हुए आईआईएम के छात्रों को मैनेजमेंड का फंडा सिखानेवाले लालू को शायद किसी प्रोफेशनल की जरूरत नहीं पड़ती. पार्टी प्रवक्ताओं को भी लालू ने खुद ही ट्रेनिंग दी है.

उन्हें बताया है कि वे किस तरह जवाबी हमले करने में किसी बात की परवाह न करें. जिस शैली में प्रतिद्वंद्वी आरोप लगाने की कोशिश करे उसी शैली में उन्हें मुंहतोड़ जवाब दें. सोशल मीडिया टीम को भी यही तरीका बताया गया है.

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लालू प्रसाद की पाठशाला

लालू रोज किसी न किसी तरीके से विपक्षी गठबंधन खासकर बीजेपी को टारगेट करते हैं - और उसे अपना नेता घोषित करने के लिए ललकारते हैं.

ऐसे मनोबल बढ़ाते हैं लालू

अपने समर्थकों और आरजेडी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए लालू कहते हैं, "विधानसभा चुनाव में भाजपा को फूंक मारकर उड़ा देंगे." लालू कहते हैं कि वो बिहार की राजनीति के गणेश हैं, इसलिए हर कोई उन्हीं के चारों तरफ चक्कर लगा रहा है. लालू समझाते हैं कि किस तरह बिहार की राजनीति उन्हीं से शुरू होती है और उन्हीं पर खत्म हो जाती है.

लालू समझाते हैं कि उनके समर्थकों को क्यों योग करने की जरूरत नहीं है. लालू पूछते हैं गांव के लोगों के लिए योग का क्या मतलब है? गांववालों को तो मेहनत से ही फुर्सत नहीं फिर वे योग कब करेंगे? फिर बीजेपी निशाने पर होती है, "अब भाजपा के लोग तो स्कूलों में जादू- टोने की पढ़ाई कराएंगे."

नीतीश कुमार जहां मोदी स्टाइल में चुनाव मैदान में उतर रहे हैं तो लालू की अपनी खास शैली है. खुदा ने सेंस ऑफ ह्युमर की जो इनायत बख्शी लालू उसका भरपूर इस्तेमाल करते हैं. चाहे रैली हो, मीटिंग हो या संसद... हर जगह लालू अपने खास अंदाज में नजर आते हैं. यहां तक कि गंभीर बहसों में भी लालू का अंदाज नहीं बदलता. कई बार तो फरमाईश भी होने लगती है. लालू ठीक वहीं से शुरू होते हैं - "धत्त बुड़बक!"

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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