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Updated: 05 मई, 2016 02:22 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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लालू प्रसाद और बाबा रामदेव एक साथ और एक दूसरे का प्रचार करने की मुद्रा में. बाबा रामदेव कैमरे के सामने एक-एक कर कुछ उम्दा पतंजलि प्रोडक्ट का सैंपल आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के सामने रख रहे हैं. कभी पतंजलि के च्यवनप्राश को चख रहे तो कभी कंपनी की क्रीम से बाबा लालू का फेसमसाज कर रहे है. कैमरे पर लालू को बाबा रामदेव का बताया हर फॉर्मूला मानो संजीवनी बूटी के फॉर्मूले जैसे लग रहा है. संभवत: सोच रहे होंगे कि दो दशक पहले बाबा के फॉर्मूले पर यकीन कर लिया होता तो दिमाग के साथ-साथ सेहत भी दुरुस्त रहती. मंच पर बाबा जैसी फूर्ति से उछलकूद मचा सकते. सफेद लटों की जगह जेपी आंदोलन वाले काले-काले बालों को लहरा सकते. पटना के गांधी मैदान से हुंकार भर सकते, चलो दिल्ली.

खैर, देर आए दुरुस्त आए. रामदेव और लालू प्रसाद यादव के बीच हुई मुलाकात में क्या खिचड़ी पकी? क्या बाबा बिहार में लालू का प्रचार करेंगे? बदले में क्या लालू उनकी कंपनी पतंजलि को राज्य में पैर पसारने के लिए जगह देंगे? दोनों दिग्गजों पर बड़ी जिम्मेदारी है. एक को अपनी हजारों करोड़ की खड़ी कंपनी का मार्केट कैप जल्द से जल्द दोगुना करना है. वहीं दूसरे को राजनीति की बाउंड्री के बाहर बैठकर बेटे को 100 फीसदी राजनीतिक विरासत सौंपनी है. हालांकि, एक बात पर दोनों दिग्गजों में बड़ा मतभेद भी है. देश में प्रधानमंत्री के पद को लेकर. लालू ने हाल में घोषणा की कि उनके सहयोगी और मित्र नीतीश कुमार देश में प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार हैं. कह लें कि कोई नहीं है टक्कर वाले अंदाज में. वहीं दूसरी तरफ बाबा के अनुलोम-विलोम की पूरी ऊर्जा से निकलने वाला आशीर्वाद मानो अगले कुछ साल के लिए कहीं गिरवी पड़ा है.

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लालू प्रसाद यादव और बाबा रामदेव की मुलाकात

ऐसे में इस मुलाकात में क्या खिचड़ी पकी, इसपर या तो कयास ही लगा सकता है या मन की बात की जा सकती है. कभी 36 का आंकड़ा रखने वाले ये दिग्गज आज क्यों एक ठुमरी पर नाच रहे हैं. एक दशक पहले जब रामदेव ने योग के सहारे राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश की तो उत्तर प्रदेश और बिहार पर जाति भाइयों का दबदबा था. हालांकि उस वक्त रामदेव के योग और औषधि का फॉर्मूला न तो मुलायम सिंह यादव पचा और न ही लालू प्रसाद यादव को रास आया. अपने-अपने राज्य की यादव गणित पर दोनों का एकाधिकार जो था. अब विश्व योग दिवस की आड़ में क्या बिहार में जाति का गठजोड़ मजबूत किया जा रहा है?

लालू यादव का नया सुर कह रहा है कि बाबा रामदेव अपनी कंपनी पतंजलि के तमाम प्रोडक्ट की तरह काफी सफल इंसान है और इसी कारण से लोग बाबा रामदेव के प्रति जलन की भावना रखते हैं. अब यह बयान बाबा रामदेव पर लगे उन आरोपों को भी दरकिनार करता है जो कहता है कि उन्होंने उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार को गिराकर बीजेपी की सरकार बनाने के लिए राजनीतिक साजिश रची है. मान लें कि लालू कह रहे हैं कि बाबा तो ठहरे बिजनेस मैन. मुलाकात का कारण भी विश्व योग दिवस का न्यौता करार दिया गया. उनकी कही हुई सच्चाई यही है कि लालू को बाबा से सीखी योग साधना और पतंजलि लिमिटेड के कई प्रोडक्ट का फायदा पहुंच रहा है.

दूसरा, लालू के सामने सबसे बड़ी चुनौती बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की है. आरजेडी-जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन में सबसे बड़े दल के तौर पर उबरने के बाद भी लालू को मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार के लिए छोड़ना पड़ा और बेटे को डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ा. अब लोकतंत्र में आंकड़ों की राजनीति तो चलती ही है. क्या पता रामदेव पर उतराखंड में आंकड़ों में फेरबदल कराने का आरोप लगने के बाद अब लालू प्रसाद को लग रहा है कि बीजेपी को साधने के लिए बाबा से बढ़ियां टॉनिक और कोई नहीं दे सकता है. अब यह कयास है तो दूर की कौड़ी, लेकिन क्या राजनीति में इस संभावना से कोई इंकार कर सकता है?

इस मुलाकात में तीसरा मुद्दा छवि बदलने की कोशिश भी हो सकती है. यानी पूरी तरह से मार्केटिंग और पब्लिसिटी का स्टंट. देखिए न, एक न्यौता का बहाना लेकर लालू जी ने पतंजलि के सभी प्रोडक्ट को सुपरमैन बना दिया और मुफ्त में एंडॉर्समेंट कर दिया. इस काम को टीवी कॉमर्शियल में क्या हेमा मालिनी मुफ्त कर सकती है. या यह उम्मीद कर सकते हैं कि अमिताभ बच्चन मुफ्त में ऐसा करेंगे. लेकिन रामदेव जानते हैं कि बिहार में बड़ा मार्केट है और उस मार्केट को ऐसा मुफ्त में हुआ एंडॉर्समेंट ज्यादा रास आएगा.

बाबा के बिजनेस स्किल को लालू ने कुछ इस कदर पेश किया मानो उनका फॉर्मूला विदेशी कंपनियों को खदेड़ने और देशी प्रोडक्ट का विस्तार करने के नाम पर वॉर्टन और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के लिए रिसर्च का विषय बन गया है. वहीं, पूरे प्रकरण में अपनी छवि बदलने के लिए लालू खुद कम उतावले नहीं दिखे. इसीलिए वह बिहार में नितिश को प्रधानमंत्री पद का मजबूत दावेदार कहते हैं तो राजधानी दिल्ली में अनाप-शनाप बोलने से बचते हैं. यानी लालू की कोशिश बिहार के बाहर भी अपने लिए ज्यादा से ज्यादा स्वीकार्यता पाने की है.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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