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Updated: 28 मार्च, 2016 03:15 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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लाहौर में 70 से ज्यादा लोगों की एक फिदायीन हमले में मौत हो गई है. यहां 20 वर्षीय हमलावर के निशाने पर ईस्टर मना रहे ईसाई थे. आतंकी संगठन यह ‘कामयाब’ हमला कर जेहाद के लिए ‘शहादत’ देने वाले लड़के को जन्नत और हूर मिलने की दुआ कर रहे हैं. लेकिन, क्या वे हूरों के तीखे सवालों के लिए तैयार हैं?

कल्पना कीजिए कि वह फिदायीन जन्नत पहुंच भी गया और दरवाजे पर उसकी मुलाकात हूर से हुई तो वह उससे कहेगा क्या. कि उसने लाहौर के एक बगीचे में कुछ औरतों और बच्चों को इसलिए मार दिया कि वे उसके धर्म को छोड़ किसी और धर्म को मानते थे. लेकिन, इस बात का उसके पास क्या जवाब होगा कि इस हमले में एक बड़ी तादाद आम मुसलमान औरतों और बच्चों की भी थी.

तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी-पाकिस्तानी तालिबान) के फिदायीन ने लाहौर के गुल्शन ए इकबाल पार्क में रविवार शाम हमला किया. इस हमले में महिलाओं और आधा दर्जन बच्चों समेत 70 लोगों की मौत हुई और 300 से अधिक लोग घायल हो गए. धमाके के बाद आतंकी संगठन ने दावा किया कि ये हमला पाकिस्तान में रह रहे उन 20 लाख इसाइयों पर था जो पाकिस्तान में अपना त्यौहार ईस्टर मना रहे थे. पाकिस्तान सरकार जहां इस हमले से सकते में हैं, वहीं पाकिस्तानी तालिबान अपने 20 साल के फिदायीन के लिए दुआ कर रही है कि उसे जन्नत नसीब हो जहां वह हूरों के साथ रंगरेलियां मना सके.

पाकिस्तानी तालिबान के एक गुट जमात-उल-अहरार ने दावा किया है कि यह हमला पंजाब के पूर्व गवर्नर सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को दी गई फांसी का बदला लेने के लिए किया गया है. गौरतलब है कि गवर्नर सलमान तासीर को ईशनिंदा की आरोपी एक इसाई महिला की मदद करने के लिए उनके ही सुरक्षाकर्मी मुमताज कादरी गोली मार दी थी. इसके बाद पाकिस्तान की अदालत ने कादरी को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा दी थी जिसे पिछले महीने अंजाम दिया गया. कादरी की फांसी के विरोध में पाकिस्तान में लगातार बड़े प्रदर्शन हो रहे हैं. इसी का नतीजा था कि आतंकी संगठन जमात-उल-अहरार ने देश में रह रहे लगभग 20 लाख अल्पसंख्यक इसाइयों को उनके वार्षिक त्यौहार ईस्टर पर निशाना बनाया.

हमले का शिकार बना लाहौर का गुल्शन-ए-इकबाल पार्क शहर के बेहद सुरक्षित वीआईपी इलाके में पड़ता है. इसी शहर में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का भी घर है, जहां हाल में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंचे थे. इस पार्क की चाक-चौबंद सुरक्षा के कारण आसपास रहने वाले बड़ी संख्या में इसाई परिवार अपने बच्चों को यहां घुमाने-टहलाने और झूला झुलाने के लिए लाते हैं. इसके अलावा पार्क के नजदीक रह रहे मुसलमान परिवार भी बच्चों समेत बड़ी संख्या में इस पार्क में मौजूद रहते हैं. हालांकि पाकिस्तान प्रशासन इस बात को नकार रहा है कि आतंकियों ने इस पार्क को महज इसलिए चुना कि उनके निशाने पर शहर के इसाई अल्पसंख्यक थे. प्रशासन दलील दे रहा है कि हमले में मारे गए आधे से ज्यादा लोग मुसलमान थे लिहाजा यह कहना कि अतंकियों के निशाने पर महज अल्पसंख्यक गलत होगा.

अब सवाल यह है कि जब आतंकी संगठन अपने आत्मघाती दस्तों को यह समझा रहे हैं कि जेहाद में शहीद होने के बाद उन्हें जन्नत नसीब होगी और वहां हूरों के साथ वे रंगरेलियां मनाएंगे, तो ऐसे में क्या उन्हें गैर-मुसलमानों की मौत से कोई फर्क पड़ेगा? क्या पाकिस्तान के आतंकी संगठन अपने आत्मघाती दस्तों को किसी पाकिस्तानी या फिर मुसलमान पर हमला करने के लिए मना करते हैं क्योंकि जन्नत के दरवाजे पर उनसे यह न पूछ लिया जाए कि उनके हमले में कितने मुसलमान मरे? अगर ऐसा पूछ लिया जाए तो शायद ही कोई फिदायीन बने.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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