New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 10 दिसम्बर, 2016 12:56 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
  @arvind.mishra.505523
  • Total Shares

एक महीने बाद भी देश में करेंसी नोटों की कमी दूर नहीं हुई है. अभी भी बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि अगर सरकार चाहती तो इस किल्लत को दूर नहीं किया जा सकता था क्योंकि इस नोटबंदी को एक महीने से भी ज्यादा वक्त हो चुका है.

नोटबंदी से परेशान लोग इसके लिए मोदी सरकार और रिजर्व बैंक के इंतजाम पर सवाल खड़े कर रहे हैं. तरह तरह के सवाल उठाये जा रहे हैं. मसलन 500 का नोट पहले ज्यादा छापना चाहिए था, 2000 के नए नोट की जगह 1000 का नोट छापना चाहिए था, पहले एटीएम को उसके लायक बनाना चाहिए था वगैरह-वगैरह.

notbandi650_121016125145.jpg
 अभी भी बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई हैं

सरकार की मंशा पर संदेह

लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि कहीं नए नोटों की कमी सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है. आखिर क्यों नोटबंदी के एक महीने बाद भी नए नोट आसानी से नहीं मिल रहे. क्यों नहीं सरकार सेना का सहयोग ले रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि ये केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है.

ये भी पढ़ें- नोटबंदी का एक महीना: एक विश्‍लेषण

ताकि काले धन फिर से न जमा हो सके

शायद सरकार को ये डर है कि बड़े करेंसी नोटों की आसानी से उपलब्धता काले धन का संकट फिर से खड़ा करेगी. सरकार इस बात से सशंकित हो सकती है कि बड़ी मात्रा में नये करेंसी नोट फिर से काला धन इकट्ठा करने वालों के पास न पहुंच जाए और सरकार कि किरकिरी और बढ़ जाए. इसके लिए सरकार और रिजर्व बैंक ये कोशिश कर रहे हों कि नए नोट आसानी से वैसे लोगों तक न पहुंचे जो काले धन के कारोबार से जुड़े हैं. यही वजह है कि सरकार इस बात पर सावधानी बरत रही है कि बड़े करेंसी नोट आसानी से उपलब्ध ही न हों.

इसके पहले RBI अपनी रिपोर्ट में यह कह चुका है कि एक हजार रुपये के जितने नोट छापे जाते हैं, उसमें सिर्फ एक-तिहाई ही सर्कुलेशन में रहते हैं. बाकी दो-तिहाई नोट काले धन के तौर पर जमा कर लिये जाते हैं.

डिजिटल ट्रांजेक्शन को प्रोत्साहन

सरकार शायद इस मंशा से भी काम कर रही है कि कैश कि कमी से आम आदमी अभ्यस्त हो जाये और वो डिजिटल ट्रांजेक्शन करने को मजबूर हो जाए. इसी के साथ कैशलेश इकोनॉमी की बात होने लगी है. मतलब सारा लेनदेन इंटरनेट, डेबिट और क्रेडिट कार्ड के जरिये हो. यानि नगदी नोट कम से कम हो जाए इसलिए सरकार इसके लिए कैशलेस, डिजिटल ट्रांजेक्शन को प्रोत्साहित करने में लगी है. और इसका नतीजा भी सरकार के सामने पॉज़िटिव आ रहा है. नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजेक्शन में काफी बढ़ोतरी भी देखने को मिली है.

ये भी पढ़ें- ओला एटीएम, मोबाइल बैंक, ये ही काफी नहीं नोटबंदी के दौर में ?

इससे पहले देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली यह कह चुके हैं कि "नोटबंदी का मुख्य उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा जहां भी संभव हो अर्थव्यवस्था में नकद लेनदेन कम किया जाए. इसीलिए सरकार क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, ई-वॉलेट और बाकी सारे डिजिटल तरीकों को लागू करने की कोशिश कर रही है"

जब से सरकार ने कालेधन को निकाल बाहर करने के 500 और 1000 का पुराना नोट बंद किया है तब से अर्थव्यवस्था में नकदी की भारी तंगी आ गई है और इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार डिजिटल भुगतान को तेजी से बढ़ावा भी दे रही है.

कुछ लोग ऐसे भी हैं जो निश्चित रूप से मोदी सरकार के काला धन बाहर निकालने की मुहीम को ठेंगा दिखा रहे हैं. सरकार इस मुहीम में कितना सफल हो पायेगी ये तो समय ही बताएगा लेकिन फिलहाल जनता तो परेशान ही है.

ये भी पढ़ें- करोड़ों के नए नोट पकड़े जाने के मायने क्या हैं...

लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय