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Updated: 04 दिसम्बर, 2020 11:00 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सीधे सीधे न सही. परोक्ष रूप से ही सही. कैप्टन अमरिंदर सिंह गाढ़े वक्त में भूपिंदर सिंह हुड्डा के बहुत बड़े मददगार साबित होते हैं. ऐसा भी नहीं कि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा की मदद के लिए अलग से कोई प्रयास करते हैं.

असल बात तो ये है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह अपने लिये जो राजनीतिक स्टाइल या हथियार इस्तेमाल करते हैं, वे बड़े आराम से भूपिंदर सिंह हुड्डा के काम आ जाते हैं. अभी तो कैप्टन अमरिंदर सिंह का पंजाब के किसानों का सपोर्ट भूपिंदर सिंह हुड्डा के लिए फिर से सरकार बनाने का मौका उपलब्ध कराता नजर आ रहा हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले भूपिंदर सिंह हुड्डा गांधी परिवार के दरबार में अपनी बात मनवाने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह का 2017 चुनाव से पहले वाला नुस्खा आजमाने के साथ साथ सफल भी हो चुके हैं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जिस सियासी चालाकी के साथ किसान आंदोलन (Farmers Protest) को अपने राजनीतिक फायदे का हथियार बना डाला है, भूपिंदर सिंह हुड्डा को तो फिर से मुख्यमंत्री बनने के सपने आने लगे होंगे. भूपिंदर सिंह हुड्डा फिलहाल हरियाणा में होने जा रहे निकाय चुनावों की तैयारियों में जुटे हुए हैं. पिछले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भूपिंदर सिंह हुड्डा ने सोनिया गांधी के साथ हुई मुलाकात से पहले बिलकुल कैप्टन अमरिंदर वाली स्टाइल में मैसेज देना शुरू कर दिया था कि वो नयी पार्टी भी बना सकते हैं. उसके बाद तो जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने कट्टर विरोधी और राहुल गांधी के करीबी प्रताप सिंह बाजवा को ठिकाने लगाया था, भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उससे भी बुरा हाल अशोक तंवर का किया - नतीजे जरूर एक जैसे न रहे. भूपिंदर सिंह हुड्डा लाख कोशिशें करने के बावजूद, कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी के करीब पहुंचते पहुंचते रह गये.

लेकिन भूपिंदर सिंह हुड्डा के ये अरमान तभी पूरे होंगे जब गरजने वाले बादल बरसने को भी राजी हों - डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) की पार्टी JJP बीजेपी की मनोहर लाल खट्टर (Manohar Lal Khattar) सरकार से समर्थन लेने की गीदड़भभकी न दे, बल्कि वास्तव में किसानों के हित में सपोर्ट वापस ले ले.

अब जब तक कि किसान आंदोलन खत्म नहीं हो जाता, खट्टर सरकार पर तलवार लटकती रहेगी, लिहाजा खतरा बरकरार रहेगा - लेकिन जिस तरीके से खाप पंचायतें एक्टिव हुई हैं और वो भी निकाय चुनावों वक्त खतरा टलने के आसार भी कम ही दिखते हैं.

खापों की न सुनी तो खैर नहीं!

कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन पर नीतीश कुमार और दुष्यंत चौटाला के नजरिये में कोई खास फर्क नहीं है. नीतीश कुमार भी सपोर्ट कर रहे हैं और दुष्यंत चौटाला एमएसपी पर ठोस आश्वासन चाहते हैं. नीतीश कुमार की तरह दुष्यंत चौटाला गलतफहमी की आशंका तो नहीं जताते, लेकिन ये जरूर साफ कर चुके हैं कि किसानों की नाराजगी खत्म नहीं हुई तो खट्टर सरकार को बचाना बीजेपी के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा.

manohar lal khattar, dushyant chautalaदुष्यंत चौटाला अगर बीजेपी को धमकाना चाहते हैं तो अपने बारे में भी सोच लेना चाहिये

किसान आंदोलन के बीचों-बीच हरियाणा में 40 खाप पंचायतों की एक महापंचायत बुलाई गयी थी. महा पंचायत में तमाम फैसलों के साथ साथ हरियाणा की बीजेपी सरकार गिराने को लेकर मुहिम शुरू करने का फैसला भी किया गया है.

खाप पंचायतों के तेवर देखने से तो यही मालूम होता है कि वे खट्टर सरकार को बख्श देने के मूड में नहीं है. अपने मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए सबसे पहले खाप पंचायतें इलाके के विधायकों को टारगेट कर रही हैं. महापंचायत में तय हुआ है कि पहले तो शांति के साथ विधायकों को अपील के जरिये समझाने की कोशिश की जाएगी. उसके बाद गांवों में विधायकों की एंट्री बंद कर दी जाएगी. साथ ही, जिन विधायकों के समर्थन से खट्टर सरकार चल रही है, उन पर समर्थन वापस लेने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की जाएगी.

खापों की महापंचायत में एक और बड़ा फैसला हुआ है कि किसान आंदोलन का नेतृत्व पंजाब के किसान ही करेंगे और हरियाणा वाले सपोर्ट करेंगे. दादरी से निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने बीजेपी-JJP सरकार को किसान विरोधी बताते हुए सपोर्ट वापस ले चुके हैं.

90 विधायकों वाली हरियाणा विधानसभा में बीजेपी के 40 विधायक हैं. दुष्यंत चौटाला के पास 10 विधायक हैं जबकि कांग्रेस के पास 31 विधायक हैं. राज्य में निर्दलीय विधायकों की संख्या कुल सात है.

अगर दुष्यंत चौटाला समर्थन वापस ले लेते हैं तो बीजेपी की खट्टर सरकार गिर भी सकती है. वैसे दुष्यंत चौटाला के समर्थन वापस लेते ही खट्टर सरकार गिर जाएगी ऐसा भी नहीं है. हो सकता है कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बहुमत साबित करने को कहा जाये. फिर उसको जैसे तैसे मैनेज करने की कोशिश हो. 7 निर्दलीयों में से अभी एक ने ही घोषित तौर पर सरकार से अलग होने का फैसला किया है, बाकी छह के मन में क्या चल रहा है, ऐसी कोई जानकारी अभी तक सामने नहीं आयी है.

बीजेपी को मालूम है दुष्यंत की हकीकत!

किसान आंदोलन के बीच मनोहर लाल खट्टर सरकार को लेकर कम से कम दो महत्वपूर्ण सवाल तो हैं ही. अगर इन सवालों का जवाब पहले मिल गया तो हरियाणा की बीजेपी सरकार का भविष्य समझना आसान हो जाएगा.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की चुनौतियां और मुश्किलें अपनी जगह हैं, लेकिन दुष्यंत चौटाला के लिए सरकार में बने रहने है या फिर अलग हो जाने का फैसला करना सबसे ज्यादा मुश्किल है.

दुष्यंत चौटाला के लिए किसान आंदोलन की परवाह न करके बीजेपी के साथ रहना भी बेहद मुश्किल भरा है - और इस तरह जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला के लिए बीजेपी के साथ सरकार में बने रहना कुआं जैसा है, तो सपोर्ट वापस लेना बिलकुल खाई की तरह है.

दुष्यंत चौटाला अगर बीजेपी के साथ सरकार में बने रहना चाहते हैं तो हरियाणा के किसानों का कोपभाजन होना पड़ेगा, लेकिन अगर राजनीतिक भविष्य को देखते हुए सरकार से सपोर्ट वापस लेने का फैसला करते हैं तो बीजेपी को नाराज करना होगा और उसका खामियाजा भी भुगतना होगा.

दुष्यंत चौटाला के डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठने से पहले उनके पिता ओम प्रकाश चौटाला को जेल से छोड़ा गया और वो घर आ गये. सरकार गिरने की स्थिति में जो सीधे सीधे हुआ है उसका उलटा होना भी तय ही है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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