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Updated: 15 जून, 2018 08:22 PM
आईचौक
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कभी कभी किस्मत वाली व्यवस्था सही लगने लगती है. जो लोग किस्मत में यकीन रखते हैं उन्हें संविधान द्वारा निजता के अधिकार के तहत हक हासिल है. ऐसा ही हक वे भी जताते हैं जो सस्ते पेट्रोल-डीजल के लिए खुद को 'किस्मतवाला' बताते हैं और बढ़ते 'GDP' (गैस, डीजल, पेट्रोल के दाम) के लिए दुनिया भर की दुश्वारियां गिनाने लगते हैं.

आखिर ये सामूहिक किस्मत नहीं तो और क्या है भला? सीरिया से अफगानिस्तान तक. वैसे इतनी दूर जाने की जरूरत भी क्या है? ऐसी बातों के फिलहाल तो कोई भी नहीं कहेगा कि दिल्ली दूर है. दिल्ली का भी दम वैसे ही घुट रहा है - प्रदूषण का स्तर आउट ऑफ कंट्रोल हो चुका है. पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची है और बिजली का क्या मर्जी की मालिक है. जब मर्जी आयी, जब मन किया चल दी. हालांकि, ये हालत सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है, दिल्ली से सटे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और उससे आगे भी हालात तकरीबन एक जैसे ही हैं. समझने के लिए दिल्ली बेहतरीन उदाहरण जरूर है.

दिल्ली को पानी देने वाले विभाग के मंत्री अरविंद केजरीवाल हैं. ये बात अलग है कि वो अपने तरीके से दिल्लीवासियों को पानी पिला रहे हैं. मुख्यमंत्री केजरीवाल खुद तो धरने पर बैठे ही हैं मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और गोपाल राय जैसे अपने उन साथियों को भी अगल बगल बिठा रखा है जिनके पास दिल्ली सरकार के कम से कम 20 विभागों के कामकाज की जिम्मेदारी आती है. जी हां, वे काम जिन्हें करने से न तो दिल्ली के उपराज्यपाल रोक सकते हैं और न ही कोई और अड़ंगा डाल सकते हैं. ज्यादा काम और ज्यादा अधिकार की बात और है.

घर पर उपराज्यपाल, दफ्तर में केजरीवाल!

जरा याद कीजिये एक बार जब दिल्ली के बीमार लोग डेंगू से जूझ रहे थे, तमाम हुक्मरान कोई न कोई प्रोजेक्ट लेकर विदेश दौरे पर निकल चुके थे. तकनीकी तौर पर वे भले ही छुट्टी पर न रहे हों, लेकिन काम का वो अंदाज किसी खुशनुमा तफरीह से अलग भी तो नहीं रहा. अभी तक मुल्क की तरक्की के लिए एयरकंडीशंड प्लान और स्टैटेजी के बारे में सुना जाता रहा. अब तो दिल्ली में एयरकंडीशंड धरना भी होने लगा है.

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दिल्ली के उपराज्यपाल के ऑफिस में केजरीवाल और साथियों के धरने का असर ये हो रहा है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल घर से ही काम निबटा रहे हैं. एलजी बैजल अपने कैंप ऑफिस पर ही अफसरों के साथ बैठक कर रहे हैं - बताते हैं कि दिल्ली पुलिस, डीडीए और दूसरे महकमों की फाइलों का निबटारा कर रहे हैं.

एक दिलचस्प बात और बतायी गयी है कि दिल्ली सरकार की ओर से उपराज्यपाल को कोई फाइल नहीं मिली है. सही पकड़े, बिलकुल वही फाइल जिसमें दिल्ली की केजरीवाल सरकार की मांगें होने का दावा किया गया है. फिलहाल दिल्ली सरकार की तीन प्रमुख मांगें हैं.

1. उपराज्यपाल खुद आइएस अफसरों हड़ताल खत्म करायें क्योंकि सर्विस विभाग के मुखिया वही हैं.

2. काम रोकने वाले अफसरों के खिलाफ सख्त एक्शन लें.

3. राशन की डोर-स्टेप-डिलीवरी की योजना को तत्काल मंजूर करें.

मामला यहीं नहीं खत्म होता. अपना दफ्तर छोड़ केजरीवाल और उनके साथी उपराज्यपाल के ऑफिस में धरना दे रहे हैं तो विपक्षी बीजेपी विरोध में अपने तरीके से मुहिम चला रहे हैं. दिल्ली सचिवालय में बीजेपी विधायकों ने 40 फीट लंबा बैनर लहराते देखा गया, लिखा था - 'दिल्ली सचिवालय में कोई हड़ताल नहीं है, दिल्ली के सीएम छुट्टी पर हैं.'

bjp leadersदफ्तर किसी और का, ड्यूटी पर कोई और...

अब आम आदमी पार्टी की तैयारी प्रधानमंत्री आवास के घेराव की है, लेकिन ये तरीका गांधीगीरी जैसा होगा. साथ में, मांगों को पूरा करने के लिए दिल्ली के लोगों की ओर से 10 लाख चिट्ठियां भी प्रधानमंत्री को भेजी जाएंगी.

ये तो धरना/अनशन बुलेटिन है

अरविंद केजरीवाल ने अपनी सरकार का धरना और अनशन का बुलेटिन ट्वीटर पर जारी कर दिया है - अपने ट्वीट में जो जो बातें उन्होंने बतायी हैं ऐसे ही लग रहे हैं जैसे किसी भी बीमार वीवीआईपी के काम कर रहे अंगों की जानकारी देने की परंपरा रही है.

बताने की जरूरत नहीं धरना और अनशन की हालत स्थिर है. बताने की जरूरत ये जरूर है कि दिल्ली की हालत बहुत ही नाजुक हो चली है. दिल्ली की व्यवस्था आईसीयू में तो न जाने कब से है, अब तो कोमा में जाने की नौबत आ पड़ी है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बतौर स्टेटस अपडेट एक चिट्ठी भी भेजी गयी है. मजमून भी मुश्किल नहीं है, इसलिए लिफाफा देखने की जरूरत नहीं. ये भी ट्विटर पर ओपन लेटर की शक्ल में है.

मुलाकात पर रोक का इल्जाम

दिल्लीवालों की परेशानी अपनी जगह तो है ही, केजरीवाल की मुश्किलें और भी हैं. केजरीवाल को अगर ट्विटर पर फॉलो करते होंगे तो शिकायतों से वाकिफ होंगे ही, जो नहीं जानते उन्हें बता देते हैं. केजरीवाल ने आरोप लगाया है - 'मेरा भाई पुणे से मुझसे मिलने आया. उसको मुझसे मिलने नहीं दिया गया. ये तो गलत है.'

अभी तक तो केजरीवाल और उनके कुछ साथी थे, अब इसमें सुनीता केजरीवाल की भी एंट्री हो गयी है. दिल्ली के मुख्यमंत्री की पत्नी और भारतीय राजस्व सेवा की पूर्व अफसर सुनीता केजरीवाल की शिकायत है कि न तो उन्हें और न ही धरने पर बैठे मंत्रियों के पत्नियों को, किसी को भी अपने पतियों से मुलाकात की इजाजत नहीं मिल रही है.

ये तो और भी अजीब बात है. जेल में कैदियों तक से उनके परिवार को मिलने की इजाजत होती है. मुख्यमंत्री और मंत्रियों की पत्नियों को अपने पतियों से मिलने से भला कैसे रोका जा सकता है?

सब तो नीरो जैसे ही नजर आते हैं

वैसे सुनीता केजरीवाल और उनके साथ गयीं महिलाओं को रोके जाने की वजह आखिर क्या हो सकती है?

कहीं उपराज्यपाल के अफसरों को इस बात का डर तो नहीं सता रहा कि नेताओं की पत्नियां भी पहुंच कर धरने पर न बैठ जायें.

सीताराम येचुरी और विपक्ष के कई नेता केजरीवाल के साथ खड़े हैं. ठीक है उनका विरोध केंद्र की सत्ता में काबिज बीजेपी से है लेकिन दिल्ली के लोगों से भला क्या दुश्मनी है. कांग्रेस पल्ला झाड़ सकती है कि दिल्ली में उसके पास जीरो बैलेंस है, लेकिन जितनी ऊर्जा मोदी के फिटनेस वीडियो को कोसने में लगाया उससे काफी कम में दिल्ली के लोगों की तकलीफों को क्या वो आवाज नहीं दे सकती थी?

और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी भरी संसद में कांग्रेस के 70 साल के पाप गिनाते नहीं थकते. अरे भई, 70 में से पहले के पांच और नये वाले चार यानी कुल नौ साल आपके हिस्से में भी तो आते हैं.

ये ठीक है कि दिल्ली की जनता ने कभी विधानसभा की 70 में से 67 सीटें अरविंद केजरीवाल के हवाले कर दी, लेकिन उससे पहले लोक सभा की सभी सात सीटें आपकी झोली में भी तो डाली थीं.

क्या प्रधानमंत्री भूल गये हैं कि दिल्ली के सातों सांसद बीजेपी के हैं. एमसीडी में भी बीजेपी का ही शासन है. सियासी झगड़ा अपनी जगह है लेकिन दिल्ली के लोगों ने किसका क्या बिगाडा है. प्रधानमंत्री बनने के बाद आपही ने तो समझाया था कि आप सभी सांसदों के प्रधानमंत्री हैं. सभी देशवासियों के प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने वोट दिये, जिन्होंने दूसरों को वोट दिये और जिन्होंने नोटा का बटन दबाया होगा, उन सभी के भी. बताते हैं बरसों बीत गये और आप 15 मिनट की छुट्टी भी नहीं लिये - छोड़ दीजिए 15 लाख जुमला था, क्या लोगों ने इतना बड़ा गुनाह कर दिया कि आप अपनी सारी बातों को जुमला साबित करने पर तुले हुए हैं.

kejriwal, sisodia, satyendra jain, gopal raiट्विटर पर आंदोलन...

मौजूदा हालात में किसी एक की नीरो जैसा बताना बहुत नाइंसाफी होगी. वो लाइन जरा नये दौर में मन में दोहराइये. अभी तो आपको कुछ ऐसा ही सुनाई दे रहा होगा - हर पोस्ट पर 'नीरो' बैठा है अंजाम-ए-हिंदोस्तां क्या होगा? कहते हैं जब रोम जल रहा था नीरो बांसुरी बजा रहा था. अब तो लगता है नये दौर के नीरो फुल वॉल्यूम डीजे और ऑर्केस्ट्रा के शोर में सांगोपांग ध्यानमग्न हैं. मुश्किल ये है कि हाल सिर्फ दिल्ली का नहीं है. जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु और यूपी से लेकर पश्चिम बंगाल तक रवायत एक ही है बस देश, काल और परिस्थिति के हिसाब से किरदार बदलते नजर आते हैं.

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