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Updated: 27 अक्टूबर, 2022 11:38 AM
विवेकानंद शांडिल
विवेकानंद शांडिल
  @vivekanand.shandil
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिवाली के मौके पर अयोध्या में दीपोत्सव का शुभारंभ किया. यहां एक साथ 15 लाख दीपों को प्रज्ज्वलित किया गयाए जो एक नया कीर्तिमान भी है. इस दौरान उन्होंने राम मंदिर निर्माण की प्रगति का भी जायजा लिया. इस अवसर पर उन्होंने विपक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा, एक समय राम का नाम लेने से बचा जाता था. उनके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाते थे. जिसके परिणामस्वरूप हमारे धार्मिक - सांस्कृतिक स्थान पीछे छूटते चले गए. हम यहीं अयोध्या के रामघाट पर आते थे तो दुर्दशा देखकर मन दुखी हो जाता था. काशी की तंगहाली - गंदगी परेशान कर देती थीं. जिन स्थानों को हम अस्तित्व का प्रतीक मानते थे. जब वही बदहाल थे तो देश के उत्थान का मनोबल अपने आप टूट जाता था. बीते 8 सालों में देश ने हीन भावना की बेड़ियों को तोड़ा है. हमने भारत के तीर्थों के विकास की समग्र नीति को सामने रखा है.

Prime Minister, Narendra Modi, Ayodhya, Kedarnath, Badrinath, Tourism, Tourist, Culture भारत की खोयी पहचान को पुनर्स्थापित करने के लिए पीएम मोदी ने ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ को नया विमर्श दिया है 

वास्तव में, हमारे इतिहास में धर्म और आध्यात्म का सदैव सर्वोच्च महत्व रहा है. यहां धार्मिक विविधता और सहिष्णुता को कानून और समाजए दोनों से स्वीकृति हासिल है. भारत सदियों से अनेक धर्म और जाति के लोगों को एक सूत्र में पिरोकर आस्था और संस्कृति की एक नई गाथा लिख रहा है. जम्मू कश्मीर में माँ वैष्णो देवी की मंदिर हो या पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर, आज हमारे देश में ऐसे अनगिनत धार्मिक स्थल हैं, जहां प्राचीन काल से ही लोग हजारों कोस की दूरी तय कर दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

हमारे आदर्शों में सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं के साथ वैज्ञानिक नवीनताओं का एक दुर्लभ संयोग दिखाई देता है. हमने दुनिया को दयाए करूणा, प्रेम, शांति, सहिष्णुता, क्षमाशीलता का पाठ सीखाया, तो योग और आयुर्वेद जैसे चिकित्सा पद्धतियों के माध्यम से उन्हें शारीरिक और मानसिक व्याधियों से दूर रहने में मदद की.

लेकिन कालांतर में विदेशी आक्रांताओं हमारी परंपरा और विश्वास पर कठोर आघात किया और हमने अपनी मौलिकता को साख पर रखकरए उनके व्यवहारों को अपनाना शुरू कर दिया. लेकिन, 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही, भारत की खोयी पहचान को पुनर्स्थापित करने के लिए पीएम मोदी ने 'सांस्कृतिक राष्ट्रवाद'के एक नये विमर्श को जन्म दिया.

यह उनके ही अथक प्रयासों का नतीजा है कि आज योग, अध्यात्म, कला, आदि के क्षेत्र में भारत हर दिन नई ऊंचाइयों को हासिल कर रहा है. पीएम मोदी ने भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए मंदिरों के महत्व को भी पुनर्स्थापित करने की दिशा में भी उल्लेखनीय प्रयास किया है. यह उनके ही अथक प्रयास का नतीजा है कि आज आयोध्या राम मंदिर का विवाद सुलझ चुका हैए जो वर्षों से थमने का नाम नहीं ले रहा था.

फिलहाल यहां 1800 करोड़ रुपये की लागत से नये और भव्य राम मंदिर का निर्माण जारी है, जिसका 40 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है. इस कड़ी में, केदारनाथ मंदिर का भी जिक्र करना जरूरी हैए जो 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ में बर्बाद हो गया था. पीएम मोदी ने 500 करोड़ की लागत से न सिर्फ केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण और पुनर्विकास का लक्ष्य निर्धारित किया, बल्कि यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे चार तीर्थ स्थलों को जोड़ने का संकल्प भी लिया.

कुछ समय पहले उन्होंने उज्जैन में महाकाल लोक परियोजना के पहले चरण का लोकार्पण भी कियाए जिसके अंतर्गत मंदिर परिसर के 7 गुना अधिक विस्तार का लक्ष्य है. एक आंकड़े के अनुसारए यहाँ हर वर्ष 1.5 करोड़ श्रद्धालु आते हैं, लेकिन इस परियोजना के उद्धाटन के बाद इसकी संख्या दोगुनी होने की उम्मीद है. वहीं, काशी विश्वनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण ने पूरी काशी को एक नई ऊर्जा से भर दिया है.

आंकड़े के अनुसार, इस वर्ष सावन में आने वाले श्रद्धालूओं की संख्या ने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़े. सिर्फ इस साल के सावन में करोड़ से ज्यादा लोगों ने बाबा विश्वनाथ धाम में दर्शन और पूजा – पाठ किये. इसके अलावा उन्होंने अपने कार्यकाल में जम्मू स्थित रघुनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर परिसर जैसे कई धार्मिक स्थलों के पुनर्विकास और जीर्णोद्धार का भी महत्वपूर्ण फैसला लिया है.

पीएम मोदी ने भारतीय संस्कृति और आस्था के वैश्विक प्रसार के लिए भी कई प्रयास किये हैं. बहरीन की राजधानी मनामा में श्रीकृष्ण श्रीनाथजी मंदिर और अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला रखना, ऐसे ही कुछ उदाहरण हैं. उनके इन प्रयासों से हमारी आस्थाए परंपरा और सामाजिक मूल्यों जैसे अन्तर्निहित प्रतिमानों का संरक्षण और संवर्धन तो हो ही रहा है सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिलने से हमारी अर्थव्यवस्था भी सुदृढ़ हो रही है.

हालांकि, यह तो सिर्फ आरंभ है. हमें इस दिशा में और अधिक मेहनत करनी होगी, तभी हम अपने गौरवशाली इतिहास की उपलब्धियों को फिर से हासिल कर सकेंगे और उन्होंने भारत को संपूर्ण विश्व के सामने एक सुधारक और शिक्षक के रूप में स्थापित करने का जो बीड़ा उठाया है, उसे साकार कर सकेंगे.

लेखक

विवेकानंद शांडिल विवेकानंद शांडिल @vivekanand.shandil

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और ब्लॉगर हैं और राजनीति में खास रूचि रखते हैं

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