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Updated: 29 नवम्बर, 2018 08:01 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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करतारपुर कॉरिडोर के शिलान्यास के कार्यक्रम से केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल पहले लौटीं. पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू बाद में लौटे हैं. लौटे तो दोनों अपने अपने खाते में खुशी लेकर ही हैं, लेकिन हरसिमरत ने सिद्धू के देर से लौटने पर भी सवाल उठाया है. सिद्धू और हाफिज सईद के आदमी गोपाल सिंह चावला की तस्वीरों पर भी विवाद हुआ है - और हरसिमरत ने तो सिद्धू को पाकिस्तानी एजेंट तक करार दिया है.

भारत का स्टैंड अपनी जगह कायम है. जब तक सरहद पार से दहशतगर्दी को बढ़ावा बंद नहीं होगा - न तो कोई बातचीत होगी और न ही सार्क सम्मेलन में हिस्सेदारी. समझदारी भी इसी में है क्योंकि पाकिस्तान अब इसी के काबिल है.

करतारपुर से इमरान जरूरत से ज्यादा क्यों चाहते हैं?

करतारपुर कॉरिडोर को लेकर नवजोत सिंह सिद्धू हद से ज्यादा जोश में लगते हैं. सिद्धू द्वारा अब तक इमरान के दो-दो इवेंट हाथोंहाथ लेने से वो भी गदगद हैं - मगर, ध्यान देने वाली बात ये है कि इमरान खान चाहते क्या हैं? सरकार के सौ दिन पूरे होने के बाद वो अपने बयान पर कायम भी हैं. भारत जितना कदम बढ़ाएगा, पाकिस्तान दोगुना बढ़ेगा. बयान देना और अपनी बात पर कायम रहना दो बातें होती हैं. इमरान खान के बयान और उनकी बात में भी ऐसा ही फर्क है.

imran khan, siddhu, badalलाहौर के बाद कारगिल, करतारपुर से आगे क्या...

सिद्धू और इमरान के बीच तारीफों के पुल इस कदर बाधे जाने लगे हैं जैसे हवाई किले खड़े करने की होड़ मची हो - 'सिद्धू पाकिस्तान में भी चुनाव लड़ें तो जीत जायें', 'सिद्धू के पीएम बनने तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा'.

जब नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, दोनों मुल्कों के बीच बैकडोर चैनल से बातचीत की कोशिशें कई बार हुईं. कभी नेपाल में तो कभी कहीं और. यहां तक कि पाक फौज के सामने पेश होकर नवाज शरीफ को ये बात कबूल भी करनी पड़ी. अगर बैकडोर बातचीत से तुलना करें तो निश्चित तौर पर जोर संवाद संचार वाया सिद्धू चैनल चल रहा है बेहतर माना जाना चाहिये - लेकिन ये सब कहीं से भी बहुत उत्साहित करने वाला नहीं है.

पाकिस्तान की फितरत रही है कि सामने बातचीत और अमन की कवायद चल रही होती है और पर्दे के पीछे भीतरघात हो रही होती है. वाजपेयी की लाहौर बस सेवा के बाद कारगिल और प्रधानमंत्री मोदी के हैपी बर्थडे विश के बाद पठानकोट हमला और उड़ी अटैक कोई कैसे भूल सकता है. वैसे मुंबई हमले की बरसी पर 26 नवंबर को भारतीय सिरे पर करतारपुर का कार्यक्रम भी बहुतों के गले के नीचे नहीं उतरा.

फिलहाल समझने की जरूरत ये है कि पाकिस्तान का इरादा क्या है? इमरान खान कहते हैं कि पाकिस्तान में आज सरकार और फौज के साथ साथ सियासी दल और दूसरे संगठन साथ साथ खड़े हैं. ये तो पहले से ही सबको समझ आ रहा था बस उसके सबूत मिलने लगे हैं. इमरान खान और पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा के इर्द गिर्द हाफिज सईद के खास आदमी गोपाल चावला का मंडराते रहना अपनेआप में काफी है.

बावजूद इसके इमरान खान दुनिया को बताना चाहते हैं कि वो भारत के साथ अमन का रिश्ता कायम करना चाहते हैं. वो कश्मीर समस्या को सुलझाना चाहते हैं और मानते हैं कि फौजी तरीके से ऐसा मुमकिन भी नहीं है.

ये सारी कवायदें तो एम्बिएंस का हिस्सा भर हैं. असल मकसद तो कुछ और ही है. दरअसल, पाकिस्तान चाहता है कि जैसे भी हो इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन हो जाये.

भारत का स्टैंड तो साफ है - 'सार्क सम्मेलन तभी, जब आतंक पर लगाम लगे'

सार्क मुल्कों का 19वां शिखर सम्मेलन पाकिस्तान में होने वाला था, लेकिन 2016 में भारत ने उसका बहिष्कार कर दिया. भारत के ऐसा करते ही अफगानिस्‍तान, बांग्‍लादेश और भूटान ने भी बॉयकॉट कर दिया. आखिरकार सम्मेलन रद्द करना पड़ा.

सार्क सम्मेलन रद्द होने से पाकिस्तान की भारी बेइज्जती हुई. भारत तो यही चाहता था कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान अलग थलग नजर आये और भारत इस मकसद में कामयाब रहा. ये उसी समय की बात है जब आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में सेना के कैंप पर हमला किया था जिसमें 18 जवान शहीद हो गये - और बदले में भारत को सरहद पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करनी पड़ी.

ये ठीक है कि भारत ने करतारपुर कोशिश को बर्लिन की दीवार से जोड़ कर बताया है और पाकिस्तान भी उससे काफी उम्मीद कर रहा है. लगे हाथ भारत ने ये भी साफ कर दिया है कि पाकिस्तान को घालमेल की बहुत जरूरत नहीं है. भारत का साफ तौर पर कहना है कि करतारपुर कॉरिडोर और द्विपक्षीय बातचीत दोनों अलग अलग मसले हैं. पाकिस्तान भले ही उछल उछल कर क्रेडिट लेने की कोशिश करें, लेकिन भारत का कहना है कि पिछले 20 साल से पाकिस्तान के साथ इस मसले पर बातचीत चल रही थी और अब जाकर नतीजा निकला है.

इमरान खान कह रहे हैं कि दोनों मुल्कों के बीच जंग की बात सोचना भी मूर्खतापूर्ण है. ठीक कह रहे हैं. दो बार मुंहकी खाने के बाद पाकिस्तान बोले जो भी पर उसे अंदर से ऐसा ही महसूस करना चाहिये.

इंडिया टुडे से बातचीत में इमरान खान ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात होने पर उन्हें बहुत खुशी होगी. पाकिस्तान की ओर से कहा गया है कि सार्क सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री मोदी को न्योता भेजा जाएगा, हालांकि, अभी तारीख तय नहीं है. वैसे भारत ने तो अपना रूख साफ कर ही दिया है - पहले आतंकवाद पर लगाम, फिर सार्क सम्मेलन या कोई भी द्विपक्षीय बातचीत.

वैसे पाकिस्तान के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए उसकी बातों में बहुत आने की जरूरत नहीं है. लाहौर बस के बाद कारगिल तो करतारपुर के बाद भी तो कुछ हो सकता है - क्या जाने पाक आर्मी चीफ और आईएसआई के मन में क्या चल रहा हो? दोनों की नजर में इमरान खान हुक्म के गुलाम हैं जिन्हें आगे कर आईएसआई और पाकिस्तानी फौज ने जम्हूरियत का जामा पहना दिया है. मौके का पूरा फायदा उठाते हुए हाफिज सईद की भी बड़ी और अहम हिस्सेदारी तय लगती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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