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Updated: 11 सितम्बर, 2020 06:24 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कंगना रनौत (Kangana Ranaut) जिस तरह से आक्रामक और शिवसेना पर हमलावर बनी हुई हैं, वो बीजेपी (BJP) के लिए फायदेमंद तो है - लेकिन उसके जो साइड इफेक्ट हैं वे बड़े खतरनाक इशारे कर रहे हैं. बीजेपी के कंगना रनौत के बयानों को लेकर पूरी सतर्कता बरतते हुए देखा जाना इस बात की पुष्टि भी करते हैं. बीजेपी कंगना रनौत का सपोर्ट तो कर रही है, लेकिन कंगना की हर बात का नहीं. बीच बीच में बीजेपी की तरफ से सफाई भी दी जा रही है कि वो कंगना रनौत के किस बयान का समर्थन नहीं कर रही है. दरअसल, बीजेपी को पता है कि कंगना रनौत का आंख मूंद कर समर्थन करना उसके लिए कितना भारी पड़ सकता है.

बीजेपी बस इतना चाहती है कि कंगना रनौत के बयान सुंशात सिंह केस में जांच एजेंसियों के सूत्रों के हवाले से लीक होने वाली जानकारियों के बीच फिलर का काम करता रहे - और जैसे भी हो सके ये सब बिहार चुनाव खत्म होने तक खींचा जा सके.

उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) को लेकर 'तू-तड़ाक' से लेकर कंगना रनौत ने अब तक जो कुछ भी कहा है उनमें से कई बातें शिवसेना के पक्ष में जाने वाली हैं - और भीतर ही भीतर तैयारियों में जुटी शिवसेना कंगना रनौत एपिसोड के खत्म होने की बात कर तात्कालिक बवाल टालने की कोशिश कर रही है.

उद्धव ठाकरे पर निजी हमले भारी पड़ सकते हैं

बेशक तीखी बयानबाजी का दौर कंगना रनौत और संजय राउत के बीच शुरू हुआ - और बात बढ़ते बढ़ते उद्धव ठाकरे के लिए 'तू-तड़ाक' में तब्दील हो गयी. कंगना का गुस्सा सातवें आसमान पर तभी चढ़ा जब मुंबई के पाली हिल में मणिकर्णिका फिल्म्स के उनके दफ्तर में बीएमसी ने तोड़ फोड़ की. वो भी तब जब वो पहले से घोषणा करके पूरे लाव-लश्कर के साथ मुंबई के रास्ते में थीं. बीएमसी के नोटिस पर अपने वकील के जरिये जवाब देकर मोहलत भी मांगी थी और बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटा चुकी थीं.

रास्ते से ही कंगना रनौत ट्विटर पर अपने दफ्तर में हो रही तोड़ फोड़ की तस्वीरे और वीडियो शेयर तो कर ही रही थीं, मुंबई पहुंचने के बाद कंगना रनौत ने एक वीडियो मैसेज जारी किया - "उद्धव ठाकरे तुझे क्या लगता है?"

शिवसेना क्या किसी भी पार्टी के नेता के लिए ये लहजा बर्दाश्त कर पाना मामूली बात नहीं है. निश्चित तौर पर संजय राउत ने कंगना रनौत के लिए 'हरामखोर लड़की' कहा था और कंगना रनौत ने भी जवाबी गुस्से में वैसा कुछ बोला होता तो बात और होती, लेकिन उद्धव ठाकरे के लिए जिस अंदाज में कंगना रनौत ने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया वैसा कभी देखने या सुनने को नहीं मिला है.

संजय राउत बार बार यही बताने की कोशिश कर रहे हैं कि ये सब बीजेपी की शह पर हो रहा है. मतलब साफ है, शिवसेना समर्थकों को मैसेज देना है कि कंगना रनौत ने तो सिर्फ बयान जारी किया है उद्धव ठाकरे को वास्तव में अपमानित तो बीजेपी कर रही है. मान कर चलना होगा कि जल्द ही शिवसेना ये मुद्दा लेकर लोगों के बीच जाएगी ही.

संजय राउत कह रहे हैं कि महाराष्ट्र में अभी अगर बीजेपी की सरकार होती तो तस्वीर कुछ और होती. संजय राउत याद दिलाते हैं कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और देवेंद्र फणडवीस के खिलाफ किसी चैनल पर कोई कुछ बोलता है तो फौरन उसे जेल में डाल दिया जाता है. ये भी याद दिलाते हैं कि कैसे यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कोई कार्टून बनाये या कुछ बोले तो कैसे लोगों को जेल में डाल दिया जाता है.

kangana ranaut, uddhav thackeray, sanjay rautबीजेपी को उद्धव ठाकरे पर हुए कंगना रनौत के निजी हमले को काउंटर करने का उपाय ढूंढना होगा

हालांकि, संजय राउत ये भूल जाते हैं कि हाल ही में एक महिला के ट्वीट को लेकर उसके खिलाफ तीन जगह एफआईआर दर्ज करायी गयी है. पुलिस में ये शिकायत मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे के खिलाफ ट्विटर पर टिप्पणी को लेकर दर्ज करायी गयी है. महिला को बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटना पड़ा है और तब जाकर उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगी है. उसी महाराष्ट्र में सोनिया गांधी के खिलाफ एक टीवी एंकर की टिप्पणी के खिलाफ कई थानों में शिकायतें दर्ज करायी गयीं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. रही बात ऐसी टिप्पणियों की तो सिर्फ नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ ही क्यों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार तो एक प्रोफेसर को सोशल मीडिया पर एक कार्टून शेयर करने के लिए जेल भेज चुकी है - ये काम किसी भी पार्टी की सरकार करे और किसी भी राज्य में क्यों न हो सही नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन हम्माम में कोई भी पाक साफ इतना नहीं है कि उसे किसी दूसरे राजनीतिक दल पर टिप्पणी नैतिक हक तो नहीं ही बचा है.

कंगना रनौत पर अपनी 'हरामखोर लड़की' वाली टिप्पणी को लेकर संजय राउत ने वैसे ही सफाई दी थी जैसे कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री मोदी के के बारे में 'नीच' बोल कर अपनी खराब हिंदी की दुहाई दी थी और उसके लिए राहुल गांधी का कोपभाजन बनने के साथ साथ कार्रवाई भी झेलनी पड़ी थी. संजय राउत ने भी समझाने की कोशिश की कि 'उनकी भाषा' में 'हरामखोर...' का मतलब 'नॉटी' होता है. गजब की सफाई है.

लेखक सुहेल सेठ सहित कई ट्विटर यूजर ने कंगना के खिलाफ संजय राउत की इस टिप्पणी पर रिएक्ट किया थाय. सुहेल सेठ ने लिखा है, 'तो मुंबई में 'तू' एक गाली है और हरामखोर जिसे नॉटी भी कहा जा रहा है, वो शहद सा टपकता है!' कंगना रनौत से सुहेल सेठ की टिप्पणी को रीट्वीट किया है.

संजय राउत का अपना स्टैंड हो सकता है और कंगना रनौत और उनके समर्थकों का अपना, लेकिन इसमें तो कोई दो राय नहीं कि राजनीति में जिस तरह के बयान कंगना रनौत ने उद्धव ठाकरे के लिए जारी किया है उसे निजी हमलों की श्रेणी में रखा जाता है. ऐसा भी नहीं है कि कंगना रनौत उस वीडियो बयान के बाद से खामोश हैं, वो तो अपने अंदाज में ट्वीट कर रही रही हैं, कंगना रनौत की मां आशा रनौत की बयानबाजी का भी लहजा करीब करीब वैसा ही है.

संजय राउत का ये कहना भी गले के नीचे नहीं उतर रहा है कि शिवसेना के पास और भी काम हैं और कंगना रनौत एपिसोड खत्म हो चुका है. अब जो खबरें आ रही हैं उनसे मालूम होता है कि बीएमसी कंगना रनौत के खिलाफ और भी बड़ी कार्रवाई की तैयारी कर रही है और उसके लिए सही मौके का इंतजार हो रहा है.

कंगना रनौत के बयान के लिए शिवसेना सीधे सीधे बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रही है. जाहिर है जब उद्धव ठाकरे पर निजी हमले का मुद्दा लेकर शिवसेना लोगों के बीच जाएगी तो यही बताएगी कि कैसे बीजेपी ठाकरे परिवार को अपमानित करने की साजिश रच रही है.

अब तक तो यही देखने को मिला है कि निजी हमले विरोधी पक्ष पर हमेशा ही भारी पड़े हैं और चुनाव काल में तो नतीजे भी तुरंत सामने आ जाते हैं. 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ 'चौकीदार चोर है' के नारे लगवाये - चुनावों में कांग्रेस का जो हाल हुआ वो सबके सामने है. हालत ये है कि कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद से अब तक कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं मिल पाया है और कांग्रेस के सीनियर नेता इसे लेकर चिट्ठीबाजी पर उतर आये हैं.

बिहार में पांच साल पहले जब 2015 में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तो प्रधानमंत्री मोदी ने ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर 'डीएनए में खोट' की बात कर डाली थी, रिएक्शन इतना तगड़ा हुआ कि बीजेपी बुरी तरह चुनाव हार गयी. उसके ठीक पहले दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी की तरफ से एक विज्ञापन छपवाया गया था जिसमें आप नेता अरविंद केजरीवाल के गोत्र पर सवाल उठाये गये थे - तब भी बीजेपी को हार का ही मुंह देखना पड़ा था. उद्धव ठाकरे पर कंगना रनौत के निजी हमले के बाद एक बार फिर बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है.

कंगना का फुल सपोर्ट बीजेपी नहीं कर पा रही है

ये तो जगजाहिर है कि शिवसेना अस्मिता की ही राजनीति करती आयी है - मुंबई और महाराष्ट्र का गौरव और मराठी अस्मिता ऐसा मुद्दा है जिस पर महाराष्ट्र बीजेपी को भी खामोशी अख्तियार करनी पड़ती है.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अभी तो उद्धव ठाकरे सरकार को कंगना रनौत के दफ्तर में तोड़फोड़ को लेकर माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम की प्रॉपर्टी की याद दिला रहे हैं, लेकिन वही कंगना रनौत की मुंबई को लेकर टिप्पणी का सपोर्ट नहीं करते. देवेंद्र फडणवीस ने साफ साफ कहा था कि बीजेपी कंगना रनौत की मुंबई को पीओके बताने का समर्थन नहीं करती. याद कीजिये कैसे राम कदम और उनके जैसे महाराष्ट्र बीजेपी के नेता शुरुआती दौर में कंगना रनौत के पक्ष में खड़े नजर आ रहे थे. राम कदम ने कंगना की तुलना झांसी की रानी से की थी, लेकिन जैसे ही कंगना रनौत के मुंबई को पीओके बताने पर लोगों की प्रतिक्रिया आने लगी, सब के सब पीछे हट गये. तब संजय राउत ने ट्विटर पर लिखा कि मुंबई मराठी मानुष के पूर्वजों की धरती है. जो इससे सहमत नहीं हैं वे अपने बाप लाकर दिखायें. शिवसेना सुनिश्चित करेगी कि हम महाराष्ट्र के ऐसे दुश्मनों को कैसे ठिकाने लगायें.

जब ट्विटर पर 'आमची मुंबई' ट्रेंड करने लगा तो बीजेपी नेता आशीष शेलार ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर सफाई दी कि बीजेपी कंगना रनौत के बयान से सहमत नहीं है. शिवसेना की तरफ से यही सब भुनाने की तैयारी चल रही है.

जब कंगना रनौत मुंबई और शिवसेना की तुलना पीओके, पाकिस्तान, तालिबान और बाबर से करती हैं, तो संजय राउत पूछते हैं कि बीजेपी क्यों कंगना रनौत को सपोर्ट कर रही है? संजय राउत का कहना है कि किसी भी राजनीतिक दल के नेता को ऐसे किसी शख्स का सपोर्ट नहीं करना चाहिये जो महाराष्ट्र का सम्मान न करता हो.

शरद पवार की तरह, संजय राउत कहते हैं - दिल्ली ने हमेशा से महाराष्ट्र विरोधी स्वरों को समर्थन दिया है जिसमें मुंबई के खिलाफ गुस्सा और नफरत नजर आती है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दौरान एनसीपी नेता शरद पवार के खिलाफ ईडी ने समन जारी किया था तो वो भी दिल्ली को मराठा पावर इसी अंदाज में दिखाये थे - और वो कारगर भी साबित हुआ ईडी ने समन को लेकर पूछताछ तो रद्द किया ही मुंबई के पुलिस कमिश्नर को शरद पवार से अपील करनी पड़ी कि वो ईडी दफ्तर में पेशी के लिए जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दें.

शिवसेना ही क्यों बीजेपी भी तो ऐसा ही करती आयी है. 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की एक मुहिम जोर पकड़ चुकी थी - विकास पागल है. देखते ही देखते बीजेपी इस मुहिम से मुश्किल महसूस करने लगी. फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अहमदाबाद पहुंचे और बोले - 'हूं छूं गुजरात, हूं छूं विकास' यानी 'मैं ही गुजरात हूं, मैं ही विकास हूं'. कांग्रेस समझ गयी कि बीजेपी ने विकास को गुजरात की अस्मिता से जोड़ दिया है और आगे वो नहीं टिकने वाली, लिहाजा फटाफट मुहिम वापस ले ली गयी.

अभी तो नहीं लेकिन बिहार चुनाव बीत जाने के बाद बीजेपी को नये सिरे से तय करना होगा कि महाराष्ट्र और मुंबई को लेकर उसे कैसे पेश आना है और कंगना रनौत का कितना इस्तेमाल करना है - ये तो अब बीजेपी को भी मालूम हो ही चुका है कि कंगना रनौत कहीं अनियंत्रित मिसाइल न साबित होने लगें और कहीं उसकी बड़ी कीमत न चुकानी पड़े.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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