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Updated: 04 जनवरी, 2019 05:37 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही कमलनाथ चर्चा का विषय बने हुए हैं. कहीं कर्ज माफी, कहीं वंदे मातरम गाना बंद करने को लेकर, तो कभी-कभी इमर्जेंसी में उनके रोल को लेकर, लेकिन अब वो एक और फैसले के कारण विपक्षी पार्टियों का शिकार बन गए हैं. वो फैसला है मीसा बंदी पेंशन बंद करने का. Maintenance of Internal Security Act (MISA) और Defence of India Rules (DIR) के तहत जेल में बंद किए सभी नेताओं और अधिकारियों को सरकार की तरफ से पेंशन दी जाती थी जिसे फिलहाल होल्ड कर दिया गया है.

मध्य प्रदेश में ऐसा फैसला लिया जाएगा ये शुरुआत से ही लग रहा था. लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि‍ नियम के अनुसार मध्य प्रदेश से इमर्जेंसी के दौरान जेल गए करीब 2000 नेताओं को मासिक 25000 रुपए की पेंशन दी जाती है और यही पेंशन अब रोक दी गई है.

कमलनाथकमलनाथ का ये फैसला उन्हें सवालों के घेरे में खड़ा कर चुका है

इस फैसले पर बवाल होना तो निश्चित ही था क्योंकि भाजपा अब कांग्रेस पर निशाना साध रही है और कह रही है कि ये और कुछ नहीं बल्कि बदला है. इमर्जेंसी की बात जहां भी आती है वहां कांग्रेस को विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया झेलनी ही पड़ती है. इंदिरा गांधी ने 1975 में इमर्जेंसी लागू की थी और 1977 तक ये लागू रही थी. उस समय हज़ारों नेताओं को जेल में डाल दिया गया था.

कमलनाथ और इमर्जेंसी-

कमलनाथ के इस फैसले को लेकर बहुत ज्यादा विवाद इसलिए भी हो रहा है क्योंकि कमलनाथ और इमर्जेंसी का गहरा नाता है. न सिर्फ सन् 75 की इमर्जेंसी बल्कि 1984 में हुए एंटी सिख दंगों के साथ भी कमलनाथ का नाम जोड़ा जाता है. दरअसल, कमलनाथ उन कई नेताओं में से एक हैं जिन्हें इमर्जेंसी के दौरान कांग्रेस में शामिल किया गया था. कमलनाथ न सिर्फ संजय गांधी को स्कूल के जमाने से जानते थे बल्कि वो कांग्रेस में संजय गांधी के बेहद करीबी माने जाते थे. संजय गांधी, जगदीश टाइटलर (1984 दंगों का आरोपी और कांग्रेस सांसद) और कमलनाथ को इमर्जेंसी के दौरान बेहद ताकतवर मान लिया गया था. इतना कि नारा लगाया जाता था 'इंदिरा के दो हाथ संजय गांधी, कमलनाथ.' कमलनाथ को उस समय भी संजय गांधी का मंत्री समझा जाता था.

इमर्जेंसी के दौर की फोटो संजय गांधी और कमलनाथ.इमर्जेंसी के दौर की फोटो संजय गांधी और कमलनाथ.

क्योंकि कमलनाथ और इमर्जेंसी का इतना गहरा नाता है इसलिए मौजूदा समय में भी कमलनाथ के मीसा बंदी पेंशन योजना बंद करने को लेकर उसी दौर को याद किया जा रहा है. मध्यप्रदेश सरकार के सर्कुलर के अनुसार सभी पेंशनकर्ताओं की जांच के बाद ही पेंशन दी जाएगी. सर्कुलर में CAG रिपोर्ट की जानकारी भी दी गई है जिसमें लिखा था कि 2008 में भाजपा सरकार के द्वारा ये स्कीम शुरू करने के बाद से जरूरत से ज्यादा पैसा इस स्कीम के नाम पर निकाला गया है. इसलिए ये जांच होना जरूरी है कि सही लोगों को ही पेंशन दी जाए. सर्कुलर के अनुसार सरकार को पब्लिक अकाउंट कमिटी को स्कीम में होने वाली गड़बड़ियों को दिखाने में समस्या हो रही है.

सर्कुलर में कोई टाइम फ्रेम नहीं दिया गया है जिसमें पेंशन स्कीम वापस शुरू की जाएगी. हालांकि, जनवरी महीने की पेंशन दी जा चुकी है, लेकिन ये नहीं कहा जा सकता कि उन्हें आगे ये पेंशन मिलेगी या नहीं.

इस मामले में विपक्ष का क्या कहना है?

भाजपा राज्यसभा सांसद कैलाश सोनी जो खुद लोकतंत्र सैनानी संघ के अध्यक्ष हैं उनका कहना है कि मध्य प्रदेश के 2000 पेंशनकर्ताओं में 300 विधवाएं भी शामिल हैं जिन्हें उनके पति की मृत्यु के बाद आधी पेंशन मिल रही है. उनका मानना है कि CAG रिपोर्ट से जुड़ी कोई भी समस्या स्कीम में नहीं देखी गई.

कैलाश सोनी का कहना है कि ये स्कीम ऐसे किसी प्रशासनिक ऑर्डर से बंद नहीं की जा सकती है. अगर कोई अनियमितता पाई जाती है तो फिर कोर्ट में इसको लेकर चैलेंज होगा. साथ ही, जो बैंक पेंशन देते हैं उन्हें हर माह वेरिफिकेशन करना ही होता है. उनके हिसाब से कांग्रेस के कुछ नेता भी मीसा बंदी पेंशन पाते हैं.

इसपर कांग्रेस का कहना है कि सर्कुलर को गलत तरह से पेश किया जा रहा है. पार्टी सिर्फ यही चाहती है कि सही इंसान को ही पेंशन मिले. कमलनाथ सरकार सिर्फ यही चाहती है कि स्कीम में पार्दर्शिता आए. जो लोग जेल नहीं गए थे या सिर्फ 1 दिन ही जिन्होंने जेल में बिताया था उन्हें भी पेंशन मिल रही है. भाजपा सरकार ने ये स्कीम 2008 में शुरू की थी जहां उस दौर में 6 महीने या उससे ज्यादा जेल में बिताने वाले लोगों को 6000 रुपए की पेंशन देने की बात की गई थी जो अब 25000 रुपए हो गई है और उन्हें भी मिल रही है जिन्होंने 1 महीना जेल में बिताया है. इसके नियम 4 बार बदले गए हैं.

MISA: कितने राज्यों पर कैसा असर?

मीसा अपने आम में भारत के इतिहास का हिस्सा बन गया है. लालू प्रसाद यादव ने तो अपने बेटी का नाम ही MISA एक्ट पर रख दिया था क्योंकि वो उसी दौरान पैदा हुई थीं. मीसा और डीआरआई के तहत एक लाख से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया. आपातकाल के वक्त जेलों में मीसाबंदियों की बाढ़ सी आ गई थी. नागरिक अधिकार पहले ही खत्म किए जा चुके थे और फिर इस कानून के जरिए सुरक्षा के नाम पर लोगों को प्रताड़ित किया गया, उनकी संपत्ति छीनी गई. बदलाव करके इस कानून को इतना कड़ा कर दिया गया कि न्यायपालिका में बंदियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं थी. कई बंदी तो ऐसे भी थे जो पूरे 21 महीने के आपातकाल के दौरान जेल में ही कैद रहे.

मोदी सरकार में मंत्री अरुण जेटली भी मीसा बंदी रह चुके हैं. उन दिनों को याद करते हुए जेटली ने लिखा, 'मुझे 26 जून 1975 की सुबह एकमात्र विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का गौरव मिला और मैं आपातकाल के खिलाफ पहला सत्याग्रही बन गया. मुझे यह महसूस नहीं हुआ कि मैं 22 साल की उम्र में उन घटनाओं में शामिल हो रहा था जो इतिहास का हिस्सा बनने जा रही थीं. इस घटना ने मेरे जीवन का भविष्य बदल दिया. शाम तक, मैं तिहाड़ जेल में मीसा बंदी के तौर पर बंद कर दिया गया था.'

हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में इसी तरह की स्कीम है जहां मीसा बंदियों को पेंशन दी जाती है. हरियाणा में 10 हज़ार रुपए पेंशन मिलती है इसमें 450 लोगों का नाम शामिल है. महाराष्ट्र में 5 से 10 हज़ार के बीच पेंशन दी जाती है और बिहार में भी 5 से 10 हज़ार के बीच पेंशन देने की बात है.

राजस्थान में भी इसी तरह का काम किया गया था. वसुंधरा सरकार ने 2008 में इसी तरह की स्कीम अपने राज्य में शुरू की थी जिसमें 800 पेंशन दाताओं को 12000 रुपए मासिक देने की बात कही गई थी, लेकिन 2009 में आई अशोक गहलोत सरकार ने इस स्कीम को खारिज कर दिया था. 2014 में फिर इस स्कीम को भाजपा सरकार ने लागू किया.

तो कुल मिलाकर कमलनाथ जी का ये फैसला थोड़ा-थोड़ा अशोक गहलोत से प्रेरित लग रहा है जिन्होंने 2009 में राजस्थान में ये पेंशन स्कीम बंद की थी. इस तरह के फैसले को लेकर विवाद होना भी जायज है. खास तौर पर विवाद कमलनाथ को लेकर ही है क्योंकि भाजपा खुले आम इसे इमर्जेंसी के दौर से जोड़ रही है. अब देखना ये है कि आगे चलकर कमलनाथ सरकार मीसा बंदी पेंशन पर क्या फैसला लेती है.

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श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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