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Updated: 24 दिसम्बर, 2015 03:56 PM
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हिट एंड रन केस में बॉम्बे हाई कोर्ट की टिप्पणी थी - अदालत जनभावनाओं में बहकर फैसला नहीं कर सकती. लेकिन संसद के साथ ऐसा नहीं है, संसद तो जन भावनाओं से ही चलती है, जबकि संसद सर्वोपरि है.

जुवेनाइल जस्टिस बिल को मंजूरी देने में जन भावनाओं का बहुत बड़ा हाथ रहा. कांग्रेस के कई नेता तो आखिर तक बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने की बात करते रहे.

जन भावनाएं

ये जन भावनाओं का ही दबाव था जो जुवेनाइल जस्टिस बिल राज्य सभा में पेश हुआ - और पास भी हो गया. पूरी कार्यवाही देखने के लिए ज्योति के माता पिता भी संसद में मौजूद रहे.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि किस तरह चार लोगों की एक टीम ने सड़क से लेकर संसद तक जन भावनाओं का दबाव बनाने के लिए काम किया - और कामयाब रहे. इसी टीम ने कुछ पत्रकारों की सलाह से बीजेपी और कांग्रेस नेताओं से ज्योति की मां आशा देवी और पिता बद्री नारायण सिंह की मीटिंग कराई. दोनों ने कांग्रेस नेता गुनाम नबी आजाद और मुख्तार अब्बास नकवी से अलग अलग मुलाकात कर अपनी मांग रखी. उससे पहले जंतर मंतर सहित कई जगह लोगों के बीच आशा देवी ने इंसाफ की गुहार लगाई. हालांकि, शुरुआती संघर्ष नाबालिग की रिहाई रोकने को लेकर रहा. जंतर मंतर पर ही आशा देवी ने पहली बार कहा कि उनकी बेटी का नाम ज्योति सिंह है और वो चाहती हैं कि आगे से उसे ज्योति के नाम से ही जाना जाए.

तर्क या ज्योतिष

राज्य सभा में बिल पर बहस के दौरान भावुक हो उठे टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा था, "भगवान न करे अगर वो मेरी बेटी होती तो क्या मैं सबसे अच्छे वकील खोजता या बंदूक लेकर दोषियों को मार देता... " ये एक आम इंसान की भावना थी, किसी नेता या सांसद की नहीं.

ब्रायन ने आगे कहा, "मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कहता हूं कि मैंने एक बंदूक लेकर दोषियों को मार दिया होता."

अब तक तो लोग सजा दिलाने या बचने के लिए वकील के पास ही दौड़ते रहे, हो सकता है अब ज्योतिषी के पास भी पहुंचें. मुमकिन है कोर्ट में अपराधियों की कुंडलियां भी पेश की जाने लगे.

बिल पास होने पर आशा देवी ने खुशी तो जताई लेकिन कहा कि उनकी बेटी को इंसाफ नहीं मिला. नाबालिग रिहा हो गया - और बाकियों को अब तक फांसी नहीं दी गई. आशा देवी का ही बयान है कि सजा अपराधी की उम्र के हिसाब से नहीं बल्कि उसके अपराध के हिसाब से दी जानी चाहिए. खैर, वो पहले की बात है.

जैसे कुछ ही मिनटों के अंतराल पर पैदा होने वालों की किस्मत बदल जाती है - वैसा ही अब अपराध में शामिल किशोरों के साथ भी होगा. फर्ज कीजिए एक ही अपराध में 16 साल के दो किशोर शामिल रहते हैं लेकिन उनकी जन्मतिथि में एक दिन का फर्क होता है. एक रात को 11.55 पर मेष लग्न में पैदा हुआ और दूसरा 12.05 पर मिथुन या कर्क लग्न में. ज्योतिष के अनुसार दोनों का भाग्य अलग अलग होगा. यही बात ये कानून बन जाने पर भी होगी. 11.55 पर पैदा होने वाला वयस्क कैटेगरी में जाएगा और 12.05 पर जन्म लेने वाला जुवेनाइल बोर्ड भेजा जाएगा - क्योंकि तारीख के हिसाब से वो तो एक दिन छोटा होगा.

फिर तो ज्योतिषी भी बताएंगे कि कारागार योग है या नहीं. अगर है तो कितना? अगर एक ही लग्न में पैदा हुए दो किशोरों की जन्म की तारीख अलग अलग होती है तो उनकी कुंडली में ग्रहों के हिसाब से मालूम होगा कि सजा होगी या नहीं?

जिसे लगेगा कि अपराधी ग्रहों की वजह से छूट जाएगा वो अच्छे वकील की बजाए ऐसे ज्योतिषी के पास जाएगा जो ग्रहों को लेकर उपाय बताए, जैसा कि दूसरी मान्यताओं और अंधविश्वास में फिलहाल प्रचलित है.

ये तो रही ग्रहों की महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतरदशा के हिसाब से होने वाली दुर्दशाएं. समाज में इस कानून का क्या हाल होगा?

खापों में होगा खेल

प्रेमी युगलों के भाग जाने पर अक्सर लड़की के पेरेंट्स लड़के के खिलाफ अपहरण और बलात्कार के मुकदमे दर्ज कराते हैं - ऐसे मामलों में वे आसानी से छूट जाते थे जो 18 साल से कम उम्र के होते थे - अब उनकी भी खैर नहीं. ज्यादातर मामलों में लड़की को अक्सर नाबालिग के रूप में पेश किया जाता है. अब अगर दोनों नाबालिग रहे तो उनकी सहमति भी कानूनन नामंजूर हो जाएगी.

प्रेमी युगलों को लेकर खाप पंचायतें पहले से ही शामत ढाती आई हैं अब तो और कहर बरपाएंगी. कई मामलों में देखा गया है कि मां-बाप के न चाहते हुए भी दूसरे लोग प्रेमी युगलों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए दबाव बनाते हैं.

ऐसे तत्व अब कानून का भी फायदा उठाएंगे. गांवों में एक दूसरे के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट हथियार के तौर पर इस्तेमाल होता रहा है. बच्चे तो हमेशा सॉफ्ट टारगेट रहे हैं. अब उन्हें अगवा करके फिरौती मांगी जाती रही. अब ये भी संभव है कि कानूनी प्रक्रिया में उलझाने को लेकर भी ब्लैकमेल किया जाने लगे. आतंकवादियों से लेकर छोटे अपराधियों तक किशोरों का इस्तेमाल करते रहे हैं. पटियाला हाउस में हुई ताबड़तोड़ फायरिंग ताजातरीन मिसाल है, जिसमें हमलावर किशोर ही बताए जा रहे हैं.

ऐसे वारदात में अपराधियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ये तो हर कोई चाहेगा. लेकिन सजा उसे होगी जो पकड़ा जाएगा और जिसके खिलाफ सबूत बरामद कर लिए जाएंगे, मास्टरमांइड पर भी अपराध साबित हो पाएगा और वो बच नहीं पाएगा इस बात की गारंटी तो होगी नहीं.

उम्र के पैमाने

मतदान के लिए न्यूनतम आयु 18 साल है. विवाह के लिए पुरुष 21 और महिला 18 साल की उम्र तय की गई है. कानून के लागू होने पर जघन्य अपराधों में अब 16 के अपराधी को वयस्क माना जाएगा. ये बात अलग है कि गवाही के लिए कोई न्यूनतम आयु तय नहीं है.

जुवेनाइल जस्टिस बिल की प्रमुख पैरोकार केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण विकास मंत्री मेनका गांधी चाहती हैं कि 10 से 12 साल तक के यौन अपराधियों को भी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों में शामिल किया जाए. ऐसा अमेरिका में होता है और गृह मंत्रालय अगर राजी हो जाता है तो 2017 तक देश में भी ये व्यवस्था लागू हो सकती है. बहुत अच्छी बात है.

यूएन कन्वेंशन में 18 साल की उम्र मान्य है और ज्यादातर मुल्कों में प्रचलित भी. अब विशेष परिस्थियों में सजा के प्रावधान के पीछे अपराध की मेरिट के तर्क पर उम्र भारी पड़ेगी. उम्र की बात ज्योतिष के लिए ही अच्छी है, अपराध के लिए नहीं. कम से कम नाबालिगों के मामले में तो हरगिज नहीं.

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