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Updated: 28 फरवरी, 2016 02:53 PM
सुनीता मिश्रा
सुनीता मिश्रा
  @sunita.mishra.9480
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नीतीश-लालू के राज में ​एक बार फिर से जंगलराज-2 ने दस्तक दे दी है. जी हां, जिस बिहार को बड़े-बड़े सपने दिखाकर यह जोड़ी फिर से सत्ता में आई. उसी सत्ताधारी गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल के विधायक पर सियासत का नशा ऐसा चढ़कर बोला कि उसने एक छात्रा को ही अपनी हवस का शिकार बना डाला. विधायक राजबल्लभ यादव दुष्कर्म करने के बाद से फरार है. दुष्कर्म के आरोपी ने अदालत में जमानत याचिका दाखिल की थी, लेकिन उसे खारिज कर दिया था. विधायक की तलाश में पुलिस अभी तक लगी हुई है.

खैर, जब बागडोर संभालने वाले रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो हम आम लोगों से क्या उम्मीद कर सकते हैं. विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही राज्य में जंगलराज-2 की वापसी हो गई है. आए दिन राज्य में दंगा-फसाद आम हो गया है. पिछले कुछ समय से आपराधिक घटनाओं में हुई बढ़ोतरी, पूर्णिया हादसा और दरभंगा में दो इंजीनियरों की दिनदहाड़े हत्या से बिहारवासी दहशत में जीने को मजबूर हैं. बिहार सरकार के लॉ एंड ऑर्डर को लेकर किए जाने वाले तमाम बड़े दावों की पोल खुल गई है. जनता में भय का माहौल है और वह कहीं न कहीं एक बार फिर से खुद को ठगा महसूस कर रही है. वह नीतीश और लालू की जोड़ी को कोसने पर मजबूर है कि इन्हें सत्ता में क्यों लेकर आई?

यह बात तो पीएम अपने भाषणों में भी चीख-चीख कर कहते रहे कि अगर फिर से जंगलराज नहीं चाहते तो सोच-समझकर कर फैसला करना, वरना इसका हर्जाना आपको ही भरना होगा और देखिए नतीजे आने के दूसरे दिन ही एक व्यक्ति को गोली से मारने की घटना सामने आई. वहीं, दूसरी ओर कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार में न जंगलराज है और न ही आएगा. बिहार में कानून का राज है और यह कायम रहेगा. यहां सारी घटनाओं में गुनहगार पकड़े जा रहे हैं. हम हर चीज पर नजर रख रहे हैं. हमारा 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड है. किसे बख्शा गया? कानून के सामने सब बराबर हैं. लेकिन यह समझ में नहीं आता कि जब सब पर उनकी पैनी नजरे हैं, तो वह इन घटनाओं को अंजाम देने वालों को क्यों रोक नहीं पा रहे हैं? और अपनी सहयोगी पार्टी के विधायकों को इतनी खुली छूट क्यों दे रखी है कि वह ऐसे कुकत्य को करने में जरा सा भी नहीं डरते हैं.

हमेशा केंद्र को निशाने पर लेने से राज्य की व्यवस्था सुदृढ़ नहीं होगी. मुख्यमंत्री को यह सच कबूल करना होगा कि राज्य में इन दिनों अपराधियों का बोलबाला है. पिछले दो महीनों में 578 हत्याएं हुईं. आर्थिक सर्वेक्षणों के आधार पर राज्य के विकास का अनुमान लगाना बेमानी सा होगा, क्योंकि जहां जनता हर पल दशहत में बिता रही हो और घुट—घुटकर जीने को मजबूर हो, वहां कैसे विकास का ​पहिया घूमेगा? लालू के साम्राज्य को खत्म करने वाले सीएम ही जब उनके साथ सुर से सुर मिलाने लगे, तो बेबस जनता किससे न्याय की गुहार लगाएगी. अब फिर से लोग बिहार जाने में डरेंगें. इसके साथ ही बिहारवासियों को भी इसका मलाल है कि उन्होंने नीतीश—लालू महागठबंधन का साथ देकर न केवल अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है, बल्कि अपने आपको दहशत में जीने के लिए मजबूर किया है.

चुनावी प्रचार में आरक्षण और दलित का कार्ड खेलने वाले और अपनी राजनीति चमकाने वाले लालू भी अपने बेटे को उपमुख्मंत्री की बागडोर देने के बाद निश्चिंत हो गए हैं, क्योंकि उनका फैंका हुआ पासा काम आ गया और जनता उनके जाल में खुद ब खुद फंस गई. जनता नीतीश कुमार से अपने सवालों का जवाब जानने को आतुर हैं कि आखिर प्रदेश की कानून-व्यवस्था क्यों गड़बड़ा रही है. उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद जितने भी अपराध हुए हैं उसमें शामिल अपराधी अब तक फरार हैं, जिन्हें पकड़ने में पुलिस ने अभी तक कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई. डॉक्टर के घर पर गोलाबारी के बाद 5 लाख की रंगदारी की मांग. वैशाली में दो समुदायों के बीच संघर्ष जिसमें पुलिस इंस्पेक्टर को पीट-पीटकर मार डालना. एस पी की हत्या, रेप, छेड़खानी. इन आंकड़ों को देखते हुए तो यही लगता है कि नीतीश यह सब रोक पाने में नाकाम होते दिख रहे हैं.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव की हार से बौखलाए नीतीश ने भाजपा की कांटें की टक्कर का मुकाबला करने के लिए अपने चिर प्रतिद्वंदी और चारे घोटाले के आरोपी लालू यादव का दामन थामा और जनता को उम्मीद से ज्यादा सपने दिखाए. कहा गया कि बाहरी नहीं बिहारी पर भरोसा जताएं! कहां गए वह बड़े-बड़े चुनावी वादे. अब क्या वह जनता नहीं रही, जो चुनाव के समय में थी? क्या अब पांच सालों तक बिहारवासियों को इसका दंश झेलना पड़ेगा? क्या फिर से उसी जंगलराज में एक-एक दिन गिन गिनकर काटने ​होंगे. सीएम से अनुरोध है कि वह उस जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम करें, जिन्होंने उन्हें फिर से बिहार की गद्दी बिठाया है. उन्हें सब्जबाग तो खूब दिखाया अब मैदान में उतरकर काम करके भी दिखाएं. उनके खौफ को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निवर्हन करें, ताकि उन्हें आपको चुनने का अफसोस न हो. वह आगामी पांच साल सुकून भरी जिंदगी जी सके और बिहार में जंगलराज की वापसी को रोका जा सके.

लेखक

सुनीता मिश्रा सुनीता मिश्रा @sunita.mishra.9480

लेखिका पेशे से पत्रकार हैं

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