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Updated: 04 मार्च, 2016 02:13 PM
करुणेश कैथल
करुणेश कैथल
  @karuneshkaithal
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कहा गया है कि जब आपकी तरफ कोई नहीं देखे तो जो दुनिया कर रही है आप ठीक उसका उलटा करना शुरू कर दीजिए, सभी का ध्यान आपके ऊपर ही रहेगा. हालांकि सुर्खियों में बने रहने के लिए इस समय तो लोगों के पास कई तरीके हैं. देखा जाए तो जाट आरक्षण आंदोलन की आड़ में हुए बवाल, तोड़-फोड़, दंगा-फसाद, बलात्कार आदि इस समय हमेशा चैनलों व समाचार पत्रों के सुर्खियों में देखे जा सकते हैं. लेकिन जो आरोप जेएनयू के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर लगे हैं वह सबसे संगीन हैं. यह आरोप है देशद्रोह का.

हालांकि देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने छह महीने की सशर्त अंतरिम जमानत दे दी है. लेकिन एक बहुत बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि बिहार के एक छोटे से गांव से दिल्ली पढ़ाई करने आए जिस कन्हैया को एक समय तक दिल्ली के कुछ छात्र-छात्राएं जानते थे आज पूरे देश, या यूं कहें कि विदेशों तक में कैसे प्रसिद्ध हो गया. एकाएक कन्हैया को समर्थन करने वालों की तादाद इतनी कैसे बढ़ गई. कन्हैया को देश में भक्ति जगाने वाला तक कहा गया है. एक लेख का मुख्य लाइन लिखी गई है ‘‘थैंक यू कन्हैया, देश में भक्ति जगाने के लिए!’’. एक सवाल ऐसे लोगों से भी है कि शांति से कमा-खा रहे लोगों के अंदर क्या देशभक्ति नहीं होती?

जमानत मिलने के बाद जेएनयू से कन्हैया जिस तरह अपने भाषण में बब्बर शेर की तरह दहाड़ता हुआ नजर आया उससे साफ झलक रहा है कि कन्हैया की राजनीति में विशेष दिलचस्पी है. जिसकी वजह से वह छात्रसंघ का चुनाव लड़ा, छात्र-छात्राओं में अपने प्रति विश्वास जगाया और चुनाव जीत गया. नतीजतन वह जेएनयू छात्रसंघ का अध्यक्ष बन गया. सभी जानते हैं कि किसी महाविद्यालय के छात्र नेताओं के अध्यक्षों का कार्यक्षेत्र कितना बड़ा होता है. ऐसा संभव है कि कन्हैया के मन में अपने कार्यक्षेत्र के दायरे को बढ़ाने को लेकर कुछ प्लानिंग चल रही हो.

मीडिया में जमानत की खबर आने के बाद से कुछ छात्र-छात्राओं के बयान जो चैनलों पर देखे जा रहे थे, उसमें वे कहते नजर आ रहे थे कि ‘‘कन्हैया जी की जमानत हो गई है और वही जब आएंगे तो जेल में बंद बाकी साथियों के लिए आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे’’. इस तरह की चर्चाओं से और कन्हैया के भाषण से एक बात तो तय लग रही है कि कन्हैया अपनी प्रसिद्धि को अपने फायदे के लिए भुनाने की कोशिश तो जरूर करेगा.

राजनीति में नए-नए आने वाले लोगों के लिए निःसंदेह अरविन्द केजरीवाल एक आदर्श व्यक्ति तो बन ही चुके हैं. जिस तरह उन्होंने पहले कई तरह के आंदोलनों में लोगों का भरोसा जीता, फिर अपनी राजनीति पार्टी बनाई और चुनाव लड़े. आज दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन भी हैं. लेकिन ऐसा लगता है जैसे जिन आंदोलनों की बदौलत वे आज इस कुर्सी तक पहुंचे हैं उन आंदोलनों में किए गए वादों को तो वे भूल ही चुके हैं.

भीड़ जुटा कर लोगों का दिल जीतने का सबसे बढि़या भाषण है- मैं गरीब का बेटा हूं, बहुत छोटे से गांव से आया हूं, सियासत करने वाले हमारी आवाज को दबाना चाहते हैं, भ्रष्टाचार देश से मिटाना है, हम आजादी लेकर रहेंगे आदि, जैसा कि जमानत मिलने के बाद कन्हैया ने जेएनयू से दिए अपने भाषण में जिक्र किया है. उसने जिस तरह अपने भाषण में राजनीतिक दलों, नेताओं, पीएम, पुलिस, मीडिया आदि पर चुटकी ली है उसे देख कर सुन कर आप समझ सकते हैं कि वह अपने उपर लगे आरोपों को लेकर कितना संवेदनशील और भूल सुधार की दशा में है. जबकि छात्रसंघ अध्यक्ष होने के नाते यह जिम्मेदारी कन्हैया की बनती है कि उसके छात्रों के बीच से कौन देशद्रोह के नारे लगा रहा था उसकी पहचान करे और पुलिस और न्यायालय को बताए.

एक बात तो तय है कि कन्हैया जेल में जाकर और फिर जमानत पर बाहर आकर अपने आप में एक नया केजरीवाल देख रहा है और निश्चित ही वह आगे चल कर सक्रिय राजनीति में आएगा और ठीक केजरीवाल की तरह चुनाव लड़ेगा और शायद जीत भी जाए. यह सभी भारतीयों का मौलिक अधिकार भी है इसमें कोई बुराई नहीं है. लेकिन प्रसिद्धि पाने का जो तरीका कन्हैया या उसके सदस्यों ने अपनाया है उसपर सवाल जरूर उठ रहे हैं.

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