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Updated: 10 दिसम्बर, 2015 08:18 PM
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किसी राजनेता के भाषण के बीच में उसके सामने से गुजर जाने की सजा क्या निलंबन है? हो भी सकती है अगर नेताजी की मर्जी हो तो. निलंबन ही क्यों हमारे नेताओं की मर्जी हो तो और भी बहुत कुछ हो सकता है. IAS ऑफिसर नेताओं के जूते उठा सकते हैं, उठाते रहे हैं. अपने रुमाल से उनके जूते साफ कर सकते हैं. किसी सिपाही को थप्पड़ मार सकते हैं. यह सब तमीज और 'वर्क कल्चर' की निशानी है. अगर फरमान नहीं माना तो यह बदतमीजी हो जाएगी.

अभी दो दिन पहले झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास का गुस्सा पूरे देश ने देखा. मंच से मुख्यमंत्री भाषण दे रहे थे और इसी दौरान धनबाद के एडीएम अनिल कुमार सिंह उनके सामने से गुजरे. फिर क्या था. मुख्यमंत्री का गुस्सा सांतवें आसमान पर पहुंच गया.

'कौन है ये? तमीज नहीं है? सस्पेंड करो इसको' ये कहकर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बता दिया कि किसी राजनेता के भाषण के बीच में आ जाने का परिणाम क्या हो सकता है. फिर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रघुवर दास 'वर्क कल्चर' की बात करने लगते हैं. कहते हैं...इसे ही बदलना है और अब यह झारखंड में नहीं चलेगा. यह बात समझ से परे है कि कोई गलती से किसी के भाषण के बीच में सामने से गुजर जाए तो भला 'वर्क कल्चर' पर सवालिया निशान कैसे खड़ा हो जाता है.

जब काला चश्मा पड़ा IAS अधिकारियों पर भारी

छत्तीसगढ़ के उन दो IAS ऑफिसर अमित कटारिया और केसी देव सेनापति का दोष क्या था. इसी साल मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने छत्तीसगढ़ दौरे में बस्तर और दंतेवाड़ा गए थे. उन्हें रिसीव इन अफसरों ने किया लेकिन कुछ दिनों बाद ही इन्हें नोटिस थमा दिया गया. कारण...दोनों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के वक्त काले चश्मे पहने हुए थे और 'मई की गर्मी' में बंदगला भी नहीं पहना था. इसे प्रोटोकॉल का उल्लंघन माना गया!

इस वर्क कल्चर को कौन बदलेगा...

जब वर्क कल्चर को बदलने की बात ही हो रही है तो इसे बदलने की बात क्यों नहीं करते जब जम्मू के बीजेपी के एमएलए कृष्ण लाल एक नदी पार करते हुए अपने सेक्यूरिटी गार्ड की पीठ पर सवार दिखते हैं...फिर सफाई मांगने पर ये भी कहते हैं कि उनकी मदद के लिए ही तो सुरक्षा अधिकारी उन्हें मिला है. ऐसे ही पश्चिम बंगाल के एक मंत्री रचपाल सिंह अपने बॉडीगार्ड से जूते का फीता बंधवाते कैमरे पर पकड़े जाते है. उदाहरण तो कई और मिल जाएंगे...इन्हें सस्पेंड करने की कवायद कब शुरू होगी.

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